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________________ भाव होता है। जो कषाय रहित है, जहाँ परपरिणति उत्पन्न नहीं होती, ऐसे 'ज्ञानी पुरुष' के दर्शन मात्र से कल्याण होता है। 'ज्ञानी पुरुष' याने संपूर्ण प्रकाश। प्रकाश में कोई अंधेरा टीक नहीं सकता। वह सब कुछ जानते है कि विश्व क्या है, किस तरह चलता है, भगवान कहाँ है, हम कौन है? 'ज्ञानी पुरुष' तो 'वर्ल्ड की ऑब्झर्वेटरी' है। विश्व में एक भी ऐसा परमाणु नहीं कि जो उन्हों ने देखा न हो, एक विचार ऐसा नहीं कि जो उनके ध्यान के बाहर रह गया हो। उनको हीन पद में बिठाने जैसा है। जो मन का मालिक नहीं, देह का मालिक नहीं. वाणी का मालिक नहीं, कोई चीज का मालिक नहीं, वह इस संसार में भगवान है। 'ज्ञानी पुरुष' देह होने के बावजूद भी एक पल भी देह के मालिक नहीं होते। ऐसे 'ज्ञानी पुरुष' सारी परसत्ता को जानते है और स्वसत्ता को भी जानते है। खुद की, स्वसत्ता में वे ज्ञाता-द्रष्टा, परमानंदी रहते है। 'ज्ञानी पुरुष' एक पल भी संसार में नहीं रहते और एक पल भी अपने स्वरूप के सिवा अन्य कोई संसारी विचार उनको नहीं आता। 'ज्ञानी पुरुष' में तो अपनापन ही नहीं रहता। देह के मालिक नहीं होते, इसलिए उन्हें मरना भी नहीं पडता, खुद अमरपद में रहते है। और 'ज्ञानी कृपा' का इतना सामर्थ्य है कि वही पद वे दूसरों को दे सकते है, जो बड़ी आश्चर्यकारी घटना है। 'ज्ञानी पुरुष' निरंतर शुद्ध उपयोग में रहते है, वह शुद्ध उपयोग मुक्ति में फलित होता है। और निरंतर शद्ध उपयोगी है. मनवचन-काया का मालिकी भाव नहीं, इसलिए उन्हें हिंसा का दोष नहीं लगता, हिंसा के सागर में रहते हुए भी!! जिसकी निरंतर आत्मपरिणाम में ही स्थिति है, उसे कोई कर्म ही स्पर्श नहीं करता। ऐसी अद्भुत दशा 'ज्ञानी पुरुष' की है। जो देह के स्वामी नहीं, वे समग्र ब्रह्मांड के स्वामी है। यह 'ए.एम.पटेल' जो दिखाई देते हे, वह है तो मनुष्य ही, किन्तु 'ए.एम.पटेल' की जो वृत्तियाँ है और उनकी जो एकाग्रता है, वह पररमणता भी नहीं और परपरिणाम भी नहीं। निंरतर स्वपरिणाम में ही उनकी स्थिति है। निरंतर स्वपरिणाम में ही उनकी स्थिति है। निरंतर स्वपरिणाम में रहनेवाले कभी कभार हजारों वर्षों में एक ही होते है!! आंशिक स्वरमणता किसी को हो सकती है किन्तु सर्वांश स्वरमणता, वह भी संसारी वेष में नहीं होती। इसलिए इसे आश्चर्य लिखा गया है न! असंयति पूजा नामक घीट् आश्चर्य है यह!!! आत्मपरिणाम और क्रियापरिणाम, ज्ञानधारा और क्रियाधारा-दोनो 'ज्ञानी पुरुष' में भिन्न वर्तना में होती है। ज्ञानी पुरुष' को निरंतर स्वभाव __'ज्ञानी परुष' 'केवलज्ञान' में देखकर तमाम प्रश्नों के तत्क्षण समाधानकारी प्रत्युत्तर देते है। उनके जवाब किसी शास्त्र के आधार से नहीं निकलते, मौलिक जवाब रहते है। वे सोचकर, शास्त्र का याद करके नहीं बोलते. 'केवल ज्ञान' में 'देखकर' बोलते है। केवल ज्ञान' के चंद ज्ञेयों को वे देख नहीं पाते। इस काल में, इस क्षेत्र में संपूर्ण केवलज्ञान असंभव है। अज्ञान से लेकर केवलज्ञान तक के सर्व दर्शन की बातें उन्हों ने सुस्पष्ट की है। उनकी बातें स्थूल, सूक्ष्म से भी उपर की सूक्ष्मतर और सूक्ष्मतम की है। _ 'ज्ञानी पुरुष' के मुख पर निरंतर मुक्त हास्य होता है। कषाय से मुक्त होने पर मुक्त हास्य उत्पन्न होता है। सारा विश्व निर्दोष दिखाई देने पर मुक्त हास्य उत्पन्न होता है और मुक्त हास्यवाले पुरुष के दर्शन मात्र से कल्याण होता है। मन से मुक्त, बुद्धि से मुक्त, अहंकार से मुक्त, चित्त से मुक्त, वहाँ मुक्त हास्य है। वीतरागता है, वहाँ मुक्त हास्य है। ऐसा मुक्त हास्य सिर्फ 'ज्ञानी पुरुष' को ही होता है। मुक्त हास्य तो विश्व की अजायब चीज है। 'ज्ञानी पुरुष' को जबरदस्त यशनामकर्म होता है। इसलिए उनके नाम से अनेकों के काम सिद्ध हो जाते है। 'ज्ञानी पुरुष' इसे चमत्कार या 'मैंने किया' ऐसा कभी नहीं कहते, इसे वह यशनाम कर्म का फल कहते है। वे नहीं चाहते फिर भी लोग उन पर यशकलश डाले बिना नहीं रहते। 'ज्ञानी पुरुष' को अनंत प्रकार की सिद्धियाँ होती है। जिसे विश्व 12
SR No.009585
Book TitleGyani Purush Ki Pahechaan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Foundation
Publication Year2003
Total Pages43
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size325 KB
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