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________________ कर्म का सिद्धांत कर्म का सिद्धांत पकड़ेगा, ऐसा ही करता है। प्रश्नकर्ता : तो आँख का indent कौन करता है? दादाश्री : आँख का indent में मन का, अहंकार का और आँख का अलग अलग time पे अलग अलग indent रहता है। मगर कान का indent खास करके अहंकार की आदत है। ये अंदर सब science चल रहा है, इसमें सब देखने का है, जानने का है। ये अंदर की Laboratory में जो प्रयोग होता है, इतना सब प्रयोग को पूरा जान लिया, वो खुद भगवान हो गया। परे world का प्रयोग नहीं, इतने प्रयोग में world का सब प्रयोग आ जाता है और इसमें जैसा प्रयोग है, ऐसा सब जीव के अंदर प्रयोग है। एक अपना खुद का जान लिया के सबका जान लिया और सबको जो जानता है वो ही भगवान है। भगवान खाना भी कभी खाता नहीं, नींद भी नहीं लेता है। ये सब विषय है न, वो कोई विषय का भोक्ता भगवान नहीं है। विषय का भोक्ता भगवान हो जाये तो भगवान को मरना पडेगा। ये मरण कौन लाता है? विषय ही लाता है। विषय नहीं होता, तो मरना ही नहीं होता। ये बोडी में सब सायंस ही है। लोग नहीं करता और बाहर उपर चांद पे देखने को जाता है? वहाँ रहेंगे कर लेंगे और वहाँ शादी भी कर लेंगे। ऐसे लोग है। __Really speaking आदमी खाता ही नहीं। तुम्हारे dinner में खाना कहाँ से आता है? Hotel में से आता है? ये खाना कहाँ से आया, उसकी तलाश तो करना चाहिए न?! तब आप कहते है, बीबीने दिया। मगर बीबी कहाँ से लाई? बीबी कहेगी, 'मैं तो व्यापारी के पास से लाई।' व्यापारी बोलेगा, 'हम तो किसान के पास से लाया।' किसान को पूछेगें, तुम कहाँ से लाया? तो वो कहेगा, 'खेत में बीज डालने से पैदा हुआ।' इसका अंत ही मिले ऐसा नहीं है। Indent वाला indent करता है, Supplier supply करता है। Supplier आप नहीं हो। आप तो देखनेवाले है कि, क्या खाया और क्या नहीं खाया, वो जाननेवाले तम हो। तम बोलते हो कि. मैं ने खाया। अरे, तुम ये सब कहाँ से लाया? ये चावल कहाँ से लाया? ये सब सब्जी कहाँ से लाया? तुमने बनाया? तुम्हारा बगीचा तो है नहीं, खेती तो है नहीं, फिर कहाँ से लाया?! तो कहे, 'खरीदकर लाया।' तुमको potatoes (आलु) खाने का विचार नहीं था, मगर आज क्यूं खाना पडा? आज तुमको दूसरा सब्जी मंगता था मगर आलु की सब्जी आई, ऐसा नहीं होता है? तुम्हारी इच्छा के मुताबिक सब खाने का आता है? नहीं! अंदर जितना चाहिए इतना ही अंदर जाता है, दूसरा ज्यादा जाता नहीं। अंदर जितना चाहिए, जितना indent है, उससे एक परमाणु भी ज्यादा अंदर जाता नहीं है। वो ज्यादा खा जाता है, बाद में बोलता है कि, 'आज तो मैं बहुत खाया।' वो भी वो खाता नहीं है। ये तो अंदर मँगता है, उतना ही खाता है। खाना खाने की शक्ति खुद की हो जाये तो फिर मरने का रहेगा ही नहीं ने?! मगर वो तो मर जाता है न?! अंदर के परमाणु indent करते है और बाहर सब मिल जाता है। ये बेबी को तो आपको दूध देने का और खाना देने का। बाकी सब naturally मिल जाता है। वैसे ही तम्हारा सब चलता है, लेकिन तुम egoism करते हो कि मैं ने किया। तमको आम खाने की इच्छा हुई तो बाहर से आम मिल जायेगा। जिस गाँव की होगा वो ही गाँव का आकर मिलेगा। लोग क्या करते है कि अंदर की इच्छाओं को बंद करते है, तो सब बिगड जाता है। इसलिए ये जो अंदर Science चल रहा है, उसको देखा करो। इसमें कोई कर्ता नहीं है। ये Scientific है, सिद्धांत है। सिद्धांत, सिद्धांत ही रहता है। आपको मेरी बात समझ में आती है न? ऐसा है कि हमारा हिन्दी Language पे काबु नहीं है, खाली समझने के लिए बोलता है। वो ५% हिन्दी है और ९५% दूसरा सब mixture है। मगर tea जब बनेगी, तब tea अच्छी बनेगी। - जय सच्चिदानंद
SR No.009588
Book TitleKarma Ka Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Foundation
Publication Year2003
Total Pages25
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size274 KB
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