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________________ आएगा। इसमें मुख्य तो माँ-बाप को ही समझना है। अतिशय भावुकता, मोह, ममता मार अवश्य खिलाते हैं और स्व-पर का अहित करके ही रहते हैं। 'फ़र्ज पूरे करने हैं, पर भावुकता के हिंडोले में झलना और फिर गिरना नहीं है।' परम पूज्य दादाश्री ने माँ-बाप और बच्चों के व्यवहार की बहुत ही गहरी समझ दोनों के गहरे मानस को समझकर खल्ली करी है, जिससे लाखों के जीवन सुधर गए हैं! पति-पत्नी अति-अति प्रेमवाले होने के बावजूद अति-अति क्लेश, ऐसा दोनों के ही जीवन में देखने को मिलता है। एक-दूसरे की हूंफ से इतने अधिक बंधे हुए हैं कि अंदर सदा क्लेश हो फिर भी बाहर पति-पत्नी की तरह पूरा जीवन जी लेते हैं। पति-पत्नी का दिव्य व्यवहार किस प्रकार हो, उसका मार्गदर्शन संपूज्य श्री दादाश्री ने हँसते-हँसाते दे दिया है। सास-बह का व्यवहार, व्यवसाय में सेठ-नौकर या व्यापारी-व्यापारी के पार्टनरों के साथ के व्यवहार को भी क्लेश रहित कैसे जीना उसकी चाबियाँ दी अनुक्रमणिका क्लेश रहित जीवन १. जीवन जीने की कला सुधारने के लिए 'कहना' बंद... ३५ ऐसी 'लाइफ' में क्या सार? १ रिलेटिव समझकर उपलक रहना ३६ परन्तु वह कला कौन सिखलाए? २ सलाह देनी, परन्तु देनी ही पड़े... ३८ समझ कैसी? कि दु:खमय... ४ अब, इस भव में तो संभाल ले ३८ ऐसे शौक की कहाँ ज़रूरत है? ६ सच्ची सगाई या परायी पीड़ा? ३९ किसमें हित? निश्चित करना पड़ेगा ८ ...फिर भी उचित व्यवहार.... और ऐसी गोठवणी से सुख... १० फ़र्ज में नाटकीय रहो बैर खपे और आनंद भी रहे १२ बच्चों के साथ 'ग्लास विद केर' ४२ साहिबी, फिर भी भोगते नहीं १४ घर, एक बगीचा संसार सहज ही चले, वहाँ... १५ उसमें मूर्छित होने जैसा है ही... ४५ २. योग-उपयोग परोपकाराय व्यवहार नोर्मेलिटीपूर्वक होना चाहिए ४६ जीवन में, महत् कार्य ही ये दो १७ उसकी तो आशा ही मत रखना ४७ परोपकार से पुण्य साथ में १७ 'मित्रता', वह भी 'एडजस्टमेन्ट' ४८ परोपकार, परिणाम में लाभ ही १८ खरा धर्मोदय ही अब ४८ ३. दुःख वास्तव में है? संस्कार प्राप्त करवाए, वैसा... ४९ 'राइट बिलीफ़' वहाँ दुःख नहीं २२ इसलिए सद्भावना की ओर मोड़ो ५० दुःख तो कब माना जाता है? २२ ५. समझ से सोहे गृहसंसार 'पेमेन्ट' में तो समता रखनी... २४ मतभेद में समाधान किस प्रकार? ५१ ...निश्चित करने जैसा 'प्रोजेक्ट'... २६ ...इसलिए टकराव टालो ५३ मात्र भावना ही करनी है २६ सहन? नहीं, सोल्युशन लाओ ५४ ४. फ़ैमिलि आर्गेनाइजेशन हिसाब चुके या कॉजेज़ पड़े? ५६ यह तो कैसी लाइफ? २८ 'न्याय स्वरूप', वहाँ उपाय तप ५७ ऐसा संस्कार सिंचन शोभा देता... २९ उत्तम तो, एडजस्ट एवरीव्हेर ५८ प्रेममय डीलिंग - बच्चे सुधरेंगे... ३० घर में चलन छोड़ना तो पड़ेगा न? ६० ....नहीं तो मौन रखकर 'देखते' रहो ३१ रिएक्शनरी प्रयत्न नहीं ही.... ६१ ...खुद का ही सुधारने की जरूरत ३२ ...नहीं तो प्रार्थना का एडजस्टमेन्ट ६२ दखल नहीं, 'एडजस्ट' होने.... ३३ 'ज्ञानी' के पास से एडजस्टमेन्ट ६३ केवल आत्मा-आत्मा करके व्यवहार की पूरी-पूरी उपेक्षा करके आगे बढ़नेवाले साधक ज्ञानीपद को प्राप्त नहीं कर सकते। क्योंकि उनका ज्ञान बाँझ ज्ञान माना जाता है। असल ज्ञानी जैसे कि परम पूज्य दादाश्री ने व्यवहार और निश्चय के दो पंखों को समानांतर करके मोक्षगगन में विहार किया है और लाखों को करवाया है और व्यवहार ज्ञान और आत्मज्ञान की चोटी पर की समझ देकर जागृत कर दिया है। प्रस्तुत पुस्तिका में जीवन जीने की कला, जो परम पूज्य दादाश्री के श्रीमुख से निकली हुई बोधकला को संक्षिप्त में संकलित करने में आया है। विस्तारपूर्वक अधिक जानने के लिए प्रत्येक व्यक्ति के साथ के व्यवहार के सोल्युशन के लिए बड़े-बड़े ग्रंथ प्राप्त करके अधिक गहरी समझ सुज्ञ पाठक को प्राप्त कर लेनी जरूरी है। माँ-बाप-बच्चों का व्यवहार, पति-पत्नी का दिव्य व्यवहार, वाणी का व्यवहार, पैसों का व्यवहार इत्यादि व्यवहार ज्ञान के ग्रंथों का आराधन करके क्लेश रहित जीवन जीया जा सकता है। - डॉ. नीरुबहन अमीन के जय सच्चिदानंद 9
SR No.009589
Book TitleKlesh Rahit Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages85
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size51 KB
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