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________________ षोडशं परिशिष्टम्] [१५१ ठवणिनमिवि चिराणउ थु(पु ?)णि नमिवि, बीजा मंदिरनिवेसु । त पुहविहि माहि जो सलहिजए, ऊतिम गूजर देसु ॥ त सोलंकियकुलसंभभिउं, सूरउ जगि जसवाउ । त गूजरातधुरसमुधरणु, राणउं लूणपसाउ ।।१०।। परिवलु दल्ल जो आडवए, जिणि पेलिउ सुरिताणु । राजु करइ अन्नय तणओ, जासु अगंजिउ माणु ॥ लुणसापुत्तु जु विरधवले, राणउ अरडकमल्ल । त चोर-चराडिहि आगलओ, रिपुरायह उरि सालु ॥११॥ भासवस्तपालु तसु तणइ महंतु, सहुयरु तेजपाल उदयंतउ । अभिणवु मंदिर जेण कराविय, ठावि ठावि जिणबिंब भराविय ॥१२॥ महिमंडलि किय जेणि उद्धारा, नीरनिवाणिहि सत्तूकारा । सेत्तुजसिहरि तलावु खणाविउ, अणपमसरु तसु नाम दियाविउ ॥१३॥ नितु नितु सुरसंघ पूजा कीजइ, छहि दरिसणि घरि दाणु वि दीजइ। 15 संघ पुरिस पुहविहि सलहीजइ, रीतु वघेला बहु मानिजइ ॥१४॥ अन्न दिवसि निय मणि चिंतीजइ, महतइ तेजपालि पभणीजइ । आबू भणिजइ तीथहं ठाउं, जइ जिणमंदिर तह नीपावलं ॥१५।। ठाकुरु ऊदल ताव हकारिउ, कहिय वात कान्हइ बइसारिउ । आबू रिखभह मंदिरु आछइ, महतु तेजपालु इम पूछई ॥१६॥ बीजउ नेमिहिं भुवणु करेसहं, जइ जिणमंदिर थाहर लहिसहं । पडिलउ सोमनरिंदु पूछीजइ, कटक माहि जाइवि विनवीजइ ॥१७।। ठवणिमहतिहिं जायवि भेटियओ धावलदेविमल्लारु । त कड(र) जोडेविणु वीनतओ, सोमनरिंद प्रमारु ।। १. श्लाध्यते ॥ २. संभमिउं-संभविउं-संभूतः ॥ ३. गूजरातनी धुराने वहेनार ॥ ४. सालु-शल्यतुल्यः ॥ ५. ठामे ठामे स्थाने स्थाने ॥ ६. कने बेसारी-पासे बेसारीने ॥ ७. मंदिरने लायक भूमी ॥ D:\sukarti.pm5\3rd proof
SR No.009571
Book TitleVastupal Prashasti Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanbalashreeji
PublisherBhadrankar Prakashan
Publication Year2010
Total Pages269
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size2 MB
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