SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 18
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मृत्यु समय, पहले और पश्चात... _____२३ मृत्यु समय, पहले और पश्चात्... आया होता है। इसलिए अपने आप आत्महत्या करता है और आत्महत्या होने के बाद फिर अवगतिवाला जीव बन जाता है। अवगति अर्थात् देह के बिना भटकता है। भूत बनना कुछ आसान नहीं है। भूत तो देवगति का अवतार है, वह आसान चीज़ नहीं है। भूत तो यहाँ पर कठोर तप किए हों, अज्ञान तप किए हों, तब भूत होता है, जब कि प्रेत अलग वस्तु हैं। विकल्प बिना जीया नहीं जाता प्रश्नकर्ता : आत्महत्या के विचार क्यों आते होंगे? दादाश्री : वह तो भीतर विकल्प खतम हो जाते हैं इसलिए। यह तो विकल्प के आधार पर जीया जाता है। विकल्प समाप्त हो जाएँ, फिर अब क्या करना, उसका कोई दर्शन दिखता नहीं है, इसलिए फिर आत्महत्या करने की सोचता है। इसलिए ये विकल्प भी काम के ही हैं। सहज विचार बंद हो जाएँ, तब ये सब उलटे विचार आते हैं। विकल्प बंद हों इसलिए जो सहज विचार आते हों, वे भी बंद हो जाते हैं। अँधेरा घोर हो जाता है। फिर कुछ दिखता नहीं है! संकल्प अर्थात् 'मेरा' और विकल्प अर्थात् 'मैं'। वे दोनों बंद हो जाएँ, तब मर जाने के विचार आते हैं। आत्महत्या के कारण प्रश्नकर्ता : वह जो उसे वृत्ति हुई, आत्महत्या करने की उसका रूट (मूल) क्या है? दादाश्री : आत्महत्या का रूट तो ऐसा होता है कि उसने किसी जन्म में आत्महत्या की हो तो उसके प्रतिघोष सात जन्मों तक रहा करते हैं। जैसे एक गेंद डालें न हम, तीन फीट ऊपर से डालें, तो अपने आप दूसरी बार ढाई फीट उछलकर वापस गिरेगी। फिर एक फुट उछलकर गिरे वापस, ऐसा होता है कि नहीं? तीन फीट पूरा नही उछलती, पर अपने स्वभाव से ढाई फीट उछलकर वापस गिरती है, तीसरी बार दो फीट उछलकर वापस गिरती है, चौथी बार डेढ़ फीट उछलकर वापिस गीरती है। फिर एक फुट उछलकर गिरती है। ऐसा उसका गति का नियम होता है। ऐसे कुदरत के भी नियम होते हैं। वह ये आत्महत्या करें, तो सात जन्म तक आत्महत्या करनी ही पड़ती है। अब उसमें कम-ज्यादा परिणाम से आत्महत्या हमें पूर्ण ही दिखती है, मगर परिणाम कम तीव्रतावाले होते हैं और कम होते-होते, परिणाम खतम हो जाते हैं। अंतिम पलों में मरते समय सारी ज़िन्दगी में जो किया हो, उसका सार (हिसाब) आता है। वह सार पौना घंटे तक पढ़ता रहे, फिर देह बंध जाता है। फलतः दो पैरों में से चार पैर हो जाते हैं। यहाँ रोटी खाते खाते, वहाँ डंठल खाने ! इस कलियुग का माहात्म्य ऐसा है। इसलिए यह मनुष्यत्व फिर मिलना मुश्किल है, ऐसा यह कलियुग का काल... प्रश्नकर्ता : अंतिम समय किसे पता है कि कान बंद हो जाएँ? दादाश्री : अंतिम समय में तो आज जो आपके बहीखाते में जमा है न, वह आता है। मृत्यु समय का घंटा, जो गुणस्थान आता है न, वह सार है और वह लेखा-जोखा सिर्फ सारी ज़िन्दगी का नहीं. परन्त पहले जो जन्म लिया और बाद का, उस बीच के भाग का लेखा-जोखा है। वह मृत्यु की घड़ी में हमारे लोग, कितने ही कान में बुलवाते हैं, 'बोलो राम, बोलो राम,' अरे मुए, राम क्यों बुलवाता है? राम तो गए कभी पर लोगों ने सिखलाया ऐसा, कि ऐसा कुछ करना। लेकिन वह तो अंदर पुण्य जागा हो न, तब एडजस्ट होता है। और वह तो लड़की को ब्याहने की चिंता में ही पड़ा होता है। ये तीन लड़कियाँ ब्याह दी
SR No.009594
Book TitleMrutyu Samaya Pahle Aur Pashchat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages31
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size226 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy