SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 32
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दादा भगवान? दादा भगवान? में गंडु राजा का राज नहीं है, वीतरागों का शासन है। चौबीस तीर्थंकरों का शासन है। आपको भाती है यह तीर्थंकरों की ऐसी बात? जागृति, जुदापन की। मुझे कभी-कभी बुखार चढ़ता है तब कोई आकर पूछे कि, 'आपको बुखार आया है क्या?' तब मैं कहता हूँ कि, 'हाँ, भैया ए.एम.पटेल को बुखार आया है, जिसे मैं जानता हूँ।"मुझे बुखार आया' ऐसा कहूँ तो मुझ से लिपट जायेगा। खुद के लिए जैसी कल्पना करेगा तुरंत ही खुद वैसा हो जायेगा। इसलिए मैं ऐसा नहीं बोलता कि 'मुझे बुखार आया है'। 'हमारे' अनुभव की बात मैं फर्स्ट क्लास में रेलयात्रा नहीं करता, क्योंकि दूसरे पैसेंजर फिर पीछा करते हैं। मुझे उलटा-सीधा बोलना नहीं आता, वे पूछे कि आपका पता-ठिकाना क्या है, तब मैं सही-सही बता दूँ और वह खोजता हुआ घर पर आ धमकें। अर्थात् यह सब बेतुकी झंझट क्यों मोल लेना? इसकी तुलना में मेरे सगे भाईओं जैसे थर्ड क्लास के पैसेंजर अच्छे हैं। तात्पर्य क्या है कि आने-जाने पर किसी की ठोकरें लगें तो अंदरूनी कषाय भाव क्या है इसका पता चले। किसी की ठोकर लगने पर भीतरी कमजोरियों का पता चले। ताकि इस तरह सारी कमजोरियाँ निकल जाएँ। रेलयात्रा पूरी होने के बाद जब पैर दुखने लगे तब क्या कहूँ, 'अंबालालभाई, आपके पैरों में बहुत दर्द हुआ, नहीं? थक गये हैं क्या? सिकुड़कर बैठना पड़ा इसलिए पैर दु:खते होंगे।' फिर बाथरूम में ले जाकर पीठ थपथपाऊँ, 'मैं हँ न आपके साथ, डरते क्यों हैं? हम, शुद्धात्मा भगवान जो है आपके साथ।' ताकि फिर से फर्स्ट क्लास हो जाए। मुसीबत में आने पर पीठ थपथपाकर कहना। ज्ञान होने से पहले अकेले थे, अब दो हुए। पहले तो किसी का भी सहारा नहीं था। खुद ही अपने आप सहारा ढूँढते रहें। अब एक से दो हए। ऐसा कभी किया था या नहीं? प्रश्नकर्ता : किया था। दादाश्री : उस समय हमें अलग तरह का महसूस होता है न? मानों सारे ब्रह्मांड के राजा हो ऐसे बोलना चाहिए। यह सारी अपने अनुभव की बात मैंने आपको बता दी। ____ मैं 'ए.एम.पटेल' के साथ बहुत बातें किया करता था। मुझे अच्छी लगे ऐसी बातें किया करता था। हम भी इतने बड़े छिहत्तर साल के अंबालालभाई से ऐसा कहते हैं न! 'छिहत्तर साल हुए, कुछ सयाने हुए हैं? वह तो अनुभव से सही ज्ञान पाकर सयाने हुए हैं।' प्रश्नकर्ता : आप कब से बातें किया करते थे? दादाश्री : ज्ञान होने के बाद। पहले तो कैसे बात करता मैं? 'मैं अलग हूँ' ऐसा भान हुआ उसके बाद में। जब ब्याहने बैठे थे उसे याद करके अंबालाल से कहे कि, 'ओहोहो! आप तो ब्याहने बैठे थे न क्या! फिर सिर पर से पगड़ी खिसक गई थी, फिर आपको विधुर होने का विचार आया था' ऐसा भी सुनाऊँ मैं। ब्याहते समय का लग्न मंडप, पगड़ी कैसे सरक गई थी, सब नजर आये। विचार आते ही नजर आये। हम बोलें और हमें आनंद आये। ऐसी बात करने पर वे खुश हो जाएँ। (६) पत्नी हीराबा के साथ एडजस्टमेन्ट मतभेद टालने सावधानी ही बरती ब्याहते समय पुकारते हैं, 'समयानुसार सावधान'। यह जो महाराज कहते हैं वह सही है, समय आने पर सावधान रहने की आवश्यकता है, इसी शर्त पर संसार में ब्याहा जाता है। वह यदि उछल पड़ी हो और हम भी उछल पडें, वह असावधानी कहलाये। वह जब उछल पड़े तो हम शांत हो जाएं। सावधानी बरतना जरूरी नहीं क्या? ऐसे हम सावधानी बरतते थे। दरार-वरार होने नहीं देते। दरार पड़ने की नौबत आने पर वेल्डिंग कर दे फिर।
SR No.009584
Book TitleDada Bhagvana Kaun
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2007
Total Pages41
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size283 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy