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________________ निजदोष दर्शन से... निर्दोष! हमें मदद करनेवाला भी लगता है। तो ऐसा किसलिए होता है? दादाश्री : उस व्यक्ति में बदलाव दिखता है, वह अपना रोग है। व्यक्ति में बदलाव होता ही नहीं है। इसलिए बदलाव दिखता है, वह अपना ही रोग है । और अध्यात्म वही कहता है न ! अध्यात्म क्या कहता है? तुझे देखना ही नहीं आता है। बेकार ही, बिना काम के पत्नी का पति किसलिए बन बैठा है? इसीलिए हमें देखना नहीं आने से ऐसा सब होता है। बाकी यह फेक्ट चीज़ नहीं है। १२१ खुद के लिए सामनेवाला व्यक्ति क्या मानता होगा, वह क्या पता चले? आपकी तरफ कोई व्यक्ति अभाव दिखाए तो आपको उसकी तरफ कैसा लगेगा? होगा? प्रश्नकर्ता: अभाव दिखाए तो अच्छा नहीं लगता। दादाश्री : तब वैसे ही आप दूसरे को अभाव दिखाओ तो क्या प्रश्नकर्ता: वह एक पहेली है कि इसमें मुझे अच्छा भाव दिखता है और दूसरे में मुझे खराब भाव दिखता है। दादाश्री : नहीं, वह पहेली नहीं है। हम समझते हैं कि क्या है यह, इसीलिए हमें पहेली नहीं लगता। एक व्यक्ति मुझे रोज़ पूछते कि मुझे इस आदमी के लिए उलटे भाव क्यों दिखते हैं? मैने कहा, 'उस आदमी का दोष नहीं है, आपका दोष है।' प्रश्नकर्ता: पर हम यदि खराब हों, तो सभी खराब दिखने चाहिए। दादाश्री : हम ही खराब हैं, इसलिए ही यह खराब दिखता है। खराब कोई है ही नहीं। जो खराब दिखता है, वह आपकी खराबी के कारण खराब दिखता है। भगवान ने यही खोज की और आप जो अच्छा कहते हो, वह भी आपकी मूर्खता है अंदर, फूलिशनेस है। अच्छा-अच्छा कहते हो फिर हम पूछें तब कहेगा, 'मुझसे विश्वासघात किया।' तो तू अच्छाअच्छा कह रहा था, वह किसलिए? ! अच्छा कहता है और दस वर्ष बाद १२२ निजदोष दर्शन से... निर्दोष! कहता है कि मुझसे विश्वासघात किया। ऐसा होता है कि नहीं होता? प्रश्नकर्ता होता ही है न! दादाश्री : और ऐसा जो गलत दिखता है, वह अच्छा है, ऐसा भी मत मानना। जग निर्दोष अनुभव में.... प्रश्नकर्ता: सामनेवाला निर्दोष दिखे, वैसी जागृति सतत रहनी चाहिए न ? दादाश्री : निर्दोष दिखने में आपको बहुत समय लगेगा। पर आपको दादा ने कहा है, इसलिए आपको निर्दोष दिखेगा कभी, तो वह कहने मात्र से। पर आपको एक्जेक्ट नहीं दिखेगा। प्रश्नकर्ता: वैसा अनुभव नहीं होगा हमें? दादाश्री : अनुभव नहीं होगा, अभी आपको। प्रश्नकर्ता: हम मन में मान लें कि हाँ, वह निर्दोष ही है, तो? दादाश्री : यह ज्ञान हुआ पर वह अनुभव कभी न कभी होगा, पर अभी तो ऐसा पहले नक्की कर दिया है इसीलिए हमें परेशानी नहीं न! निर्दोष है ऐसा कहते हैं, इसीलिए अपना मन बिगड़ता नहीं है फिर । किसीको दोषित ठहराया कि आपका मन पहले बिगड़ता है और आपको दुःख देता ही है। क्योंकि दोषित वास्तव में है ही नहीं। आपकी अक़्ल से ही आपको दोषित दिखता है और वही भ्रांति की जगह है। हाँ, अब आप मुझे कहते रहो पर मैं किसीकी शिकायत सुनूँगा? ! प्रश्नकर्ता: अभी आपने क्या कहा कि आप मुझे कहते रहते हो ? दादाश्री : हाँ, पर ऐसी सब बातें करते हो, कोई ऐसे कर रहा था, कोई ऐसे कर रहा था, ऐसा आपको समझ में आया कि यह सब गलत है ?
SR No.009595
Book TitleNijdosh Darshan Se Nirdosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages83
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size48 KB
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