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________________ अहिंसा ४३ एक तरफ देखो कषाय करते हैं! इसलिए तीन रुपये का फायदा करता है और करोड़ रुपये का नुकसान उठाता है! अब इसे व्यापारी कैसे कहा जाए? और यह तो देखो, ऐसे ठेठ तक पकड़कर बैठे हैं और वैसे अपार हिंसा करते हैं। बड़े से बड़ी हिंसा हो इस जगत् में तो कषाय की (यानी क्रोधमान-माया-लोभ की) है! कोई कहेगा कि भाई, यह जीव मार रहा है और यह कषाय कर रहा है तो किसे अधिक पाप लगेगा? तो कषाय इतने अधिक कीमती हैं कि जीव मारे उसकी तुलना में कषाय में अधिक पाप है। बात को समझो वे सभी बातें भगवान ने कही है न, वे आपको समझाने के लिए कहा है। आग्रह पकड़ने नहीं हैं। आप जितना हो सके उतना करना। भगवान ने ऐसा नहीं कहा है कि शक्ति से बाहर करना। ज्ञानी आग्रह करवाएँ ऐसे नहीं होते। ये दूसरे तो आग्रह पकड़वाते हैं। ज्ञानी तो क्या कहते थे कि लाभालाभ का व्यापार देखो! शरीर को प्याज़ से पच्चीस प्रतिशत फायदा हुआ और पाँच प्रतिशत प्याज़ के कारण नुकसान हुआ, यानी मेरे घर में बीस रहे हैं। इस प्रकार करते थे। जब कि इन लोगों ने लाभालाभ का व्यापार उड़ा दिया है और मार-पीटकर 'प्याज़ बंद कर. और आलू बंद कर' कहेंगे। अरे, किसलिए? आल के साथ आपको बैर है? या आपको प्याज़ के साथ बैर है? और उसे तो जो छोड़ा हो न, वही याद आया करता है। भगवान के जैसा, वही याद आया करता है! 'हमने' भी नियम पाले थे जब कि मैं तो जैन नहीं था। मैं जैनेतर था। फिर भी मुझे यह ज्ञान होने से पहले निरंतर कंदमूल का त्याग था, हमेशा चोवियार था, हमेशा गरम पानी (उबालकर) पीता था। दूसरे शहर जाऊँ या चाहे जहाँ जाऊँ फिर भी उबला हुआ पानी। हम और हमारे हिस्सेदार दोनों उबले हुए पानी की शीशियाँ साथ में रखते थे। यानी हम तो भगवान के नियम में रहते थे। अब किसी को यह नियम सब मुश्किल लगते हों, तो ऐसा नहीं अहिंसा है कि आपको सब पालने ही चाहिए। मैं आपको ऐसा नहीं कहता कि आप ऐसा ही करो। आपसे हो, तो करना। यह अच्छी चीज़ है, हितकारी है। भगवान ने तो हितकारी समझकर कहा है, उसे पकड़कर रखने के लिए नहीं कहा है। उसके आग्रही हो जाने के लिए नहीं कहा है। हमें, ज्ञानी पुरुष को तो त्यागात्याग नहीं होता है। पर ये कितने ही लोग इतने ज्यादा दुखी होते हैं कि 'आप चोवियार नहीं करते? हमें बहुत दुख होता है। मैंने कहा, 'चोवियार करूँगा।' क्या करूँ तब? वह तो ज्ञानी होने के बाद तो त्यागात्याग संभवे नहीं। फिर लोगों को समझ में आए वैसा समझें। बाकी, हमें किसी चीज़ की इच्छा ही नहीं न! हम तो, हिंसा के सागर में भगवान ने हमें अहिंसक कहा है बाकी, हम तो पहले से ही हमेशा चोवियार करते थे। अब तो हमें, यह सत्संग रखा हो न, इसलिए किसी दिन चोवियार होता है और दो-चार दिन हमसे चोवियार नहीं भी होता है। परन्तु हमारा हेतु चोवियार का है। वह मुख्य वस्तु है। उबला हुआ पानी, पीने में प्रश्नकर्ता : यह पानी को उबालकर पीने का कहते हैं, वह किसलिए? दादाश्री : वे क्या कहना चाहते हैं? पानी की एक बूंद में अनंत जीव हैं। इसलिए पानी को खूब उबालो ताकि वे जीव मर जाएँ और फिर वह पानी पीओ तो आपका शरीर अच्छा रहेगा और तब आत्मध्यान रहेगा। तब उसका ये लोग उल्टा समझ बैठे हैं। भगवान ने तो शरीर अच्छा रखने के लिए सब प्रयोग बताए थे। इसलिए उल्टे पानी उबालकर पीने का कहते हैं। पानी नहीं उबालें, उसे जीवहिंसा पाली कहलाएगा। खुद का शरीर भले बिगड़े पर हमें पानी उबालना नहीं है। उसके बदले यह तो भगवान पानी उबालकर पीने का कहते हैं, तो आपका शरीर अच्छा रहे। और आठ घंटों बाद वापिस अंदर जीव पड़ जाएँगे, इसलिए फिर वह मत पीना। वापिस दूसरा उबालकर पीना, ऐसा कहते हैं।
SR No.009573
Book TitleAhimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages59
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size36 KB
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