SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 15
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आप्तवाणी-१ आप्तवाणी-१ दिखनेवाले जीव हों।) आपके और मेरे बीच में दूरबीन (सूक्ष्मदर्शी) से भी दिखाई नहीं दें, ऐसे अनंत जीव हैं। उनमें भी भगवान बैठे हुए हैं। इन सभी में शक्ति के रूप में हैं और हमारे अंदर व्यक्त हो गए हैं। संपूर्ण प्रकाशमान हो गए हैं। इसलिए हम प्रकट परमात्मा हो गए हैं! गज़ब का प्रकाश हुआ है!! यह जो आपको दिखाई देते हैं, वे तो अंबालाल मूलजीभाई, भादरण के पाटीदार हैं और कोन्ट्रेक्ट का व्यवसाय करते हैं, पर भीतर जो प्रकट हो गए हैं, वे तो गज़ब का आश्चर्य हैं। वे 'दादा भगवान' हैं। पर आपको समझ में कैसे आए? यह देह तो पैकिंग (खोखा) है। भीतर बैठे हैं, वे भगवान हैं। यह आपका भी चंदूलाल रूपी पैकिंग है और भीतर भगवान विराजे हैं। यह गधा है, तो यह भी गधे का पैकिंग है और भीतर भगवान विराजे हैं। पर इन अभागों की समझ में नहीं आता, इसलिए गधा सामने आए, तो गाली देते हैं, जिसे भीतर बैठे भगवान नोट करते हैं और कहते हैं, 'हम्म्... मुझे गधा कहता है, जा अब तुझे भी एक जन्म गधे का मिलेगा।' यह पैकिंग तो कैसा भी हो सकता है। कोई सागवान का होता है, कोई आम की लकड़ी का होता है। ये व्यापारी पैकिंग देखते हैं या भीतर का माल देखते हैं? प्रश्नकर्ता : माल देखते हैं। दादाश्री : हाँ, पैकिंग का क्या करना है? काम तो माल से ही है न? कोई पैकिंग सड़ा हुआ हो, टूटा-फूटा हो पर माल तो अच्छा है न? हमने इस अंबालाल मूलजीभाई के साथ पलभर के लिए भी तन्मयता नहीं की है। जब से हमें ज्ञान उपजा तब से दिस इज माई फर्स्ट नेबर (ये मेरे प्रथम पड़ौसी हैं) पड़ौसी की तरह ही रहते हैं हम। भगवान ऊपरी और मोक्ष तेरह वर्ष की उम्र में मुझे विचार आया था कि मुझे कोई ऊपरी नहीं चाहिए। भगवान भी ऊपरी नहीं चाहिए. यह मझे नहीं जमेगा। ऐसा मैं अपना डेवलमेन्ट (विकास) साथ में लाया था और अनंत जन्म की इच्छाओं का फल मुझे इस जन्म में मिला। यदि सिर पर भगवान ऊपरी हों और वही मोक्ष में ले जानेवाला हो, तो जहाँ कहीं बैठे हों, वहाँ से खड़ा कर दे और हमें खड़ा होना पड़े। यह रास नहीं आएगा। वह मोक्ष कहलाए ही कैसे? मोक्ष यानी 'मुक्त भाव' सिर पर कोई ऊपरी भी नहीं और कोई अंडरहैन्ड भी नहीं। यहाँ जीते जी ही मोक्ष का अनुभव किया जा सकता है। एक भी चिंता मुसीबत नहीं हो। इन्कमटैक्सवालों का नोटिस आए, तब भी समाधि नहीं जाए, वही मोक्ष। फिर ऊपर का मोक्ष तो इसके बाद देखेंगे। पर पहले यहाँ मुक्त होने के बाद ही वह मुक्ति मिलेगी। मेरी सोलह साल की उम्र में शादी हुई तब सिर पर से साफा जरा खिसक गया, तब मुझे विचार आया कि हम दोनों में से किसी एक को विधवा या विधुर होना ही है, यह तो निश्चित ही है न? अनंत जन्मों से सभी यही का यही पढ़ते हैं और फिर उस पर आवरण आ जाता है। अज्ञान पढ़ाना नहीं पड़ता, अज्ञान तो सहज ही आता है। ज्ञान पढ़ाना पड़ता है। मुझे आवरण कम था, इसलिए तेरहवें साल में ही प्रकाश हुआ था। स्कूल में मास्टरजी. लघतम समापवर्त्य सिखलाते समय कहते थे कि ऐसी संख्या खोजो, जो छोटी से छोटी हो और सभी में अविभाज्य रूप से रही हो। मैंने इस पर से तुरंत ही भगवान खोज निकाले। ये सभी (मनुष्य) संख्याएँ ही हैं न? उनमें भगवान अविभाज्य रूप से रहे हुए हैं! मैं जो वाणी बोलता हूँ, उस वाणी से आपका आवरण टूटता है और अंदर प्रकाश होता है, इसलिए मेरी बात आपकी समझ में आती है। बाकी एक भी शब्द समझने की आपकी ताकत नहीं है। बुद्धि काम ही न करे। ये, जो सभी जो बुद्धिमान कहलाते हैं, वे सभी रोग बिलीफ़ (गलत मान्यता) से है। हम अबुध हैं। हमारे पास बद्धि नाम मात्र को भी नहीं होती। बुद्धि क्या है? सारे संसार के अनंत सब्जेक्टस (विषयों) को जानें, तो भी उनका समावेश बुद्धि में ही होता है। ज्ञान क्या है? 'मैं कौन हूँ?' उतना ही जानें, वह ज्ञान। इसके अलावा तेरा सभी जाना हुआ
SR No.009575
Book TitleAptavani 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2009
Total Pages141
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size42 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy