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________________ है और आपके अंदर व्यक्त नहीं हुए है। जो अंदर प्रगट हुए है, वह 'दादा भगवान' के साथ 'ज्ञानी पुरुष' निरंतर रहते है। जब व्यवहार का उदय होता है, तब 'ए. एम. पटेल' के साथ होना पडता है, नहीं तो 'दादा भगवान' के साथ अभेद स्वरूप से तद्रुप ही रहते है । दादा भगवान का स्वरूप क्या है? ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप इसके द्वारा जो अनुभव में आते है, वही 'दादा भगवान' है। इस देह में जो 'मिकेनिकल' भाग है, चंचल भाग है, वह 'दादा भगवान' नहीं है। अचल भाग है, दरअसल आत्मा है, वह 'दादा भगवान' है। जो खाते है, पीते है, धंधा करते है, शास्त्र पढ़ते है या तो धर्मध्यान करते है, वह सब मिकेनिकल है, वह दरअसल आत्मा नहीं है। दरअसल आत्मा तो स्वयं परमात्मा है, वो ही 'दादा भगवान' है। इसमें 'ज्ञानी पुरुष' कौन? जो ज्ञान की वाणी बोलते है, उन्हें व्यवहार में 'ज्ञानी पुरुष' कहते है। और भीतर में प्रगट हुए बिना ज्ञान की वाणी नहीं बोली जा सकती। भीतर में प्रगट हुए है, वो ही 'दादा भगवान' है। 'ज्ञानी पुरुष' के जो सूक्ष्मतर और सूक्ष्मतम दोष है, जो लोगों की समज में भी नहीं आ सकते, और जगत के किसी भी जीव को किंचित् ही नुकसानकर्ता नहीं, ऐसे दोषों को जो प्रकाशमान करते है, वह 'दादा भगवान' है और 'ज्ञानी पुरुष', उस दोषों को 'उनके' प्रकाश में जानते है। ऐसे पूर्ण स्वरूप 'दादा भगवान' का पद प्राप्त करने के लिए, 'उनके साथ अभेद रहने के लिए 'ज्ञानी पुरुष' खुद 'दादा भगवान' को नमस्कार करते है, उनकी भजना करते है । १९५८ में सूरत स्टेशन पर उन्हें आत्मज्ञान अपने आप (स्वयं ही ) प्रगट हुआ। ज्ञान के प्रागट्य का कारण बताते हुए 'दादाजी' कहते है कि कितने जन्मों की लिंक का यह फल है। वह अनुभूति होने के बाद उनका 'ईगोइजम' और ममत्व खत्म हो गये और 'खुद' मन, वचन, काया से बिलकुल भिन्न हो गये। यह ज्ञान प्रगट हुआ, उसी दिन 'खुद' 'ज्ञानी' हुए। उसके अगले दिन तक वे अज्ञानी ही थे ऐसी हकीकत वे बताते 9 है। ज्ञानप्राप्ति के बाद आत्मा का स्पष्ट अनुभव हुआ, पूर्णाहूति हुई। बाद में उन्होंने 'अंबालाल मूलजीभाई पटेल' के साथ सारी जिंदगी में एक पल भी तन्मयता नहीं की। जब से ज्ञान प्रगट हुआ है, तब से ' अंबालाल ' उनके सर्व प्रथम पडौसी थे। पड़ौसी की तरह ही रहते है। देह और आत्मा की कैसी भिन्नता !!! दादाश्री को कैसा ज्ञान प्रगट हुआ है? उन्हें 'केवलज्ञान' में सिर्फ चार डिग्री की ही कमी थी। 'केवलज्ञानी' को ज्ञान में सब कुछ 'दिखता ' है और उन्हें वह सब कुछ 'समज' में आता है। 'दर्शन' संपूर्ण है, 'ज्ञान' में चार डिग्री की कमी है। 'ज्ञानी पुरुष' तो कहते है कि 'मुझे इस संसार में कुछ भी नहीं आता। मैं आत्मा की बात के अलावा और कुछ नहीं जानता।' 'आत्मा' ज्ञाता-द्रष्टा है, वह 'मैं' जानता हूँ। 'आत्मा' जो 'देख' सकती है, वह 'मैं' 'देख सकता हूँ। व्यवहार में वे धंधादारी आदमी थे, इन्कमटेक्ष- सेलटेक्ष सभी भरते थे, कंट्राक्ट का नंगा धंधा भी करते थे, फिर भी इन सब में 'ज्ञानी पुरुष' संपूर्ण वीतराग रहते थे। वह वीतराग कैसे रहते है? आत्मज्ञान से! संपूर्ण जागृति से !! कई लोग उन्हें पूछते है कि आपको यह सिद्धि किस तरह प्राप्त हुई? उसका उत्तर देते हुए दादाश्री कहते है कि क्या इसकी नकल करनी है? यह नकल करने जैसी चीज नहीं है। यह ज्ञान तो 'बट नेचरल' प्रगट हो गया है। उन्हें भी पता नहीं था कि इतनी बड़ी 'लाइट' हो जायेगी। उन्हें तो छोटे से दिये की, कुछ 'समकित जैसा इस जन्म में प्राप्त होगा ऐसी आशा थी। मगर यह तो संपूर्ण प्रकाश हो गया, संपूर्ण निर्विकल्प पद प्राप्त हुआ। 'भगवान' संज्ञा यह नाम है या विशेषण? 'भगवान' तो विशेषण है। और जो भी कोई मनुष्य भगवत् गुणों की प्राप्ति करता है, उसे यह विशेषण मिलता है। 'ज्ञानी पुरुष' का पद तो निर्विशेष पद है, उनको तो किसी भी विशेषण की क्या जरूरत? 'ज्ञानी पुरुष' को 'भगवान' कहना याने 10
SR No.009585
Book TitleGyani Purush Ki Pahechaan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Foundation
Publication Year2003
Total Pages43
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size325 KB
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