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________________ मृत्यु समय, पहले और पश्चात्... के साथ संबंध नहीं रहा, इसलिए यह देह छूट जाता है। फिर कोई मिलता नहीं है। फिर नया संबंध बंधा हो, तो फिर जन्म होता है वहाँ, बाकी कोई आता-करता नहीं है। पितृ किसे कहेंगे? बेटे को कहेंगे या बाप को कहेंगे? बेटा पितृ होनेवाला है और बाप भी पितृ होनेवाला है और दादा भी पितृ होनावाला है, किसे कहेंगे पितृ? प्रश्नकर्ता : याद करने लिए ही ये क्रियाएँ रखी हैं, ऐसा न? १९ दादाश्री : नहीं, याद करने के लिए भी नहीं। यह तो अपने लोग मृतक के पीछे धर्म के नाम पर चार आने भी खर्च करें ऐसे नहीं थे। इसलिए फिर उन्हें समझाया कि भाई आपके पिताश्री मर गए हैं, तो कुछ खर्च करो, कुछ ऐसा करो, वैसा करो। तब फिर आपके पिताश्री को पहुँचेगा। तब लोग भी उसे डाँटकर कहते हैं कि बाप के लिए कुछ कर न! श्राद्ध कर न! कुछ अच्छा कर न! तो ऐसे करके दो सौ चार सौ, जो भी खर्च करवाते हैं धर्म के नाम पर, उतना उसका फल मिलता है। बाप के नाम पर करता है और बाद में फल मिलता है। यदि बाप का नाम नहीं दिया होता, तो ये लोग चार आने भी खर्च नहीं करते। अतः अंधश्रद्धा पर यह बात चल रही है। आपकी समझ में आया? नहीं समझे? ये व्रत-उपवास करते हैं, वह सब आयुर्वेद के लिए है, आयुर्वेद के लिए। ये सब व्रत-उपवास आदि करते हैं और आयुर्वेद में किस तरह फायदा हो, उसके लिए प्रबंध किया है यह सब पहले के लोगों ने प्रबंध अच्छा किया है। इन मूर्ख लोगों को भी फायदा होगा, इसलिए अष्टमी, एकादशी, पंचमी, ऐसा सब किया है और ये श्राद्ध करते हैं न! अतः श्राद्ध, वह तो बहुत अच्छे हेतु के लिए किया है। प्रश्नकर्ता: दादाजी, श्राद्ध में कौओं को भोजन खिलाते हैं, उसका क्या तात्पर्य है? अज्ञानता कहलाती है वह ? मृत्यु समय, पहले और पश्चात्.... दादाश्री : नहीं, अज्ञानता नहीं है। यह एक तरह से लोगों ने सिखाया है कि उस प्रकार से श्राद्धकर्म होता है। वह अपने यहाँ तो श्राद्ध करने का तो बड़ा इतिहास है। इसका क्या कारण था ? श्राद्ध कब से शुरू होते हैं कि भादों सुद पूनम से लेकर भादों वद अमावस्या तक श्राद्धपक्ष कहलाता है। सोलह दिन के श्राद्ध ! अब यह श्राद्ध का किस लिए इन लोगों ने डाला? बहुत बुद्धिमान प्रजा हैं ! इसलिए श्राद्ध जो डाले हैं, वह तो सब वैज्ञानिक तरीका है। हमारे इन्डिया में आज से कुछ साल पहले तक गाँवों में हर एक घर में एक खटिया तो बिछी रहती थी, मलेरियावाले एक-दो लोग तो खाट में होते थे। कौन से महीने में? तब कहें, भादों महीने में। इसलिए हम गाँव में जाएँ, तो हर एक घर के बाहर एकाध खटिया पड़ी होती और उसमें मरीज़ सो रहा होता, ओढ़कर । बुखार होता, मलेरिया के बुख़ार से ग्रस्त । भादों के महीने में मच्छर बहुत होते थे, इसलिए मलेरिया बहुत फैलता था, यानी मलेरिया पित्त का ज्वर कहलाता है। वह वायु या कफ का ज्वर नहीं है। पित्त का ज्वर, तो इतना अधिक पित्त बढ़ जाता है। बरसात के दिन और पित्तज्वर और फिर मच्छर काटते हैं। जिसे पित्त ज्यादा होता है उसे काटते हैं। इसलिए मनुष्यों ने, इन खोजकर्त्ताओं ने यह खोज की थी कि हिन्दुस्तान में, कोई रास्ता निकालो, नहीं तो आबादी आधी हो जाएगी। अभी तो ये मच्छर कम हो गए हैं, नहीं तो आदमी जीवित नहीं होता। इसलिए पित्त के बुख़ार को शमन करने के लिए, ऐसी शमन क्रिया करने के लिए खोज की थी कि ये लोग दूधपाक या खीर, दूध और शक्कर आदि खाएँ तो पित्त शमेगा और मलेरिया से कुछ छुटकारा मिले। अब ये लोग घर का दूध हो, फिर भी खीर - बीर बनाते नहीं थे, दूधपाक खाते नहीं थे ऐसे ये लोग! बहुत नोर्मल न ( !), इसलिए क्या हो, वह आप जानते हो? अब ये दूधपाक रोज़ खाएँ किस तरह? अब बाप को तो एक अक्षर भी नहीं पहुँचता । पर इन लोगों ने २०
SR No.009594
Book TitleMrutyu Samaya Pahle Aur Pashchat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages31
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size226 KB
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