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________________ आप्तवाणी-१ आप्तवाणी-१ होता है। अकेले भरत राजा को यह ज्ञान मिला था। ऋषभदेव दादा भगवान ने अपने सौ पुत्रों में से अकेले भरत को ही यह अक्रम ज्ञान दिया था। उनके सौ पुत्रों में से अठ्ठानवे पुत्रों ने दीक्षा ली थी। रहे बाहबलीजी और भरत। उन दोनों को राज्य सौंपा। फिर बाहबलीजी बैरागी होकर निकल पड़े और उन्होंने भी दीक्षा ली, इसलिए भरत के सिर पर राज्य का भार आया। भरत की फिर रानियाँ कितनी थीं, मालूम है? तेरह सौ रानियाँ थीं। वे ऊब गए थे। आजकल तो एक ही बीवी से तौबा करते हैं लोग! भरत राजा को तो बहुत दुःख था। रानिवास में जाते, तो पचास का मुँह हँसता हुआ दिखाई देता और पाँच सौ का मुँह चढ़ा हुआ । ऊपर से राज्य की चिंता, लड़ाइयाँ लड़ना, तो वे बड़े परेशान रहते थे, इसलिए भगवान से जाकर बोले, 'भगवान! मुझे राज्य नहीं चाहिए, और किसी को सौंप दीजिए और मुझे दीक्षा दीजिए। मुझे भी मोक्ष में ही जाना है।' तब भगवान ने कहा कि तू यह राज्य चलाने का निमित्त है। यदि नहीं चलाया तो राज्य में झगड़े, मारकाट और अराजकता फैल जाएगी। जा, हम तुझे ऐसा ज्ञान देते हैं कि तुझे राज्य भी बाधक नहीं होगा, तेरह सौ रानियाँ भी बाधक नहीं होंगी और लड़ाइयाँ भी बाधक नहीं होंगी। ऋषभदेव भगवान ने भरत को ऐसा ज्ञान दिया था। और वही यह 'अक्रम ज्ञान', जो हम तुम्हें यहाँ देते है, एक घंटे में। अरे ! भरत राजा को तो ज्ञान हट नहीं जाए, इसके लिए चौबीसों घंटे नौकर को रखने पड़ते थे। जो हर पंद्रह मिनट पर बारी-बारी से घंटनाद करके बोला करते थे, 'भरत चेत, चेत, चेत!' पर अभी तो आप ही डेढ़ सौ की नौकरी करते हैं, तो नौकर कैसे रख पाएँगे? इसलिए हम भीतर ही ऐसी व्यवस्था कर देते हैं कि प्रतिक्षण भीतर से ही 'चेत, चेत, चेत' की गूंज उठती रहती है। ऐसा अद्भुत ज्ञान तो किसी काल में न सुनने में आया, न ही देखने में। यह तो ग्यारहवाँ आश्चर्य है इस काल का! कॉमनसेन्स कॉमनसेन्स क्या है? उसकी परिभाषा क्या है? कॉमनसेन्स अर्थात् एवरीव्हेयर एप्लिकेबल, थ्योरिटिकली एज वेल एज प्रैक्टिकली। (व्यावहारिक समझ जो सर्वत्र लागू की जा सके, सैद्धान्तिक और व्यावहारिक दोनों प्रकार से) कॉमनसेन्स बड़ी ऊँची वस्तु है। उसे जहाँ ज़रूरत हो वहाँ काम में ले सकते हैं। हममें सौ प्रतिशत कॉमनसेन्स है। आपमें एक प्रतिशत भी नहीं होता। उलझने पर बिना तोड़े धागा सुलझाना वही कॉमनसेन्स है। लोग तो एक उलझन सुलझाते-सुलझाते, दूसरी पाँच उलझनें खड़ी करते हैं, उन्हें कोमनसेन्स के मार्क कैसे दिए जाएँ? अरे! बड़े-बड़े विद्वानो में विद्वत्ता होती है पर कोमनसेन्स नहीं होता। हम में बुद्धि नाममात्र को नहीं है, हम अबुध हुए हैं। हम में बुद्धि पूर्ण रूप से प्रकाशमान हुई होती है, पर हमारे ज्ञान प्रकाश के आगे वह कोने में जाकर बैठी रहती है। एक किनारे पर अबुध पद प्राप्त होते ही सामनेवाले किनारे पर सर्वज्ञ पद माला लेकर नियम से सामने आकर खड़ा ही होता है। 'हम अबुध हैं, सर्वज्ञ हैं।' सांसारिक संबंध यह आपके अपने पिताजी से, माँ से, बीवी के साथ जो संबंध हैं, वे रियल संबंध हैं क्या? प्रश्नकर्ता : हाँ जी, रियल संबंध ही हैं न? दादाश्री : फिर तो बाप मर जाए, तो नियम से आपको भी मर जाना चाहिए। मुंबई में ऐसे कितने होंगे जो बाप के पीछे मर गए? देखिए मैं आपको समझाता हूँ। माँ-बाप, भाई बहन, बीवी-बच्चे उनके बीच जो संबंध हैं, वे सही हैं, पर रियल नहीं हैं, रिलेटिव संबंध हैं। यदि रियल हो, तो किसी का बाप के साथ संबंध टूटता ही नहीं। यह तो यदि बाप से कहा हो कि आपमें अक्ल नहीं है, तो बस खतम। बाप कहेगा, 'जा अपना मुँह सारी जिंदगी मत दिखाना। मैं तेरा बाप नहीं और त मेरा बेटा नहीं आज से।' आपने बीवी को भी रिश्तेदार माना, पर डाइवॉर्स होता है कि नहीं? ऐसा है यह संसार। ऑल दीज़ आर टेम्परेरी एडजस्टमेन्ट्स
SR No.009575
Book TitleAptavani 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2009
Total Pages141
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size42 KB
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