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________________ ज्ञानी पुरुष की पहचान ३६ ज्ञानी पुरुष की पहचान हो गया। और फायदा क्या हुआ? जिधर नुकसान है, वहाँ फायदा सदैव होता ही है। बिना फायदे तो नुकसान होता ही नहीं। फायदा यह हुआ कि हमको आराम मिला और जगत का सोचने को बहुत टाईम मिल गया, नहीं तो हमको टाईम ही नहीं मिलता। हमने सबको बोल दिया था कि हमको ओपरेशन नहीं करवाना है, दूसरों का ब्लड नहीं लेना है। दूसरों का ब्लड हमको फीट नहीं होगा। ये देह छूट जाए तो कोई परवाह नहीं है लेकिन ब्लड दुसरे का नहीं होना चाहिये। मैंने विचार किया कि हमको ये फ्रेक्चर नहीं हो सकता, कितने बड़े बड़े लोगों को हुआ है लेकिन हमको, 'ज्ञानी पुरुष' को नहीं होना चाहिये। बाद में जाँच की तो वो वेदनीय कर्म का उदय नहीं था लेकिन नामकर्म का उदय था। इस बात से हमें सब हिसाब मिल गया। 'ज्ञानी पुरुष' के चार कर्म बहुत ऊँचे रहते है - वेदनीय याने शाताअशाता! अशाता वेदनीय हमको कोई दफे आती है। हम बोलते है कि आप हमारा अपमान करो, हमको गाली दो, आप स्वतंत्र है, हम आपको आशीर्वाद देंगे लेकिन कोई गाली नहीं देता। पहले तो हम बोलते थे कि एक थप्पड़ हमें मारोगे तो हम आपको पांचसो रूपये देंगे मगर किसी ने थप्पड़ नहीं मारा। वो अस्पताल के सभी डाक्टर लोग हमको बोलते थे कि हमने आपको बहुत परेशान किया मगर इसमें हेतु क्या था? भगवान क्या देखता है कि ये किस हेतु से कर रहे है। हमको आराम हो जाये वो ही हेतु था। हमको बोर्ड (विशेष पहचान) कुछ नहीं है। वो भगवा कपड़ेवाले को भगवा कपड़े का बोर्ड है। सफेद कपड़ेवाले को सफेद कपड़े का बोर्ड है। हमारा कोई बोर्ड नहीं है। हम तो कोट-टोपी पहनकर बाहर घूमेंगे तो कौन पहचानेगा? कोई नहीं पहचानेगा। बोर्डवाले को हर कोई पहचानता है। हमको मिलनेवाला जो सच्चा आदमी है, वो प्रारब्धवाला मिल जायेगा। इधर बोर्ड की जरूरत नहीं। ज्ञानी कृपा - द्रष्टि का फल! 'ज्ञानी पुरुष' मिलना बहुत मुश्किल है। बहुत जन्मों का पुण्य इक्टठ्ठा हो जाये, तब 'ज्ञानी पुरुष' मिलते है। 'ज्ञानी पुरुष' मिलना वो तो दुर्लभ, दुर्लभ ऐसा हन्ड्रेड टाईम (सो बार) दुर्लभ लिखा है और मिले तो पहचानने में नहीं आयेंगे। पहचानने में आ गये तो टाईम की यारी नहीं मिलेगी। क्या बोलेगा कि आज हमारे को ये काम है, वो काम है। प्रश्नकर्ता : 'ज्ञानी पुरुष' भावना के फल स्वरूप मिलते है? दादाश्री : पिछले जन्म का पुण्य है और अभी पुण्य का विचार है और मन में ऐसे विचार होने चाहिये कि, 'हमको ये संसार की खटपट नहीं चाहिये। पैसा हो तो भी दुःख होता है और हमको मोक्ष में जाने की जरूरत है।' मोक्ष की भावना होती है, तो आपको ये भावना से 'ज्ञानी पुरुष' मिल जाते है। 'ज्ञानी पुरुष' की द्रष्टि मिली तो उसको क्या फल मिलता है? आनुसंगिक फल मिलता है याने मोक्ष फल मिलता है। 'ज्ञानी पुरुष' की सेवा का फल दुनियादारी में अभ्युदय होता है याने आपको संसार की हरेक चीज अच्छी मिलती है। मोक्ष जाने के लिए कोई अड़चन नहीं होती, ऐसे सब साधन मिल जाते है। 'ज्ञानी पुरुष' की पहचान, ज्ञानी द्वारा ! हम जिसको 'ज्ञान' देते है, उन सबको सम्यक् दर्शन हुआ है। ये तो सम्यक् दर्शन से भी आगे 'क्षायिक दर्शन' होता है। प्रश्नकर्ता : उसके क्या लक्षण है? दादाश्री : आर्तध्यान-रौद्रध्यान कभी नहीं होता। धर्मध्यान और शुक्लध्यान निरंतर रहता है। चिंता कभी नहीं होती। और ये सबके लक्ष में निरंतर आत्मा है, एक सेकन्ड भी आत्मा को नहीं भूलते, निरंतर आत्मा में ही जागृत रहते है। प्रश्नकर्ता : आत्मा में जागृत रहना वह मुश्किल है। आप बताईए, उसका साधन क्या है? दादाश्री : हम 'ज्ञान' देते है तब आ जाना। आत्मा 'ज्ञानी पुरुष'
SR No.009585
Book TitleGyani Purush Ki Pahechaan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Foundation
Publication Year2003
Total Pages43
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size325 KB
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