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________________ आश्रित को कुचलना, घोर अन्याय ६३ एडजस्ट हो जाएँ, तब भी सुधरे ९९ साइन्स समझने जैसा ६५ सुधारने के बदले सुधरने... १०० जो भुगते उसकी ही भूल ६६ किसे सुधारने का अधिकार? १०१ मियाँ-बीवी ६६ व्यवहार निभाना, एडजस्ट होकर १०१ झगड़ा करो, पर बगीचे में ६८ नहीं तो व्यवहार की गुत्थियाँ... १०४ ...यह तो कैसा मोह? ६८ काउन्टरपुली-एडजस्टमेन्ट की रीति १०४ ....ऐसा करके भी क्लेश टाला ६९ उल्टा कहने से कलह हुई.... १०६ मतभेद से पहले ही सावधानी ७१ अहो! व्यवहार का मतलब ही... १०७ क्लेश बगैर का घर, मंदिर जैसा ७२ ...और सम्यक् कहने से कलह...१०७ उल्टी कमाई, क्लेश कराए ७३ टकोर, अहंकारपूर्वक नहीं करते १०८ प्रयोग तो करके देखो ७४ यह अबोला तो बोझा बढ़ाए १०९ धर्म किया (!) फिर भी क्लेश? ७४ प्रकृति के अनुसार एडजस्टमेन्ट... ११० ...तब भी हम सुल्टा करें ७५ सरलता से भी सुलझ जाए १११ 'पलटकर' मतभेद टाला ७६ ...सामनेवाले का समाधान... १११ ...यह तो कैसा फँसाव? ७८ झगड़ा, रोज़ तो कैसे पुसाए? ११२ आक्षेप, कितने दुःखदायी! ८१ 'झगड़ाप्रूफ' हो जाने जैसा है ११३ खड़कने में, जोखिमदारी खुद..... ८२ बैरबीज में से झगड़ों का उद्भव ११४ प्रकृति पहचानकर सावधानी रखना ८३ ज्ञान से, बैरबीज छूटे ११४ डीलिंग नहीं आए, तो दोष... ८३ जैसा अभिप्राय वैसा असर ११५ 'व्यवहार' को 'इस' तरह से... ८७ यह सद्विचारणा, कितनी अच्छी ११५ 'मार' का फिर बदला लेती है ९० शंका, वह भी लड़ाई-झगड़े... ११६ फरियाद नहीं, निकाल लाना है ९१ ऐसी वाणी को निबाह लें ११७ सुख लेने में फँसाव बढ़ा ९२ ममता के पेच खोलें किस तरह? ११७ इस तरह शादी निश्चित होती है ९३ सभी जगह फँसाव कहाँ जाएँ? ११८ 'कॉमनसेन्स' से 'सोल्युशन'... ९४ पोलम्पोल कब तक ढंकनी? ११९ रिलेटिव, अंत में दगा समझ में... ९४ ...ऐसे फँसाव बढ़ता गया १२० कुछ समझना तो पड़ेगा न? ९६ ...उसे तो 'लटकती सलाम!' १२१ रिलेटिव में तो जोड़ना ९८ एक घंटे का गुनाह, दंड जिन्दगी पूरी १२२ वह सुधरा हुआ कब तक टिके? ९९ पगला अहंकर, तो लड़ाई... १२३ ऐसी वाणी बोलने जैसी नहीं है १२४९. मनुष्यपन की कीमत संसार निभाने के संस्कार-कहाँ? १२५ क़ीमत तो, सिन्सियारिटी.... १४९ इसमें प्रेम जैसा कहाँ रहा? १२५ 'इनसिन्सियारिटी' से भी मोक्ष १५० नोर्मेलिटी, सीखने जैसी १२६ १०. आदर्श व्यवहार ...शक्तियाँ कितनी 'डाउन' गई? १२७ अंत में, व्यवहार आदर्श चाहिएगा १५१ भूल के अनुसार भूलवाला मिले १२८ शुद्ध व्यवहार : सद्व्यवहार १५३ शक्तियाँ खिलानेवाला चाहिए १२९ आदर्श व्यवहार से मोक्षार्थ सधे १५४ प्रतिक्रमण से, हिसाब सब छूटें १२९ ...तो संसार अस्त हो १३० 'ज्ञानी' छुड़वाएँ, संसारजाल से १३१ ऐसी भावना से छुड़वानेवाले मिलते ही हैं १३२ ६. व्यपार, धर्म समेत जीवन किसलिए खर्च हुए? १३४ विचारणा करनी, चिंता नहीं १३४ चुकाने की नीयत में चोखे रहो १३५ ...जोखिम समझकर, निर्भय रहना १३६ ग्राहकी के भी नियम हैं १३६ प्रामाणिकता, भगवान का... १३८ ...नफा-नुकसान में, हर्ष-शोक... १३९ व्यापार में हिताहित ब्याज लेने में आपत्ति? १३९ किफ़ायत, तो 'नोबल' रखनी १४० ७. ऊपरी का व्यवहार अन्डरहैन्ड की तो रक्षा करनी... १४१ सत्ता का दुरुपयोग, तो.... १४२ ८. कुदरत के वहाँ गेस्ट कुदरत, जन्म से ही हितकारी १४४ पर दखलंदाजी से दु:ख मोल... १४६ ...फिर भी कुदरत, सदा मदद... १४७ 10
SR No.009589
Book TitleKlesh Rahit Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages85
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size51 KB
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