SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 17
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मृत्यु समय, पहले और पश्चात्... __२१ मृत्यु समय, पहले और पश्चात्... प्रकार के सात जन्म होते हैं, यह बात सच है? दादाश्री : जो संस्कार पड़ते हैं, वे सात-आठ जन्म के बाद जाते हैं। इसलिए ये कोई बुरे संस्कार पड़ने मत देना। बुरे संस्कारों से दूर भागना। हाँ, यहाँ चाहे जैसा दु:ख हो तो वह सहन करना, पर गोली मत मारना, आत्महत्या मत करना। इसलिए बड़ौदा शहर में आज से कुछ साल पहले सबसे कह दिया था कि आत्महत्या का विचार आए, तब मुझे याद करना और मेरे पास आ जाना। ऐसे मनुष्य हों न, जोखिमवाले मनुष्य, उन्हें कहकर रखता था। वह फिर मेरे पास आए, तब उसे समझा दूं। दूसरे दिन आत्महत्या करना बंद हो जाए। १९५१ के बाद सबको खबर कर दी थी कि जिस किसी को आत्महत्या करनी हो तो वह मझसे मिले, और फिर करे। कोई आए कि मुझे आत्महत्या करनी है तो उसे मैं समझाऊँ। आसपास के 'कॉज़ेज़' (कारण), सर्कल, आत्महत्या करने जैसी हैं या नहीं करने जैसी, सब उसे समझा दूं और उसे वापिस मोड़ खोज की थी कि ये हिन्दुस्तान के लोग चार आने भी धर्म करें, ऐसे नहीं हैं। ऐसे लोभी हैं कि दो आने भी धर्म नहीं करें। इसलिए ऐसे उलटा कान पकड़वाया कि 'तेरे बाप का श्राद्ध तो कर!' ऐसा सब कहने आते हैं न! इसलिए श्राद्ध का नाम इस प्रकार डाल दिया। इसलिए लोगों ने फिर शुरू कर दिया कि बाप का श्राद्ध तो करना पड़ेगा न! और मुझसा कोई अड़ियल हो और श्राद्ध न करता हो तब क्या कहते हैं? 'बाप का श्राद्ध भी करता नहीं है।' आस-पासवाले किच-किच करते हैं, इसलिए फिर श्राद्ध कर देता है। तब फिर भोजन करवा देता है। तब पूनम के दिन से खीर खाने को मिलती है और पंद्रह दिनों तक खीर मिलती रहती है। क्योंकि आज मेरे यहाँ, कल आपके यहाँ और लोगों को भी यह माफिक आ गया कि, 'होगा, तभी बारी-बारी से खाना है न! ठगे नहीं जाना और फिर खाना डालना कौए को।' इस प्रकार शोध की थी। उससे पित्त सारा शम जाता है। तो इसलिए इन लोगों ने यह व्यवस्था की थी। इसलिए हमारे लोग उस समय क्या कहते थे कि सोलह श्राद्धों के बाद यदि जीवित रहा तो नवरात्रि में आया ! __ हस्ताक्षर बिना मरण भी नहीं पर कुदरत का नियम ऐसा है कि किसी भी मनुष्य को यहाँ से ले जा सकते नहीं हैं। मरनेवाले के हस्ताक्षर बिना उसे यहाँ से ले जा सकते नहीं है। लोग हस्ताक्षर करते होंगे क्या? ऐसा कहते हैं न कि 'हे भगवान, यहाँ से जाया जाए तो अच्छा' अब ऐसा किस लिए बोलते हैं? वह आप जानते हो? कभी ऐसा भीतर दुःख होता है, तब फिर दुःख का मारा बोलता है कि 'यह देह छूटे तो अच्छा।' उस घड़ी हस्ताक्षर करवा लेता है। उससे पहले करना 'मुझे' याद प्रश्नकर्ता : दादाजी ऐसा सुना है कि आत्महत्या के बाद इस आत्महत्या का फल प्रश्नकर्ता : कोई मनुष्य यदि आत्महत्या करे तो उसकी क्या गति होती है ? भूत-प्रेत बनता है? दादाश्री : आत्महत्या करने से तो प्रेत बनता है और प्रेत बनकर भटकना पड़ता है। इसलिए आत्महत्या करके उलटे उपाधियाँ मोल लेता है। एकबार आत्महत्या करे, उसके बाद कितने ही जन्मों तक उसका प्रतिघोष गूंजता रहता है! और यह जो आत्महत्या करता है, वह कोई नया नहीं कर रहा है। वह तो पिछले जन्म में आत्महत्या की थी, उसके प्रतिघोष से करता है। यह जो आत्महत्या करता है, वह तो पिछले किए हुए आत्मघात कर्म का फल आता है। इसलिए अपने आप ही आत्महत्या करता है। वे ऐसे प्रतिघोष पड़े होते हैं कि वह वैसा का वैसा ही करता
SR No.009594
Book TitleMrutyu Samaya Pahle Aur Pashchat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages31
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size226 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy