SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 174
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १५२] [आबूरास विनति अम्हहं तणीय, सामिय तुहु अवघारि । त मागउ थाहर मंदिरह, आबूयगिरिहि मझारि ॥१८॥ त तूठउ धांवलदिवितणउ, आगइ कहियउ एहु । त विमलह मंदिर आससउं, विजउं करावहु देव ॥ अम्हि धुरि गोठिय आबुयह, आगे अछह निवाणु । त करिज मंदिरु तिजपाल ! तुहुं , हियइ म धरिजहु काणि ॥१९॥ भासादिस(य ?)इ आय(ए)सु तह सोमनरिंदो, वस्तुपालु तेजपालु आणंदो । जिण समिय मंदिरु वेगि निप्पज्जए, अइसु निरोपु दिव उदुलु दीजए ॥२०॥ अइसि ऊदल्लु चंद्रावती आवए, सयलु महाजनु घरि तेडावए । चालहु हिव आबुइ जाएसहं, जिणमंदिर थाहर भूमि जोएसहं ॥२१॥ चलिउ ऊदल्लु महाजनि सहितउं, आबुय देवलवाडइ पहुतओ । ठामि ठामि मंदिरभूमि जोयंतओ, मिलिउ मेलावओ आबुय लोयहं ॥२२।। मंदिर थाहर नवि आपेसहं, प्राणिहिं भुवणु करण नवि देसहं । आगए विमलमंदिर निप्पनओ, सिर मा भूमिहिं दीनउ दानु ॥२३॥ ठवणिउदल्लु तित्थु [त]पसीय बहु परि मनावइ । राठी वर गूगुलिया वस्तइं पहिरावइ ॥२४॥ भासअम्हि धुरि गोट्ठिय दिव निमिनाथ, जिणभूमि आपहु ते इसु बाहा । विमलमंदिरु ऊतर दिसि जाम, लहय भमि तिल(ज)पालु वधाविउ ।।२५।। महतइ तेजपाल पभणीजइ, सोभनदिउ सुतहारु तेडीजइ । जाइज आबुइ तुहं (मुहुतु) कमठाए, वेगिहि जिणमंदिरु निप्पाए ॥२६।। चालिउ पइठ करिउ सुतहारो, भूमि सुवण इकवार अहारो । सोभनदिउ विगि आबुइ आवइ, कमठा मुहुतु आरंभु करावइ ॥२७।। भासमूलग्ग पायारधर, पूजिउ कुरुम प्रवेसु । भरिउ गडारउ तहि ज पुरे, खरसिल हुयउ निवेसु ॥ 15 25 D:\sukarti.pm5\3rd proof
SR No.009571
Book TitleVastupal Prashasti Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanbalashreeji
PublisherBhadrankar Prakashan
Publication Year2010
Total Pages269
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy