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________________ ज्ञानी पुरुष की पहचान ज्ञानी पुरुष की पहचान आपका सिर यहाँ हमारे चरणों में रख देंगे, तो सब ईगोइज़म चला जाता है। This is the main solvent of egoism ! ईगोइज़म का सोलवन्ट कभी निकला ही नहीं। प्रश्नकर्ता : आपके विचारों में जैनीझम का कुछ प्रभाव है? दादाश्री : हाँ, जैनीझम अकेले का नहीं, चार वेद का भी प्रभाव के पास है, वह दूसरी कोई जगह पर नहीं मिलती। वह आत्मा ही परमात्मा है। वह 'ज्ञानी पुरुष' के अंदर प्रगट हो गयी है। उनकी कृपा से सब कुछ हो सकता है। उनकी एक बाल जितनी भी कृपा हो तो भी सारी दुनिया का भला हो जाता है। 'ज्ञानी पुरुष' की कृपा से सब कुछ हो सकता है। 'ज्ञानी' किसी चीज के भिखारी नहीं रहते है। उनको चाहे सारी दुनिया का सोना दे, तो उनको जरूरत नहीं है। सारी दुनिया की स्त्री दे तो भी उनको विषय का विचार भी नहीं आता और वह मान के भी भिखारी नहीं है, कीर्ति के भिखारी नहीं है, उनको अपमान का डर नहीं है, भय भी नहीं है। वीतराग है। उनको दुनिया में कोई आदमी क्या चीज दे सकता है?! और उनको कुछ चाहिये भी नहीं। आपको इधर सब चीज मिल सकती है। सारी दुनिया का ही सुख उनके पास है और खुद ही सुख भुगतते है। यहाँ पर सब कुछ खुलासा कर सकते है। उनका शब्द कैसा है? वो शब्द अंदर जाता है, अंदर जाकर आवरण तोड़ देता है और आत्मा को टच होता है, फिर आपको भी प्रकाश मिल जाता है। ये आवरणभेदी शब्द होते है, इसमें बहुत वचनबल है। प्रश्नकर्ता : हमारे कोई प्रश्न नहीं है। प्रश्न आपके दर्शन करते ही खतम हो गये। दादाश्री : बस, बस, बराबर है। हमारे दर्शन से सभी प्रश्न खतम हो जाते है, पूरा समाधान हो जाता है। 'ज्ञानी पुरुष' कभी दुनिया में होते नहीं है। कभी किसी दफे दुनिया में 'ज्ञानी' का अवतार होता है। नहीं तो (आत्म) ज्ञानी' दुनिया पर नहीं होते। दुनिया में जब 'ज्ञानी' होते है तो दुनिया बहुत अजायब (अद्भूत) हो जाती है। उनके दर्शन हो गये तो फिर उससे ओर क्या चीज बाकी रहेगी?! 'ज्ञानी पुरुष' मनुष्य के जैसे दिखते है लेकिन वह अलौकिक होते है, लौकिक नहीं। मोक्ष की बात 'ज्ञानी परुष' के सिवा दूसरी जगह पर नहीं है। उनके दर्शन वह तो दुनिया में सबसे बड़ी चीज है। उनके दर्शन से, मात्र दर्शन से ही कितने सारे पाप भस्मीभूत हो जाते है। आत्मा की प्राप्ति पाप को जलाये बिना तो होती ही नहीं। आदमी कितना पाप लेकर फिरता है, फिर उसको साक्षात्कार कैसे होगा? प्रश्नकर्ता : मगर आपके बेसिक प्रिन्सिपल जैनीझम पर है। दादाश्री : नहीं, नहीं, हमारा सिद्धांत निष्पक्षपाती है। प्रश्नकर्ता : आप कौन से धर्म में मानते है? दादाश्री : सभी धर्म हमारे है। हम खुद ही है। हम तो निष्पक्षपाती है। हमारा कोई बोस नहीं, हमारा कोई अन्डरहेन्ड नहीं। प्रश्नकर्ता : आपकी ये फिलोसोफी है, वो किसी एक धर्म को लक्ष में रखकर है या सर्व धर्म के लिए? दादाश्री : नहीं, नहीं, ये सारी बातें मौलिक है। बिलकुल मौलिक है और आगे जो 'ज्ञानी' हो गये, उनके साथ इसका कनेक्शन है। फिलोसोफी दूसरी तरह की है लेकिन प्रकाश वह ही है। हम नया दूसरा प्रकाश कहाँ से लाये? प्रश्नकर्ता : आप मस्जिद में जाते है, देहरासर में जाते है, ऐसा क्युं? दादाश्री : हम मंदिर में भी जाते है। हमारे लिए नहीं जाते है, लेकिन सबके एन्करेजमेन्ट के लिए जाते है। क्योंकि सबकी मान्यता में आये कि मंदिर में जाना ही चाहिये। जहाँ तक बालिग है, वहाँ तक मंदिर में जाने का, मस्जिद में जाने का। बड़ा हो गया फिर जाने की जरूरत नहीं। फिर भी दूसरे को 'नहीं जाने का' ऐसा कोई बोल सकता ही नहीं। बड़ा हो गया तो भी जाना ही चाहिये, नहीं तो उसके पीछे दूसरे लोग नहीं जायेंगे।
SR No.009585
Book TitleGyani Purush Ki Pahechaan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Foundation
Publication Year2003
Total Pages43
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size325 KB
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