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________________ भुगते उसीकी भूल सामनेवाला नहीं समझे तो क्या ? प्रश्नकर्ता : कुछ लोग ऐसे होते हैं कि हम चाहे कितना ही अच्छा वर्तन करें फिर भी वे नहीं समझते । भुगते उसीकी भूल कह दूँगा कि अर, आप भुगत रहें है इसलिए आपकी भल है । वह भुगतेगा तब उसकी भूल गिनी जायेगी। प्रश्नकर्ता : माँ-बाप भूल भोगते है वह तो ममता और जिम्मेवारीके साथ भुगततें है न ? दादाश्री: अकेली ममता और जिम्मवारी ही नहीं, लेकिन मुख्य कारण भूल उसीकी है । ममताके अतिरिक्त दूसरे भी कई कॉझीझ (7) (कारण) होते है, पर तू भुगत रहा है इसलिए तेरी भूल है । इसलिए किसीका दोष मत निकालना वर्ना अगले अवतार का नये सिरेसे हिसाब बंधेगा। अर्थात दोनोके कानून भिन्न है । कुदरतका कानून मान्य करेंगे तो आपका रास्ता सरल हो जायेगा और सरकारी कानून मान्य करेंगे तो उलझते रहोगे। दादाश्री : वे नहीं समझते उसमें हमारी ही भूल है कि हमें समझदार क्यों नहीं मिला । उनका ही संयोग हमसे क्यों हुआ? प्रत्येक बार हमें जो कुछ भुगतना पडता है, वह हमारी ही भूलका परिणाम है । (४) प्रश्नकर्ता : तो हमें यह समझना कि हमारे कर्म ऐसे है ? दादाश्री : अवश्य । हमारी भूलके सेवा हमें भुगतना नहीं होता । इस संसारमें ऐसा कोई भी नहीं कि जो हमें किंश्चितमात्रभी दुःख दे सके और यदि कोई दु:ख देनेवाला है तो वह अपनी ही भूल है । तत्त्वका दोष नहीं है, वह तो केवल निमित्त है । इसलिए “भुगते उसीकी भूल"। कोई स्त्री और पुरुष दोनों बहुत झगड़ते हो और दोनों सो जाये फिरहम गुपचुप देखने जायें तो वह बहन गहरी नींद सो रही हो और भाई करवटें बदल रहा हो, बार-बार, तो हमें समझ लेना चाहिए कि यह भाईकी भूल है सब, यह बहन भुगतती नहीं है । जिसकी भल होती है वही भुगतता है। और यदि भाई सो रहा हो और बहन जागती रहती हो तो समझना कि बहनकी भूल है । "भुगते उसीकी भूल"। यह तो बहुत भारी सायन्स (विज्ञान) है, सारा संसार निमित्त को ही काटता रहता है । प्रश्रकर्ता : पर दादा, वह भूल उसे खुदको मिलनी चाहिए न ? दादाश्री : नहीं, खुदको नहीं मिलेगी, उसे दिखानेवाला चाहिए । उसका विश्वासी ऐसा होना चाहिए । एक बार भूल दिखनेमें आई, फिर दोतीन बारमें उसे अनुभवमें आयेगी । इसका क्या न्याय ? इसलिए हमने कहा था न कि गर समझमें नहीं आता तो घरमें इतना लिखकर रखना कि भुगते उसीकी भूल । हमें सास बार-बार परेशान करती हो, और हमें रातको नींद नहीं आती हो तब सासको देखने जायें तो वह तो सो गई हो और खर्राटे ले रही हो फिर नहीं समझेंगे कि भूल हमारी है । सास तो चैनकी नींद लेती है । भुगते उसीकी भूल । आपको बात पसंद आई कि नहीं ? तो भुगते उसीकी भूल इतना ही गर समझमें आ जाये न तो घरमें एक भी झगड़ा नहीं रहेगा। पहले तो जीवन जीना सिखिए । घरमें झगड़े कम होनेके बाद दूसरी बात सिखिए । सारा जगत नियमके अधीन चल रहा है, गप्प नहीं है यह । इसका रेग्युलेटर ऑफ धी वर्ल्ड (संसार नियामक) भी है और निरंतर इस संसारको नियमन ही रखता है। बस स्टेन्ड पर कोई स्त्री खड़ी है । अब बस स्टेन्ड पर खड़े रहना कोई गुनाह तो नहीं है ? इतने में साईड परसे एक बस आती है और
SR No.009579
Book TitleBhugate Usi Ki Bhul
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Foundation
Publication Year2001
Total Pages20
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size307 KB
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