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________________ चिंत्ता चिंत्ता कारखाने खोले हैं। वह माल भी नहीं बिकता। कहाँ से बिके? जहाँ बेचने गये, वहाँ भी कारखाना तो होगा ही। इस संसार में एक भी मनुष्य ऐसा ढूँढ लाओ कि जिसे चिंता नहीं होती हो। एक ओर कहते हैं कि 'श्री कृष्ण शरणं मम्' और यदि श्री कृष्ण की शरण ली है तो फिर चिंता काहे की? महावीर भगवान ने भी चिंता करने को मना किया है। उन्हों ने तो एक चिंता का फल तिर्यंच गति कहा है। चिंता तो सबसे बड़ा अहंकार है। मैं ही यह सब चलाता हूँ' ऐसा जबरदस्त रहा करता है न, उसके फल स्वरुप चिंता पैदा होती है। मिला एक ही काँटा हर ओर से। चिंता तो आर्तघ्यान है। यह शरीर जितना शाता-अशाता का उदय लेकर आया है, उतना भुगतने पर ही छुटकारा है। इसलिए किसी का दोष मत देखना, किसी के दोष के प्रति दृष्टि मत करना और निज दोष से ही बंधन है ऐसा समझ जाओ। तुझ से कुछ बदलाव होनेवाला नहीं है। इस पर श्रीकृष्ण भगवान ने कहा कि, 'जीव तू काहे सोच करे, कृष्ण को करना हो सो करे।' तब जैन क्या कहते हैं कि, 'यह तो कृष्ण भगवान ने कहा है, महावीर भगवान ने ऐसा नहीं कहा।' महावीर भगवान ने इस पर क्या कहा कि 'राईमात्र घट-बढ़ नहीं, देखा केवल ज्ञान, यह निश्चय कर जानिये, तजिये आर्तध्यान।' चिंता-आर्तध्यान छोड़ दो। पर भगवान का कहा माना हो तब न? नहीं मानना हो, उसे हम क्या कहें? मुझे ऐसा कहा था, तब मैं तो मान गया था। मैं ने कहा, हाँ भाई, मगर यह एक ही ऐसी बात है, इसलिए मैं ने दूसरी ओर तलाश की। जो महावीर भगवान ने कहा, वही कृष्ण भगवान ने कहा, तब मैं ने कहा, यह काँटा मिलता है फिर भी शायद कोई भूल होती हो, तो आगे तलाश करें। तब सहजानंद स्वामी कहते है, 'मेरी मरजी बिना रे, कोई तिनका तोड़ न पाये।' ओहो! आप भी पक्के हैं! यह 'आपके बगैर एक तिनका भी नहीं टूटता?' तब कहा, 'चलिए तीन काँटे मिले।' तब मैं ने कहा, और काँटा मिलाइए। अब कबीर साहब क्या कहते हैं, 'प्रारब्ध पहले बना, पीछे बना शरीर, कबीर अचंभा ये है, मन नहीं बाँधे धीर।' मन को धीरज नहीं यही बड़ा आश्चर्य है। ये सभी काँटा मिलाता रहा, सबसे पूछता रहा। आपका काँटा क्या? बोलिए, कह दीजिए। हाँ, एक व्यक्ति की भूल हो सकती है, मगर वीतरागों का गलत तो कह ही नहीं सकते। लिखनेवाले की भूल हो गई हो तो ऐसा हो सकता है। वीतराग की भूल तो मैं कभी मानूँगा ही नहीं। मुझे कैसा भी घुमाफिराकर समझाया पर मैंने वीतराग की भूल मानी ही नहीं है। बचपन से, जन्म से, वैष्णव होने पर भी मैंने उनकी भूल नहीं मानी। क्योंकि इतने सयाने पुरुष! जिनका नाम स्तवन करने से कल्याण हो जाये!! और देखो, हमारी दशा देखो! राई मात्र घट-बढ़ नहीं। देखा है आपने राई का दाना? तब कहें, लीजिए, नहीं देखा होगा राई का दाना? एक राई के दाने के बराबर फर्क होनेवाला नहीं है और देखिए, लोग कमर कस कर, जहाँ तक जाग सके जागते रहते हैं। शरीर को खींच-खींचकर जागते हैं और फिर तो हार्ट फेल की तैयारी करते है। इन्हें क़ीमत किसकी? एक बूढ़े चाचा आये और मेरे पैरों में पड़कर बहुत रोये। मैं ने पूछा, 'क्या दुःख है आपको?' तो बताया, 'मेरे गहने चोरी हो गये, मिलते ही नहीं हैं। अब वापस कब मिलेंगे?' तब मैं ने उनसे कहा, 'वे गहने क्या साथ ले जानेवाले थे?' तब कहें, 'नहीं, साथ नहीं ले जा सकते। पर मेरे गहने जो चोरी हो गये हैं, वे वापस कब मिलेंगे?' मैं ने कहा, 'आपके जाने के बाद आयेंगे।' गहने गये उसके लिए इतनी हाय, हाय, हाय! अरे, जो गया उसकी चिंता करनी ही नहीं चाहिए। शायद आगे की चिंता, भविष्य
SR No.009582
Book TitleChinta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2006
Total Pages21
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size294 KB
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