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________________ ज्ञानी पुरुष की पहचान ज्ञानी पुरुष की पहचान प्रश्नकर्ता : मगर ऐसे कोई नहीं होंगे तो ये सब जीव के उपर अन्याय नहीं होगा? दादाश्री : देखिये न, रात के समय में नये कपड़े खरीदने को जाये तो कोई देगा नहीं। कितना भी पैसा दो तो भी कोई नहीं देगा। ऐसा अभी आधी रात हो गई, काल (समय) बहुत अच्छा आनेवाला है। भगवान के निर्वाण के पच्चीससो साल के बाद, काल बहुत अच्छा आनेवाला है। सभी लोग सुखी हो जायेंगे। सारी दुनिया में बिलकुल शांति हो जायेगी। मगर अभी दस-बारह साल है, वह बहुत खराब है। उसमें भूकंप होंगे और देवकृत, मनुष्यकृत, कुदरतकृत ऐसी बहुत मुसीबतें आयेगी और ये चार अरब की बस्ती है, वो दो अरब की हो जायेगी। इसमें गेहुँ और कंकर दोनों अलग हो जायेंगे। प्रश्नकर्ता : ये दुनिया के जो प्रोब्लेम्स है, वह सभी कब सोल्व हो जायेंगे? ये दुनिया में सभी को सुख-शांति कब मिलेगी? ओर कितना समय लगेगा? दादाश्री : सारा दिन, सारी रात, जगत कल्याण के लिए सारी दुनिया में, फोरेन में, सभी जगह पर हम घूमते है और यह जगत कल्याण २००५ की साल में कम्प्लीट हो जायेगा। प्रश्नकर्ता : हम सभी यह देखने के लिए उस वक्त रहेंगे? दादाश्री : क्यों नहीं रहेंगे? प्रश्नकर्ता : २००५ में कोई भी दु:खी नहीं मिलेगा? दादाश्री : दुःख? वो खाने-पीने का दुःख रहेगा ही। मानसिक दुःख नहीं होगा। खाने-पीने का दु:ख भी लाख आदमीओं में दो आदमी को रहेगा। खाना तो दुनिया में बहुत है, अनाज भी बहुत है, सब चीज बहुत है लेकिन उनकी गुनहगारी से नहीं मिल रही है। भ्रष्टाचार जो जबरदस्ती से कराते है, वो सब चले जायेंगे। जिसको भ्रष्टाचार जबरदस्ती से करना पड़ता है, अपनी इच्छा नहीं है तो भी करना पडता है, वो सब इधर रहेंगे। प्रश्नकर्ता : ये दुनिया का क्या होनेवाला है? दादाश्री : दुनिया की स्थिति बहुत अच्छी हो जायेंगी। पच्चीससो साल से भस्मक ग्रह की असर से हिन्दुस्तान का बूरा काल(समय) था। अब अच्छा काल आ रहा है। २००५ में हिन्दुस्तान सारी दुनिया का केन्द्र हो जायेगा। दुनिया के सभी लोग पूछने को आयेंगे कि हम कैसे जीवन जीये, कैसे खाये, क्या पीये?। प्रश्नकर्ता : आपको ये अध्यात्म ज्ञान कैसे प्राप्त हुआ? दादाश्री : १९५८ में सुरत के रेल्वे स्टेशन पर हमको ऐसे ही ये ज्ञान हो गया। हमने कोई प्रयत्न नहीं किया था। This is but natural! वो शाम को साड़े पाँच बजे थे। उस समय हमारा बिझनेस सोनगढ में था। वहाँ से साड़े पाँच बजे हम सूरत आये थे। वहाँ स्टेशन पर बहुत आदमीओं की भीड थी। फिर एक लकड़ी की बेंच पर हम सो गये, तब एक घंटे में हमने सब देख लिया कि ये दुनिया क्या चीज है? किसने बनायी? किस तरह से बनी? क्युं बनायी? हम कौन है? कर्म कौन करता है? मोक्ष क्या चीज है? बंधन क्या चीज है? दुःख क्या चीज है? आधि क्या चीज है? व्याधि क्या चीज है? समाधि क्या चीज है? वो सब हमने देख लिया। आपके साथ आज बात करते है, तो वो सब हम देखकर बोलते है। अभी कोई शास्त्र की बात नहीं बोलते, हम ज्ञान में देखकर बोलते है। फिर जितने भी प्रश्न पूछीये, इधर देखकर बोलने में क्या हर्ज? कोई बोजा ही नहीं हमको! प्रश्नकर्ता : ये ज्ञान प्राप्त होने से आपको क्या फायदा हुआ? दादाश्री : फायदा तो, हम निरंतर समाधि में ही रहते है। कोई गाली दे तो भी समाधि। हमको तो चलते-फिरते निरंतर समाधि ही रहती है। प्रश्नकर्ता : ये ज्ञान हुआ, उसके पहले आपकी क्या स्थिति थी? आप कौन सी स्थिति में थे? दादाश्री : केवल अज्ञानी। हम भी अज्ञानी थे। हमको ईगोइजम था।
SR No.009585
Book TitleGyani Purush Ki Pahechaan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Foundation
Publication Year2003
Total Pages43
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size325 KB
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