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________________ ज्ञानी पुरुष की पहचान ३४ ज्ञानी पुरुष की पहचान हम लघुतम भाव में रहते है, रियल में हम गुरुतम भाव में रहते है और स्वभाव में हम अगुरु-लघु स्वरुप रहते है। हम गुरुतम भी है और लघुतम भी है और खुद के स्वभाव में अगुरु-लघु है। है, मगर लोगों की समझ में नहीं आता। जैसे बच्चे के हाथ में डायमन्ड दे तो वो डायमन्ड लेकर घुमेगा और कोई आदमी आकर बिस्कुट देगा तो उसको डायमन्ड दे देगा। क्योंकि उसको डायमन्ड की कोई किंमत नहीं है। कांच है कि हीरा है, वो आपको कैसे मालूम होगा? आपके पास तो जौहरीपन (परखशक्ति) नहीं है। जौहरीपणा होना चाहिये न?! 'ज्ञानी पुरुष' सारे ब्रह्मांड के स्वामी बोले जाते है और ऐसा खुद ही बोलते है, दूसरा कोई बोलता नहीं। क्योंकि जौहरी कोई है नहीं। फिर हीरे को खुद ही बोलना पडता है कि आज जौहरी है नहीं कोई। ये तो सब खाना खाते है और सो जाते है। दूसरा कुछ धंधा करते है, वो तो सब प्रकृति करवाती है, अपने खुद का पुरुषार्थ नहीं है। ऐसे ही चलता है। ऐसा 'ज्ञानी पुरुष' कभी देखने को नहीं मिलेंगे। देखने को नहीं मिलेंगे तो सुनने को कहाँ से मिलेंगे?! इसलिए अपने कवि ने लिखा है कि पुण्य का प्रकाश हो जाता है, तब ये दर्शन मिलते है। 'ज्ञानी पुरुष' जो आज हम है, वे तो बम्बई में फिरते ही है न! लेकिन इन लोगों की समझ में नहीं आयेगा। क्योंकि 'ज्ञानी पुरुष' का ये ड्रेस है, कोट है, ऐसी टोपी है काली और बूट है। इससे कोई भी आदमी ऐसा नहीं समझ सकता कि ये 'ज्ञानी परुष' है। कोई बड़ा भाग्यशाली हो तो फिर वो आँख देखकर पहचान सकता है। ये खाना खाते है, तो आपको लगता है कि हम खाना खाते है लेकिन हम खुद नहीं खाते। वो तो 'पटेल' खाते है। ये जो 'पटेल' है, वो तो जलाने की चीज है। वो जो बुलबुला है, वो तो फूट जायेगा एक दिन, उसे आप देख रहे है। हमको जब पैर का फ्रेकचर हुआ था, वो दिन हमको कुछ मालूम ही नहीं हुआ कि हमको कुछ हो रहा है। आज तक हमको कभी दुःख हुआ ही नहीं। फिर डाक्टर लोग हमको बड़े अस्पताल में ले गये। बड़ा डाक्टर दूसरे सब छोटे डाक्टरो को क्या बोलने लगा कि, 'देखो, इनके मुख पर अभी भी कितना हास्य है! इनको कोई दुःख होता ही नहीं। ये तो देखो आत्मा अलग है, ऐसा लगता है।' ___Real में, Relative में - ज्ञानी की ज्ञानदशा ! सारी दुनिया में एक ही 'ज्ञानी' रहते है। वो अजोड़ चीज है। उनकी जोड़ी नहीं मिल सकती। उनमें स्पर्धा नहीं होती है। जो स्पर्धावाला है, वो 'ज्ञानी' नहीं है। बड़ा डाक्टर हमको बोलता था कि 'आप बहुत सहन करते है। इतना सहन आप कैसे करते हो?' मैंने बोल दिया कि. 'मेरे को तो एक इन्जेक्शन देते हो, वो भी सहन नहीं होता।' सहनशीलता वो तो ईगोइजम है। हमारे में ईगोइजम नहीं है, सहनशीलता नहीं है। ईगोइजम है, उधर सहनशीलता रहती है। हमारे में जब ईगोइजम था, तब हम सब कुछ सहन करते थे। कितने भी ईन्जेक्शन दे तो कुछ होता भी नहीं था, दियासलाई पूरी जले तब तक उँगुलि रखते थे। इतना ईगोइज़म था हमारा!!! अभी तो हमको दांत दुखता है, वो पता चल जाता है कि, 'ज्यादा दुखता है कि कम दुखता है, हमको इसमें परेशानी नहीं होती है। लेकिन पैर के फ्रेक्चर में तो कुछ पीड़ा ही नहीं हुई। फिर हमने जाँच की तो मालूम पड़ा कि ये हमारे नामकर्म का उदय था। हमारी भूल नामकर्म में थी, उसका ये फल था। नामकर्म क्या है? अंगउपांग सब नोर्मल होते है, सबको मनोहर लगते है। ज्ञानी' को अंग-उपांग नोर्मल होते है। हमारे नामकर्म की क्षति थी, इसलिए पैर आधा इंच छोटा दुनिया में कोई छोटे से छोटा आदमी है, तो ये 'A.M.Patel' है। जिधर छोटे से छोटा है, वहाँ ही भगवान प्रगट होते है। बड़े से भगवान दूर रहते है। ये लघुतम दशा है। हम गुरुतम भी है, भगवान भी हमारे से बड़े नहीं और संसार के लिए हम लघुतम है, हमारे से छोटा कोई जीव नहीं। आप सब बड़े है मेरे से। मैं तो सारी दुनिया का शिष्य हूँ। लघुतम आपकी समझ में आता है कि लघुतम का क्या अर्थ है? तो रिलेटिव में
SR No.009585
Book TitleGyani Purush Ki Pahechaan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Foundation
Publication Year2003
Total Pages43
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size325 KB
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