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________________ ज्ञानी पुरुष की पहचान ज्ञानी पुरुष की पहचान प्रश्नकर्ता : आप जो नवकार मंत्र बोले, पंच परमेष्ठि की आराधना की, वो भी व्यवहार है न? दादाश्री : हाँ, बराबर है, सच बात है। वह सब व्यवहार है। मन व्यवहार में है, वाणी भी व्यवहार में है, शरीर भी व्यवहार में है और हम व्यवहार से निर्लेप रहते है और व्यवहार में हम बिलकुल कुशल रहते है। हमारा व्यवहार आदर्श रहता है। हमारे व्यवहार में कोई इतनी भी गलती नहीं निकाल सकता। और आत्मधर्म की बात अलग है। हम निरंतर स्वपरिणाम में, स्वपरिणति में रहते है। परपरिणति हमने सत्ताईस साल से नहीं देखी। हम स्वपरिणाम में ही रहते है, स्वचारित्र में ही रहते है। प्रश्नकर्ता : आप और मैं, दोनों में फर्क नहीं है, तो आप भगवान कैसे और मुझे आपको मानना कैसे? दादाश्री : बाय रियल व्यु पोईन्ट, आप और हम - दोनों ही भगवान है। बाय रिलेटिव व्यु पोईन्ट, ये विशेषण है और वो सब विनाशी है। भगवान तो हम नहीं है। जो अंदर बैठे है वो ही भगवान है। वो दादा भगवान है और ये दिखते है वो A.M.Patel है। हम थोडे समय इधर भी रहते है और थोड़े समय उधर भी रहते है। हम जब बात करते है, तब A.M.Patel के पास आ जाते है। नहीं तो हम 'दादा भगवान' के साथ एकाकार रहते है। हमको १९५८ में ये ज्ञान प्रगट हो गया। पहले तो कुछ भी नहीं थे। हमको ऐसा लगता था कि हमको कुछ न कुछ मिलेगा लेकिन ऐसा विज्ञान मिलेगा, ऐसा तो हमारे खयाल में ही नहीं था। लेकिन ये तो बड़ी चीज प्रगट हो गई है। उससे आगे कुछ जानने का नहीं है। प्रश्नकर्ता : आपको कभी ऐसा अनुभव हुआ है कि कोई चीज रखकर भूल गये? जैसे रिक्षे में सफर करते है, तो छाता भूल गये ऐसा कुछ? दादाश्री : हमें कुछ भूल जाये तो कोई परेशानी नहीं होती। अरे, हमें आज क्या दिन है, कौन सी तारीख है, वो भी याद नहीं है। हमें दुनिया की कोई भी चीज याद नहीं रहती। नो मेमरी ! प्रश्नकर्ता : खुदा को तो हर चीज याद रहती है, फिर आपको क्यों नहीं याद रहती? दादाश्री : नहीं, खुदा को कभी याद नहीं रहता। वो जो याददाश्त है न, मेमरी है न, वो क्या नुकसान करेगी? ईमोश्नल करेगी। याद तो सब इन्सान को रहती है। खुदा को तो याददाश्त होती ही नहीं है। मगर खुदा के पास उपयोग है और उपयोग से वह सब कुछ जानते है। यह जो अक्रम विज्ञान है, वह स्वाभाविक विज्ञान है। प्रश्नकर्ता : तीर्थंकरों में अंतिम महावीर भगवान हो गये। तो उनके बाद आगे कोई तीर्थंकर होनेवाले है? दादाश्री : नहीं, ये टर्न में नहीं होंगे। ये फर्स्ट टर्न पूरा हो जायेगा फिर सेकन्ड टर्न आयेगा, उसमें दूसरे तीर्थंकर होंगे। ये दुनिया ऐसे गोल घुमती है, ऐसे ये राउन्ड में होते है। उसमें हाफ राउन्ड में चौबीस तीर्थंकर होते है। दूसरे हाफ राउन्ड में चौबीस तीर्थंकर होते है। अभी ये हाफ राउन्ड होता है। अभी ये हाफ राउन्ड पूरा हो जायेगा, लेकिन तीर्थंकर चौबीस पूरे हो गये। ये हाफ राउन्ड पूरा होने के लिए अभी चालीस हजार साल बाकी है। प्रश्नकर्ता : ये चालीस हजार साल में ऐसी महान आत्मा कोई नहीं होगी? दादाश्री : नहीं, यह अंतिम है। अभी उनसे आगे कोई है नहीं। प्रश्नकर्ता : जाति स्मरणज्ञान आपके पास है? दादाश्री : वह ज्ञान संसार के लिए है और यह तो विज्ञान है। हम तो ऐसा जानते ही नहीं कि आपका पिछला जन्म कौन सा था! हमारा पिछला जन्म कौन सा है, ये भी हम नहीं जानते है।
SR No.009585
Book TitleGyani Purush Ki Pahechaan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Foundation
Publication Year2003
Total Pages43
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size325 KB
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