SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 16
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आप्तवाणी-१ आप्तवाणी-१ कुछ काम आनेवाला नहीं है। अहंकारी ज्ञान यानी बुद्धि, और निरंहकारी ज्ञान यानी ज्ञान। स्वरूप का ज्ञान, वही ज्ञान। मतभेद टालने का मार्ग क्या है? जीवन कैसे जीना? करोड़ों रुपये हों, फिर भी मतभेद होते है और मतभेद से अनंत दुःख पैदा होते हैं। रिलेटिव धर्म : रियल धर्म वृत्त (सर्किल) में ३६० डिग्री होते हैं। अंग्रेज ११० डिग्री पर, मुस्लिम १२० डिग्री पर, पारसी १४० डिग्री पर, हिन्दु २२० डिग्री पर होते हैं। वे सभी अपने अपने दृष्टि बिन्दु से देखते हैं, इसलिए सब अपने देखे हुए को सही बताते हैं। १२० डिग्री पर बैठे हुए को मैं ८० डिग्री पर लाकर पूछं कि कौन सही है? सभी व्य पोइन्ट पर, डिग्री पर बैठे हुए होते हैं। ३६० डिग्री पूरी करके हम सेन्टर (मध्य बिन्द) में बैठे हुए पूर्ण पुरुष हैं। ज्ञानी पुरुष सेन्टर में स्थित होने के कारण वस्तु को यथार्थ रूप में देख सकते हैं, समझ सकते हैं और आपको यथार्थ ज्ञान दे सकते हैं । ये सभी धर्म सही हैं, पर वे रिलेटिव धर्म हैं, व्यू पोइन्ट के अनुसार हैं। यदि फैक्ट जानना हो, तो सेन्टर (केन्द्र) में आना होगा। रियल धर्म, आत्मधर्म सेन्टर में ही होता है। जो सेन्टर में बैठा है, वही सभी के व्यू पोइन्ट को देख सकता है। इसलिए उसका किसी धर्म से मतभेद नहीं होता है। इस कारण ही हम कहते हैं कि जैनों के हम महावीर हैं, वैष्णवों के हम कृष्ण हैं, स्वामीनारायण के सहजानंद हैं, क्रिश्चियनों के क्राइस्ट हैं, पारसियों के जरथुस्ट हैं, मुस्लिमों के खुदा हैं। जिसे जो चाहिए वह ले जाए। हम संगमेश्वर भगवान हैं। तू अपना काम निकाल ले। एक घंटे में तुम्हें परमात्म पद देता हूँ, पर तुम्हारी तैयारी चाहिए। बस तुम आओ उतनी ही देरी है। घंटेभर में सारा केवलज्ञान' दे देता हूँ। मगर तुम्हें पचनेवाला नहीं। हमारे ही 356 डिग्री पर आकर अटक गया है, काल की वजह से। पर तुम्हें देते हैं, संपूर्ण 'केवलज्ञान'! शक्करकंद को यदि भट्ठी में डालें, तो कितनी ओर से भुन जाएगा? चारों ओर से। उसी प्रकार यह सारा संसार भुन रहा है। अरे! पेट्रोल की अग्नि में जलता हुआ हमें हमारे ज्ञान में दिखता है। इसलिए लोगों का कल्याण कैसे हो, यही हमें देखना है। इसलिए ही हमारा जन्म हुआ है, आधे विश्व का कल्याण हमारे हाथों होगा और शेष आधे विश्व का कल्याण हमारे इन फॉलोअर्स (अनुयायिओं) के हाथों होगा। हम इसमें कर्ता नहीं हैं, निमित्त हैं। जर्मनीवाले एब्सोल्युटिजम (परम तत्त्व) की खोज में हैं। इसलिए यहाँ से बहुत सारे शास्त्र उठा ले गए हैं और खोज में लगे हैं। अरे! वह ऐसे मिलनेवाला नहीं है। आज हम खद ही प्रत्यक्ष एब्सोल्युटिजम में हैं। संसार सारा थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी में है। ये हमारे 'महात्मा' थ्योरी ऑफ रियलिटी में हैं। हम खुद थ्योरी ऑफ एब्सोल्युटिज़म में हैं। केवल थ्योरी नहीं, पर थ्योरम में हैं। हम जब जर्मनी जाएंगे, तब कहेंगे कि तुझे जो चाहिए वह ले जा। यह हम खुद ही आए हैं। दिस इज कैश बैंक इन दी वर्ल्ड (संसार में यह नक़द बैंक है) एक घंटे में नक़द तेरे हाथ में थमा देता हूँ। रियल में बिठा देता हूँ। और सब जगह उधार है। किश्ते भरते रहो। अनंत जन्मों से तू किश्ते भरता आया है, फिर भी हल क्यों नहीं निकलता है? क्योंकि नक़द किसी जन्म में मिला ही नहीं है। क्रमिक मोक्षमार्ग : अक्रम मोक्षमार्ग मोक्ष प्राप्ति के दो मार्ग : एक मुख्य मार्ग, जो स्टेप बाय स्टेप, सीढ़ी दर सीढ़ी चढ़ने का है। सत्संग मिले, तो पाँच सौ सीढ़ियाँ चढ़ जाए और कुसंग मिले किसी जन्म में, तो पाँच हजार सीढ़ियाँ उतार दे। बड़ा कठिन मार्ग है! जप-तप-त्याग करते हुए चढ़ना पड़े, फिर भी पता नहीं कि कब गिरा दे? दूसरा अक्रम मार्ग, लिफ्ट मार्ग मतलब सीढ़ियाँ नहीं चढ़नी हैं, सीधे ही लिफ्ट में चढ़कर, बीवी-बच्चों के साथ, बेटे-बेटियों की शादियाँ रचाते हुए, सबकुछ करके फिर, मोक्ष प्रयाण करना। यह सब करते हुए भी, आपका मोक्ष चला नहीं जाता। ऐसा अक्रम मार्ग अपवाद मार्ग भी कहलाता है। अक्रम मार्ग प्रति दस लाख वर्षों में एक बार प्रकट
SR No.009575
Book TitleAptavani 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2009
Total Pages141
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size42 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy