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________________ आत्मबोध आत्मबोध बात है। सब लोग पैसे के लिए मंथन करता है और आप खुद की पहचान के लिए मंथन करते है। वो बडी तारीफ की बात है। आपने वो सच मान लिया। 'ये रवीन्द्र ने किया, रवीन्द्र अभी पाँच साल का हो गया', वो सब आपने सच मान लिया। फिर बड़े हो गये और शादी की तो सब लोग बोलने लगे कि 'ये इसका पति है', तो वो भी आपने सच मान लिया। फिर लड़का हो गया तो 'ये लड़के का फादर है' ऐसा भी आपने सच मान लिया। आपको खुद की पहचान नहीं और आपको ये सब रोंग बिलीफ हो गयी। इससे सब भूल हो गयी। तो सबसे पहले सेल्फ को रीयलाइज करना चाहिए। लेकिन वो कौन करायेंगे? दुनिया में कभी कोई दफे कोई ज्ञानी होते है। वहाँ मौका मिल गया तो सच्ची बात मालूम हो जाती है। आप खुद कौन हैं? प्रश्नकर्ता : मैं एक जीव हूँ। दादाश्री : जीव तो जो मरता है और जिन्दा रहता है, उसको जीव बोला जाता है। आपको अमर होने का विचार नहीं? प्रश्नकर्ता : अमर होने की बात कही, तो प्रश्न यह है कि जीते जी अमर या मरने के बाद अमर? दादाश्री : अभी तो जीते जी अमर, फिर मरने का भय नहीं लगता और आपको तो ऐसे कोई धौल (तमाचा) लगाता है न, तो 'हमको, हमको, हमको' करने लगेंगे। क्या 'हमको, हमको' बोलते है? 'हम' किसको माना है आपने? रवीन्द्र को 'हम' माना है? आप खुद को तो पहचानते नहीं, फिर 'हम को, हम को' क्या बोलते हो! मैं रवीन्द्र हूँ, वो गलत बात है। ऐसे अनादि से वो ही भूल संसार में चली आयी है। खुद की पहचान करो कि, 'आप खद कौन हैं'। फिर खदा हो जायेंगे। फिर भगवान आपके पास से जायेंगे ही नहीं कभी। 'मैं रवीन्द्र हूँ', वहाँ तक भगवान आपके पास आयेंगे भी नहीं। खुद की पहचान अभी तक नहीं की? प्रश्नकर्ता : उसी का तो मैं मंथन कर रहा हूँ। दादाश्री : खुद की पहचान करने का मंथन करता है, बड़ी भारी प्रश्नकर्ता : जब तक मुझे खुद का अनुभव नहीं होगा, आत्म अनुभव नहीं होगा, तब तक मैं आगे नहीं बढ़ सकता? दादाश्री: हम एक घंटे में आपको आत्मा का अनुभव करा देंगे, फिर कभी आत्मा नहीं चली जायेगी और क्षायक समकित हो जायेगा। "एगो में शाषओ अप्पा, नाण दश्शण संजूओ, शेषा में बाहिराभावा, सव्वे संजोग लख्खणा। संजोग मूला जीवेण, पत्ता दु:ख परंपरा, तम्हा संजोग संबंधम्, सव्वम् तिवीहेण वोसरियामी।" ऐसी दशा हो जाती है। कभी हुआ नहीं था, लेकिन ये हुआ है। ये ग्यारहवाँ आश्चर्य है। भगवान महावीर तक दस आश्चर्य हुए थे। ये ग्यारहवाँ आश्चर्य है। आपको ठीक लगे तो आना, नहीं तो ये तो वीतराग मार्ग है। हम पत्र नहीं भेजेंगे। मिथ्यात्व द्रष्टि : सम्यक् द्रष्टि 'मैं रवीन्द्र हूँ' ये आपकी रोंग बिलीफ है। 'इनका पति हूँ' ये दूसरी रोंग बिलीफ है। इनका पिता हूँ, इनका भाई हूँ ऐसी कितनी रोंग बिलीफें है? प्रश्नकर्ता : बहुत है। दादाश्री : आप हकीकत में क्या हैं, यह आपको मालूम नहीं है। 'मैं रवीन्द्र हूँ' ये आपकी मिथ्यात्व द्रष्टि है। 'मैं सच्चिदानंद हूँ' (मैं शुद्धात्मा हूँ), ये द्रष्टि मिल जाये तो उसको सम्यक् द्रष्टि बोला जाता है। रोंग बिलीफ को मिथ्या दर्शन और राइट बिलीफ को सम्यक् दर्शन बोला है। ये रोंग बिलीफ का रूट कॉज़ क्या है? अज्ञानता ! 'मैं रवीन्द्र हूँ' दा
SR No.009577
Book TitleAtmabodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Foundation
Publication Year2003
Total Pages41
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size91 KB
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