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________________ चिंता चिंत्ता पुण्य और पाप साथ ले जाने देंगे। दूसरी सादी भाषा में कहूँ तो यहाँ जो जो गुनाह किये उसकी धाराएँ साथ आयेंगी। गुनाह की कमाई यहीं रहेगी और फिर मुकदमा चलेगा। तब धाराओं के अनुसार नया शरीर प्राप्त करके, नये सिरे से कमाई करके कर्ज चुकता करना पड़ेगा। इसलिए मुए, पहले से ही सीधा हो जा न! स्वदेश (आत्मा) में तो बहुत ही सुख है, पर स्वदेश देखा ही नहीं है न! __उगाही याद आये वहाँ... रात को सभी कहें कि, 'ग्यारह बज गये हैं, आप अब सो जाओ।' जाड़े का दिन है और आप मच्छरदानी में घुस गये। घर के सब लोग सो गये है। मच्छरदानी में, घुसने के बाद आपको याद आया कि, 'एक आदमी का तीन हजार का बिल बाकी है और मुद्दत हो गई है। आज दस्तखत करवाये होते तो मुद्दत मिल जाती। रातों-रात कहीं दस्तखत होते होंगे? होगें नहीं न? तो चैन से सो जाओ, तो हमारा क्या बिगडेगा? चिंता का मूल कारण जी जलता रहे, ऐसी चिंता तो काम की नहीं। जो शरीर को नुकसान करे और हमारे पास जो आनेवाली वस्तु थी उसमें विघ्न डाले। चिंता से ही ऐसे संयोग पैदा हो जाते हैं। सार-असार के अथवा ऐसे विचार करने चाहिए, मगर चिंता किस लिए? इसे इगोइज़म (अहंकार) कहा है। वह इगोइजम नहीं होना चाहिए। मैं कुछ हूँ और मैं ही चलाता हूँ', इससे उसे चिंता होती है और 'मैं होऊँगा तभी इस केस का समाधान होगा', उसीसे चिंता होती रहती हैं। इसलिये इगोइज़म वाले भाग का ओपरेशन कर देना, फिर जो सारासार के विचार रहें, उसमें हर्ज नहीं है। वह फिर भीतर खून नहीं जलाते। वर्ना चिंता तो खून जलाती है, मन जलाती है। चिंता होती हो, उस समय बच्चा कुछ कहने आया हो, तो उसके ऊपर भी उग्र हो जाते हैं अर्थात हर तरह से नुकसान करती है। यह अहंकार ऐसी चीज़ है कि पैसे हों या नहीं हों, पर कोई कहेगा कि, 'इस चन्दुभाई ने मेरा सब बिगाड़ा', तब अपार चिंता और अपार उपाधि हो जाती है। और संसार तो हमने नहीं बिगाड़ा हो तो भी कहेगा न! चिंता के परिणाम क्या? इस संसार में बाय प्रोडक्ट का अहंकार होता ही है और वह सहज अहंकार है। जिससे संसार सहजता से चले ऐसा है। वहाँ अहंकार का कारखाना खड़ा किया और अहंकार का विस्तार किया और इतना विस्तार किया कि जिससे चिंता बेहद हो गई। अहंकार का ही विस्तार किया। सहज अहंकार से, नोर्मल अहंकार से संसार चले ऐसा है। पर वहाँ अहंकार का विस्तार करके फिर चाचा इतनी उम्र में कहते है कि, 'मुझे चिंता होती है।' उस चिंता का परिणाम क्या? आगे जानवर गति होगी। इसलिए सावधान हो जाओ। अभी सावधान होने जैसा है। मनुष्य में हो तब तक सावधान हो जाओ, वर्ना चिंता हो वहाँ तो फिर जानवर का फल आयेगा। भक्त तो भगवान को भी धमकाये भगवान के सच्चे भक्त को यदि चिंता हो तो वह भगवान को भी धमकाये। 'हे भगवान! आप मना करते हैं तो फिर मुझे चिंता क्यों होती है?' जो भगवान से लड़ता नहीं वह सच्चा भक्त नहीं। यदि कोई उपाधि आये, तो आपके भीतर भगवान बैठा है, उसे डाँटना-धमकाना। भगवान को भी धमकाये, वह सच्चा प्रेम कहलाता है। आज तो भगवान का सच्चा भक्त मिलना भी मुश्किल है। सब अपनी-अपनी तरह से रहते हैं। श्री कृष्ण भगवान कहते है, 'जीव तू काहे सोच करे, कृष्ण को करना हो सो करे।' तब ये लोग क्या कहते हैं? कृष्ण भगवान तो कहते हैं, पर यह संसार चिंता किये बगैर थोड़े ही चलेगा? इसलिए लोगों ने चिंता के
SR No.009582
Book TitleChinta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2006
Total Pages21
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size294 KB
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