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________________ कर्म का सिद्धांत कर्म का सिद्धांत है, तब body को चाहिए। जो taste वाला है, वो मन का indent है और जो detasted है, वो body का indent है। इसमें आत्मा का indent नहीं है। मोक्ष नहीं होता है, वहाँ तक रहेती है। Electrical body से ये आँख से दिख सकता है। Body की magnetic effect है, वो भी electrical body से है। आपका विचार न हो, फिर भी आकर्षण हो जाता है न? ऐसा experience आपको जिंदगी में कभी हुआ है या नहीं? एक दफे या दो दफे हुआ है? ये magnetic effect है और आरोप करता है कि 'मेरे को ऐसा होता है।''अरे भाई, तेरे विचार में तो नहीं था, फिर क्यों सिर पे ले लेता है।' ये पानी पीता है, वो किसको चाहिए? वो भी body का indent है। और जो दूसरा कुछ पीता है, cold drinks, वो किसका indent है? उसमें मन का और body का - दोनों का indent है। शरीर का जो नर, जो तेज होता है. वो चार प्रकार से प्राप्त होता है, १) कोई बहुत लक्ष्मीवान हो और सुख-चैन में पड़ा रहे तो तेज आता है, वो लक्ष्मी का नूर । २)जो कोई धर्म करे तो उसके आत्मा का प्रभाव पड़ता है, वो धर्म का नूर । ३) कोई बहुत पढता है, relative विद्या प्राप्त करता है, उसका तेज आता है, वो पांडित्य का नूर। ४) ब्रह्मचर्य का तेज आता है, वो ब्रह्मचर्य का नूर। ये चारों ही नूर सूक्ष्म शरीर से आते है। प्रश्नकर्ता : ये electrical body का संचालन 'व्यवस्थित शक्ति' करती है क्या? दादाश्री : इसका संचालन और व्यवस्थित शक्ति का कोई लेनादेना नहीं है। Electrical body उसके स्वभाव में ही है। बिलकुल स्वतंत्र है। किसी के भी ताबे में नहीं है। तो indent किसका है, वो सब मालूम हो जाये तो फिर उन सबका उपरी कौन है, वो मालूम हो जाता है। इन सबको जाननेवाला है, वो खुद ही भगवान है। सब लोग बोलते है, 'हमने खाया'। वो गलत बात है। नींद लेता है वो किसका indent है? प्रश्नकर्ता : शरीर का। दादाश्री : हाँ, शरीर का है। मगर इतना सब, पूरा indent शरीर का नहीं है। जितना टाईम पूरी नींद आती है, सच्ची नींद - गाढ निद्रा आती है, इतना ही indent body का है। दूसरा नींद है न, वो सब mind का है। जिसको ऐशोआरामी बोलते है। Body को pure नींद चाहिए, ऐशोआराम नहीं चाहिए। ऐशोआराम मन को चाहिए। ये सूनता कौन है? Mind सूनता है? ये किसका indent है? प्रश्नकर्ता : वैसे तो कहते हैं, कान सूनते है। दादाश्री : नहीं, मगर indent किसका है? सूनने की इच्छा किसकी है? प्रश्नकर्ता : मन की। दादाश्री : वो egoism की इच्छा है। जितना phone आये वो सब egoism ले लेता है। मन को पकडने नहीं देता। वो शेठ ऐसा है कि दूसरे किसी को हाथ नहीं लगाने देता। चूप, तुम बैठ जाओ, हम Indent-किया किसने? जाना किसने? दादाश्री : ये खाना खाता है उसका indent कौन देता है? ये indent कौन भरता है? ये indent किसका है? तुम खुद है इसमें? प्रश्नकर्ता : वो तो नहीं मालूम। दादाश्री : वो indent body करती है। ये body के परमाणु है, वो indent करते है। इसमें मन की कोई जरूरत नहीं। मन की कब जरूरत होती है? मन का evidence कब होता है, कि जब taste के लिए खट्टा-मीठ्ठा चाहिए, तब वो मन के लिए चाहिए और out of taste
SR No.009588
Book TitleKarma Ka Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Foundation
Publication Year2003
Total Pages25
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size274 KB
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