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________________ संपादकीय संसार का बंधन किस से है? अज्ञानता से। अज्ञानता कैसी? निज स्वरूप की। अज्ञानता जाये किस तरह से? ज्ञान से, निज स्वरूप के ज्ञान से। 'मैं कौन हूँ', इसकी पहचान से। 'मैं कोन हूँ' की पहचान कैसे हो? प्रत्यक्ष-प्रगट 'ज्ञानी पुरुष' मिले, उनकी पहचान हो, उनकी द्रष्टि से अपनी द्रष्टि मिल जाये तब। और 'ज्ञानी पुरुष' के लक्षण क्या है? जो निरंतर आत्मा में ही रहते है, जिनकी निरंतर स्वपरिणति ही है, जिन्हें इस संसार की कोई भी विनाशी चीज नहीं चाहिये, कंचनकामिनी, कीर्ति, मान, शिष्य की भिख जिन्हें नहीं है, वह है 'ज्ञानी पुरुष'। ऐसे 'ज्ञानी पुरुष' मिल जाये तो उनके चरणो में सर्वभाव समर्पित करके आत्मा प्राप्त कर लेना चाहिये। स्वयं आत्मज्ञान पाना अति अति कठिन है, लेकिन 'ज्ञानी पुरुष' मिल जाये तो अति अति सरल है। लेकिन 'ज्ञानी पुरुष' की उपस्थिति में भी ज्ञानी पुरुष की पहचान सामान्य जन को होना बहुत कठीन है। जौहरी होगा वह तो हीरे को परख लेगा ही किन्तु 'ज्ञानी पुरुष' को पहचाननेवाले जौहरी कितने? प्रस्तुत ग्रंथ की प्रस्तावना में 'ज्ञानी पुरुष' की पहचान, उनकी दिव्यता, भव्यता, उनका अद्भूत दर्शन, ज्ञान, वाणी और उनकी आंतरिक परिणति के बारे में प्रकाश डालने का अल्प प्रयास किया गया है, जो सुज्ञ वाचक को 'ज्ञानी पुरुष' की पहचान और उनके प्रति अहोभाव प्रगट करने में सहायक हो सकेगी। 'दादा भगवान' कौन है? जो दिखाई देते है, वे 'दादा भगवान' नहीं है। वे तो 'ए.एम.पटेल' है लेकिन भीतर में जो प्रगट हो गये है, वह 'दादा भगवान' है, वह चौदह लोक के नाथ है। आपके अंदर (भीतर) भी वही 'दादा भगवान' है। फर्क सिर्फ इतना ही है कि 'ज्ञानी पुरुष' के अंदर संपूर्ण व्यक्त, प्रगट हो गये
SR No.009585
Book TitleGyani Purush Ki Pahechaan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Foundation
Publication Year2003
Total Pages43
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size325 KB
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