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________________ अहिंसा दादाश्री : नहीं। कर्म का बंधन कुछ भी नहीं है। वह किस आधार पर तोड़ना पड़ता है? और जो रात्रिभोजन का त्याग किया, वह किसी ने सिखलाया होगा न? प्रश्नकर्ता : जैनों के संस्कार होते हैं न! दादाश्री : हाँ। तो भगवान महावीर का नाम लेकर प्रतिक्रमण करना चाहिए। वह भगवान की आज्ञा है इसलिए आज्ञा पालनी चाहिए। और जिस दिन नहीं पाली जा सके तो उनसे माफ़ी माँग लेना। इसलिए यदि अहिंसा पालनी हो, तो हो सके तब तक दिन में भोजन करो तो उत्तम। आपका शरीर भी बहुत सुंदर रहेगा। वैसा जल्दी हमेशा के लिए खाते हो? प्रश्नकर्ता : अभी-अभी शुरू किया है। दादाश्री : किसने करवाया? प्रश्नकर्ता : खुद की इच्छा से। दादाश्री : पर अब ऐसा अहिंसा के हेतुपूर्वक करता हूँ ऐसा मानना। 'दादा' ने मुझे समझाया है और मुझे वह पसंद आया इसलिए अहिंसा के लिए ही मैं यह करता हूँ, ऐसा करना। क्योंकि यों ही, हेतु न हो तो तब तक सब बेकार जाता है। आप कहो कि मैं फ़ॉरेन जाने के लिए ही ये पैसे भरता हूँ। तो फ़ॉरेन जाने की टिकट आपको मिलेगी। पर आपने कुछ भी नहीं कहा हो तो किसकी टिकट दें? कंदमूल, सूक्ष्म जीवों का भंडार प्रश्नकर्ता : कंदमूल खाएँ उसमें कोई निषेध है? दादाश्री : बहुत बड़ा निषेध है। प्रश्नकर्ता : प्याज़-आलू में अनंत जीव हैं। दादाश्री : हाँ, अनंतकाय जीव हैं, तो? प्रश्नकर्ता : तो वह खाने का आप बोध देते हैं? ४२ अहिंसा दादाश्री : भगवान ने मना किया है। भगवान ने मना किया है वह आपकी बिलीफ़ में रहना ही चाहिए। और उसके बावजूद भी खा लिए जाएँ, वह आपके कर्म का उदय है। फिर भी आपकी श्रद्धा बिगड़नी नहीं चाहिए। भगवान ने जो कहा है, वह सारी श्रद्धा नहीं बिगड़नी चाहिए। प्रश्नकर्ता : कंदमूल नहीं खाने का क्यों कहा है? दादाश्री : कंदमूल तो दिमाग़ को जागृत नहीं होने देते, ऐसा है। प्रश्नकर्ता : एकेन्द्रिय जीव की हानि हो इसके लिए नहीं? दादाश्री : यह तो लोग ऐसा समझते हैं कि आलू के जीवों का रक्षण करने के लिए नहीं खाने हैं। अब आलू भाते हो तब बहुत इधरउधर मत करना। क्योंकि दूसरा कुछ इस काल में खाने का लोगों को भाता नहीं है। और वह छोड़ दिया तो क्या करोगे? प्रश्नकर्ता : पर ऐसा कहते हैं कि आलू खाएँ तो पाप लगता है। दादाश्री : ऐसा है, किसी जीव को दुख दोगे तो पाप लगेगा। पति को, पत्नी को, बच्चों को, पड़ोसी को दुख दोगे तो पाप लगेगा। बाकी, आलू खाने से आपको नुकसान क्या होगा? कि दिमाग़ की स्थूलता आएगी, मोटी बद्धि हो जाएगी। कंदमल में सूक्ष्मजीव बहुत हैं, केवल जीवों का ही भंडार है। इसलिए कंदमूल से जड़ता आती है और कषाय उत्पन्न होते हैं। हमें जागृति की ज़रूरत है। इसलिए यदि कंदमूल कम खाए जाएँ तो अच्छा है, परन्तु वह भी भगवान की आज्ञा में आ जाएँ, उसके बाद फिर जागृति की ज़रूरत है। और कंदमूल खाओगे तो यह जागृति मंद हो जाएगी और जागृति मंद हुई तो मोक्ष में किस तरह जाएगा? इसलिए भगवान ने यह सब सच्ची बात कही है। यह सब आपसे पाली जा सकें तो पालो और न पाली जा सकें तो कोई हर्ज नहीं। जितनी पाली जा सकें उतनी पालो। यदि पाली जा सकें तो अच्छी बात है। बड़े से बड़ी हिंसा, कषाय में यह तो सब उल्टा ही कर दिया है। एक तरफ ऐसा करते हैं और
SR No.009573
Book TitleAhimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages59
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size36 KB
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