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________________ दादा भगवान? दादा भगवान? मेरी तीस साल की उम्र में ही मैंने सब रिपेर कर दिया था। घर में फिर झंझट ही नहीं, मतभेद ही नहीं। यद्यपि पहले हमारा उनसे बखेड़ा होता था, वह नासमझी का बखेड़ा था। क्योंकि स्वामीत्व जताने गये थे। प्रश्नकर्ता : सभी जो स्वामीत्व जताते हैं और दादाजी आप यदि स्वामीत्व जतायेंगे, उसमें अंतर तो रहेगा ही न? दादाश्री : अंतर? कैसा अंतर? स्वामीत्व जताना माने पागलपन! मेडनेस कहलाये!! अंधेरे के कितने भेद होते हैं? प्रश्नकर्ता : फिर भी आपका थोड़ा अलग तरह से होता होगा न? आपका तो कुछ नई तरह का ही होगा न? दादाश्री : थोड़ा अंतर रहेगा। एक बार मतभेद बंद करने के बाद फिर से उस बात पर मतभेद होने नहीं दिया। और यदि हो गया तो हमें मोड़ना आता है। मतभेद तो प्राकृतिक रूप से हो जाए, क्योंकि मैं उसके भले के खातिर कहता होऊँ फिर भी उसे उलटा लगे तो फिर उसका क्या उपाय है? सही-गलत करने जैसा ही नहीं है इस संसार में। जो रुपया चला वह खरा और नहीं चला वह खोटा। हमारे तो सारे रुपये चलते हैं। आपका तो कहीं-कहीं नहीं चलता होगा न? प्रश्नकर्ता : यहाँ दादाजी के पास चलता है. और कहीं नहीं चलता। दादाश्री : ऐसा? ठीक है तब! इस ऑफिस में चलता है तो भी बहुत हो गया। यह तो दुनिया का हेड ऑफिस कहलाये, हम ब्रह्मांड के मालिक जो ठहरे! ऐसा सुनने पर लोग प्रसन्न हो जाएँ कि ब्रह्मांड के मालिक! ऐसा तो किसी ने कहा ही नहीं है। और बात भी सही है न! जिसका इस मन-वचन-काया का स्वामीत्व छूट गया, वह सारे ब्रह्मांड का मालिक गिना जाएँ। की (आँख की) बीमारी थी। डॉक्टर उनका इलाज कर रहे थे और आँख को असर हो गया, इसलिए नुकसान हुआ। इस पर लोगों के मन में हुआ कि यह एक 'नया दुल्हा' पैदा हआ। फिर से ब्याह रचायें। कन्याओं की भरमार थी न! और कन्याओं के माता-पिता की इच्छा ऐसी कि इधर-उधर से कैसा भी करके आखिर कुएँ में धकेलकर भी निबटारा करना। इसलिए भादरण के एक पटेल आये, उनके साले की बेटी होगी, इसलिए आये। मैंने पूछा, 'क्या चाहिए आपको?' इस पर उसने कहा, 'आप पर कैसी गुजरी?' अब उन दिनों, १९४४ में मेरी उम्र छत्तीस साल की थी। उस समय मैंने उससे कहा, 'क्यों आप ऐसा क्यों कहते हैं?' इस पर वे कहते हैं, 'एक तो हीराबा की आँख चली गई। दूसरा, उनकी कोई संतान भी नहीं है।' मैंने कहा, 'संतान नहीं है कोई, पर मेरे पास कोई स्टेट भी नहीं है। बडौदा जैसी रियासत नहीं है कि मुझे उसका उत्तराधिकारी चाहिए। यदि स्टेट होता तो संतान को दिया कहलाये। यह एकाध छपरिया हो, थोड़ी-बहुत जमीन हो और वह भी हमें फिर किसान ही बनाये न! अगर यह स्टेट होता तो ठीक है।' और फिर मैंने उसे पूछा कि, 'आप ऐसा क्यों कहते हैं? हमने हीराबा से जब शादी हुई तब प्रोमिस किया है। इसलिए एक आँख चली गई तो क्या हुआ! दोनों आँख चली जायेगी तब भी मैं हाथ पकड़कर चलाऊँगा।' उसने पूछा, 'आपको दहेज देंगे तो कैसा रहेगा?' मैंने कहा, 'आप अपनी बेटी को कुएँ में धकेलना चाहते हैं? इससे तो हीराबा को दु:ख होगा। हीराबा को दु:ख होगा कि नहीं होगा? उनको लगेगा कि मेरी आँख चली गई इसलिए यह नौबत आई न!' हमने तो प्रोमिस टु पे किया है (वचन दिया है)। मैंने उसे बताया, 'मैं किसी भी हालत में मुकरनेवाला नहीं, चाहे दुनिया इधर से उधर हो जाए तब भी प्रोमिस माने प्रोमिस!' क्योंकि मैंने प्रोमिस किया है, प्रोमिस करने के बाद मुकरते नहीं। हमारा एक जनम उसके लिए, क्या तबाही हो जायेगी उससे! शादी के मंडप में हाथ थामा था. हाथ थामा माने प्रोमिस किया हमने। और सभी की हाजिरी में प्रोमिस किया था। क्षत्रिय के तौर पर हमने जो प्रोमिस किया हो, उसके लिए एक अवतार न्योछावर कर देना चाहिए। पत्नी से प्रोमिस किया, इसलिए... हीराबा की एक आँख १९४३ के साल में चली गई। उनको ग्लुकोमा
SR No.009584
Book TitleDada Bhagvana Kaun
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2007
Total Pages41
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size283 KB
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