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________________ ज्ञानी पुरुष की पहचान ज्ञानी पुरुष की पहचान हमको लोभ नहीं था, मगर ईगोइजम इतना ज्यादा था कि रात को नींद भी नहीं आती थी कभी कभी। जबसे ईगोइजम चला गया तबसे समाधि हो गयी। १९५८ में ईगोइजम कम्लीट चला गया। बुद्धि भी चली गई। प्रश्नकर्ता : ब्रह्मांड का आपको जो दर्शन हुआ, उसका थोडा सा वर्णन किजीए। दादाश्री : अभी जो दुनिया की बाउन्ड्री है, वो बाउन्ड्री तो बहुत लिमिटेड है। मगर ये दुनिया इतनी नहीं है। वो तो बहुत बड़ी है। अपने जैसी तो पंद्रह दुनिया है। उसमें भी आदमी रहते है और मोक्ष के लिए वो सब हररोज प्रयत्न में रहते है। हमने वो सब जोग्रोफिकल (भौगोलिक) देख लिया और दूसरा, हम कौन है? ये दुनिया क्या है? किसने बनायी? भगवान क्या है? वो सब देख लिया. बस! इसमें आपको क्या पछने का विचार है? जैसा देखा है वैसा हम डिटेल में सब स्पष्टीकरण कर देंगे और मोक्ष का रस्ता भी बता देंगे। हम मोक्षदाता है और मोक्ष का दान देने के लिए आये हैं। जिसको मोक्ष चाहिये, उसको मोक्ष देते है। कोई ढाई सो, कोई तीन सो, सबकी डिग्री अलग है। अनेक जन्मों से ये डिग्री बढ़ती है। हम ३६० डिग्री पूरी करके सेन्टर में आकर वापस ३५६ डिग्री पर रहे है। हम सेन्टर में आकर, उसे स्पर्श करके वापस ३५६ डिग्री पर आ गये। हमको चार डिग्री कम है। प्रश्नकर्ता : ये अनुभूति आपको कैसे मालुम हुई कि आप ३५६ डिग्री पर है? दादाश्री : वो सब हमको समझ में आ गया है। हम किसी भी पुस्तक की बात बोलते ही नहीं। हम तो विज्ञान में देखकर ही बोलते है। हम तो हजारो बातें बोलते है लेकिन सभी देखकर ही बोलते है। हमको विचार भी नहीं करना पडता। विचार हमको है ही नहीं। हम विचार करके कभी नहीं बोलते। हमारी निर्विचार भूमिका है। हमको कोई संकल्प नहीं, कोई विकल्प नहीं, कोई विचार नहीं ऐसी निर्विचार दशा है, निर्विकल्प दशा है, निरीच्छक दशा है। ये दुनिया में कोई ऐसी चीज नहीं है, जिसकी हमें इच्छा हो, कोई भी प्रकार की इच्छा नहीं है। हमको बुद्धि बिलकुल नहीं है, हम अबुध है। प्रश्नकर्ता : आपको जो दशा प्राप्त हुई है, वो प्राप्त करने के लिए कौन सी साधना करनी पडती है? दादाश्री : नहीं, ये साधना से नहीं होता। This is but natural! प्रश्नकर्ता : याने गोड़ गीफ्ट हुआ? दादाश्री : नहीं, भगवान किसी को गीफ्ट देते ही नहीं। जो खुद ही भगवान है फिर कौन गीफ्ट देनेवाला है! मगर ये प्राप्त होना सायन्टिफिक सरकमस्टेन्शियल एविडन्स है। जितने साधन किये, वो सब साधन पूरे हो जायेंगे, तब ये टाईम आ जायेगा। प्रश्नकर्ता : तो फिर आपकी अवस्था तक हमें कैसे पहुँचना है? दादाश्री : जिसकी अवस्था हमें चाहिये, उसके पास रहने की हम ओपन टु स्काय है, हमारे यहाँ सिक्रेट बिलकुल नहीं है। सिक्रेट होता है, वहाँ भगवान नहीं होते, संपूर्ण भगवान नहीं होते है। सिक्रेट है, वहाँ कपट है और कपट है, वहाँ भगवान नहीं होते है। कभी थोड़े थोड़े श्रद्धा स्वरूप भगवान होते है लेकिन संपूर्ण प्रकाश नहीं होता है। हमारे को लाईट संपूर्ण है, दर्शन में संपूर्ण है और वर्तन में ३५६ डिग्री है। वर्तन में चार डिग्री कम है लेकिन हमारे वर्तन में एक भी स्थूल भूल नहीं है। सूक्ष्म भूल याने बुद्धिवाले लोग समझ जायें ऐसी भल भी नहीं। हमारे को भूल है, सूक्ष्मतर और सूक्ष्मतम। मगर वो दूसरों को नुकसान नहीं करती है। हमको ये चार डिग्री कम है, इसके लिए ये भूल रही है। सब धर्म समान नहीं है। ३६० डिग्री के धर्म है और सेन्टर में खुदा है। धर्म में कोई लोग दस डिग्री पर है, कोई पच्चीस डिग्री पर है, कोई पचास डिग्री पर है, कोई सो डिग्री पर है, कोई देढ सो, कोई दो सो.
SR No.009585
Book TitleGyani Purush Ki Pahechaan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Foundation
Publication Year2003
Total Pages43
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size325 KB
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