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________________ आत्मबोध ३९ की रहती है। एक आदमी को घर में ठंड बहुत लगती है, तो वो धूप में चला जाता है तो वहाँ शांति होती है और समर में धूप में बहुत गर्मी लगती है तो जब पेड़ के नीचे बैठता है, तो शांति लगती है। वो सब टेम्पररी शांति है। आपको परमानेंट शांति चाहिये ? प्रश्नकर्ता: हाँ, परमानेंट शांति ही चाहिये । दादाश्री : फिर क्या करेगा परमानेंट शांति को? अभी तक तो देखी ही नहीं है न? सुना भी नहीं है न? प्रश्नकर्ता: हाँ, लेकिन हर वक्त अशांति से क्या फायदा? शांति कहाँ से मिले, उसका उपाय बताइए। दादाश्री : अशांति कहाँ से लाये? उसके सामने की ही दुकान है शांति की। आपको शांति का उपाय चाहिये है कि शांति चाहिये ? आपको जो चाहिये है वो देंगे। अंतर शांति मिल गई और अंतर दाह मिट गया, तो वो ही मुक्ति की सच्ची टिकिट है। वो ही मोक्ष का लायसन्स है । प्रश्नकर्ता: पीस ऑफ माइन्ड नहीं रहने का कॉज़ क्या है? दादाश्री : उसका जो कॉज़ है न, वो अज्ञानता है। दूसरा कोई कॉज़ नहीं है। ज्ञान से पीस ऑफ माइन्ड कायम रहता है और अपने हरेक काम होते हैं। आपको तो ऐसा लगता है न कि मैं चलाता हूँ ? That is complete wrong! प्रश्नकर्ता: चलायें या ना चलायें, लेकिन रिस्पॉसिबिलिटी तो अपने उपर ही है न? दादाश्री आपको जितनी जिम्मेदारी है, इससे भी ज्यादा जिम्मेदारीवाला हो तो भी पीस ऑफ माइन्ड कायम रहना चाहिए। प्रश्नकर्ता : मैं वो ही पूछना चाहता हूँ कि ये पीस ऑफ माइन्ड कैसे रहेगा? ४० आत्मबोध दादाश्री : पीस ऑफ माइन्ड क्यों नहीं रहता है? वो अज्ञानता से नहीं रहता है, वो रोंग बिलीफ से नहीं रहता है। राइट बिलीफ से पीस ऑफ माइन्ड रहता ही है। ये तो एक गलती हुई, उससे दूसरी गलती, तीसरी गलती, वो सब गलती ही चल रही है। खुद में अशांति होती ही नहीं। खुद में ही आनंद है। 'आप' 'रवीन्द्र' हो गये कि अशांति हो जाती है। 'मैं रवीन्द्र हूँ' वो कल्पित भाव है, आरोपित भाव है। ये रोंग बिलीफ है। आप खुद कौन हैं, वो जान लिया वही राइट बिलीफ है। प्रश्नकर्ता : राइट बिलीफ व्यवहार को कुछ मदद करती है? दादाश्री : हाँ, उससे आदर्श लाइफ हो जाती है। रोंग बिलीफ न हो तो उसकी लाइफ आदर्श होती है। संसार परिभ्रमण का रूट कॉज़ ! प्रश्नकर्ता: दादाजी, थोड़ा सा आत्मा के विषय में बताइये कि ये जगत का रूट कॉज़ क्या है? दादाश्री : देखिये, ये संसार कहाँ से खड़ा हो गया? ये संसार का रूट कॉज़ क्या है? इसका रूट कॉज़ अज्ञान है। कौन सा अज्ञान ? सांसारिक अज्ञान? नहीं, सांसारिक अज्ञान तो सभी का गया है कि 'मैं वकील हूँ, मैं डाक्टर हूँ।' वो तो गया ही है सभी को। लेकिन 'मैं खुद कौन हूँ' उसका ही अज्ञान है। वो अज्ञान से ही खड़ा हो गया है। ज्ञानी पुरुष की कृपा होने से एक घंटे में अज्ञान चला जाता है, नहीं तो करोड़ों जन्म हो जाये तो भी नहीं जाता। प्रश्नकर्ता: आदमी को बचपन से ऐसी ट्रेनिंग मिले तो ज्ञानी हो सकता है? दादाश्री : नहीं, वो ट्रेनिंग से नहीं होता। सारी दुनिया ही अज्ञान प्रदान करती है। आप छोटे थे, तब से ही अज्ञान प्रदान करती है, 'आप' को 'रवीन्द्र' नाम लगा दिया कि ये 'रवीन्द्र' है, ये 'रवीन्द्र' आया, ये दो साल का हो गया। सब लोगों ने भी 'आप' को 'रवीन्द्र' बोल दिया,
SR No.009577
Book TitleAtmabodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Foundation
Publication Year2003
Total Pages41
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size91 KB
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