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________________ आत्मबोध __३७ आत्मबोध ये तो थियरी ओफ ऐब्सोल्यूटिज्म है, हम थीयरम ओफ ऐब्सोल्यूटिज्म में है। हमारे पास ऐब्सोल्यूट विज्ञान है। वो सब हम आपको बताते हैं। ऐब्सोल्यूट विज्ञान कब प्राप्त होता है? ये शरीर का, मन का, वाणी का, सब का मालिकीभाव छूट जाता है, तब ऐब्सोल्यूट विज्ञान प्राप्त होता है, नहीं तो नहीं होता। आध्यात्म में ब्लंडर क्या ? मिस्टेक क्या ? आप खुद' भगवान ही हैं। आपका कोई उपरी ही नहीं है। हमने देखा है कि कोई भगवान भी आपके उपरी नहीं है। आपके बोस कौन हैं? आपके ब्लंडर और मिस्टेक । वो चले जाये तो आपका कोई उपरी नहीं है। 'ज्ञानी पुरुष' पहले ब्लंडर तोड देते हैं, फिर मिस्टेक आपको निकालनी चाहिये। ब्लंडर में क्या है? 'मैं रवीन्द्र हूँ', वो जो आपकी बिलीफ है, वो आरोपित भाव है। जिधर आप नहीं है, उधर आप बोलते हैं, कि 'मैं हूँ।' उसका भगवान के वहाँ क्या न्याय होता है? वो ब्लंडर बोला जाता है। जहाँ खुद है, वहाँ खुद की पहचान नहीं है। 'मैं रवीन्द्र हूँ, मैं इसका फादर हूँ, मैं इसका चाचा हूँ', वो सब आरोपित भाव है। उसको ब्लंडर बोला जाता है। वो ब्लंडर चला जाये फिर सिर्फ मिस्टेक ही रहेगी। सेल्फ रीयलाइजेशन किया, फिर आरोपित भाव नहीं रहेगा, ब्लंडर नहीं रहेगा, मिस्टेक ही रहेगी। वो मिस्टेक आपको कैसे निकालने की, वो फिर 'ज्ञानी पुरुष' बता देंगे। प्रश्नकर्ता : ऐसा कोई आज इस दुनिया में है, जिसको ब्लंडर और मिस्टेक नहीं है? दादाश्री : हाँ, हमारे सब ब्लंडर और मिस्टेक चले गये हैं। हमारी एक भी स्थूल भूल नहीं है। स्थूल भूल तो सब लोग समझ जाते हैं कि इसने भूल की, वो स्थूल भूल बोली जाती है। दूसरी सूक्ष्म भूल होती है। सूक्ष्म भूल सब लोग नहीं जान सकते। लेकिन कोई बुद्धिवाला विचक्षण आदमी हो तो वो समझ जाता है कि इसने भूल की, ये सूक्ष्म भूल है। ऐसी स्थूल भूल और सूक्ष्म भल हमारे में नहीं है। सक्ष्मतर और सूक्ष्मतम भूल है, वो किसी को भी नुकसान नहीं करती है, दुनिया में कोई चीज को नुकसान नहीं करती है। ये शरीर के ओनर (मालिक) हैं आप? और स्पीच के ओनर हैं? और माइन्ड के भी ओनर हैं? आप बोलते हैं कि माय माइन्ड, माय बोड़ी, माय स्पीच तो उसकी जिम्मेदारी आ गई। क्या जिम्मेदारी है? कि ये माइन्ड, बोडी और स्पीच ये इफेक्टिव है। किसी ने गाली दे दी, तो ये माइन्ड इफेक्टिव है, इस लिए माइन्ड को इफेक्ट हो जाती है। लेकिन आप बोलते हैं माय माइन्ड, तो ये इफेक्ट आपको ही लगती है। सेल्फ को रीयलाइज़ किया, फिर आपको इफेक्ट नहीं लगती। फिर आप बोलेंगे, 'रवीन्द्र ये आपकी डाक है, हमारी डाक नहीं है।' 'मैं रवीन्द्र हूँ' वो रोंग बिलीफ है। अपने रीयल स्वरुप को, रीयली 'मैं खुद कौन हूँ' जान लें तो फिर राइट बिलीफ हो जाती है। वो राइट बिलीफ हो गयी, फिर राइट ज्ञान हो जाता है और फिर राइट वर्तन हो जाता है, तो खुद ही 'खुद' हो जाता है। फिर 'खुद' ही 'खुदा' हो जाता है। जो 'खुद' है वो ही 'खुदा' हो जाता है। परमानेन्ट शांति कैसे ? प्रश्नकर्ता : खुद को पहचानने के लिए, शुद्ध होने के लिए क्या साधन करना चाहिये? दादाश्री : वो पहचानने से आपको क्या फायदा होगा? प्रश्नकर्ता : शांति। दादाश्री : परमानेन्ट शांति चाहते हो? थोडी देर झगड़ा करना, फिर शांत हो जाना, ऐसी टेम्पररी शांति में क्या फायदा? शांति दो प्रकार
SR No.009577
Book TitleAtmabodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Foundation
Publication Year2003
Total Pages41
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size91 KB
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