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________________ प्रथमः सर्गः हिन्दी अनुवाद--( वहाँ पर उपस्थित ) लोग, खड़े हुए, हिम और अञ्जन के पर्वत के समान इन दोनों ( नारद और श्रीकृष्ण ) को देख ही रहे थे कि पुराण मुनि ( श्रीकृष्ण ) ने अपने हाथ से दिये हुये भासन पर मुनि ( नारद ) को बैठाया ॥ १५ ॥ विशेष-इस श्लोक में गौरवर्ण नारद की तुलना हिम पर्वत तथा श्याम वर्ण श्रीकृष्ण की समता अञ्जन पर्वत से की गई है ।। १५ ॥ प्रसङ्ग-माघ कवि कहते हैं कि कृष्णवर्ण श्रीकृष्ण के सम्मुख आसन पर स्थित नारदमुनि ने उदयाचल पर आरूढ़ चन्द्रमा की शोभा को प्राप्त किया। महामहानीलशिलारुचः पुरो निषेदिवान् कंसकृपः स पिष्टर। श्रितोदयाद्रेरभिसायमुच्चकैरचूचुरश्चन्द्रमसोऽभिरामताम् ॥ १६ ॥ महामहेति ॥ महत्या महानीलशिलायाः सिंहलद्वीपसंभवेन्द्रनीलोपलस्य रुगिव रुग् यस्य तस्येत्युपमाङ्कारः । 'सिंहलस्थाकरोद्भूता महानीलास्तु ते स ताः' इति भगवानगस्त्यः । कंसकृषो हरेः पुरोऽग्रे उच्चकै रुन्नते विष्टर आसने । वृक्षासनयोविष्टरः' (८।३।१६) इति षत्वम् । निषेदीवानुपविष्टवान् । 'भाषायां सदवसश्रुवः'-(३।२।१०८) इति क्वसुः । स मुनिरभिसायं सायंकालाभि मुखम् । अव्ययीभावसमासः । सायंकालस्य कांत्कृिष्णोपमानत्वम् । श्रित आश्रित उदयाद्रिरुदयाचलो येन तस्य चन्द्रमसोऽभिरामतां शोभामचूचुरच्योरितवान् । प्राप्तवानित्यर्थः । 'चुर स्तेये' णिश्रि-( ३।१।३८ ) इति च । अन्यस्यायधर्मसम्बधासम्भवाच्चःद्रमसोऽभिरामतामिवाभिरामतामित्यौपम्यपर्यवसानादसम्भवद्वस्तुसम्बाधरूपो निर्दशनाभेदः, स चोक्तोपमयाङ्गाङ्गिभावेन चङ्कीर्यते ॥ १६ ।। __ अन्वयः--महामहानीलशिलारुचः कंसकृषः पुरः उच्चकैः विष्टरे निषेदिवान् सः अभिसायं श्रितोदयाद्रेः चन्द्रमसः अभिरामताम् अचूचुरत् ।। १६ ।। हिन्दी अनुवाद--विशाल इन्द्रनीलमणि की-सी कान्तिवाले और कंस का संहार करनेवाले (श्रीकृष्ण ) के सम्मुख ऊँचे आसन पर स्थित नारद मुनि ने सायंकाल में (उन्नत) उदयाचल पर आरूढ़ चन्द्रमा की शोभा को चुराया अर्थात् प्राप्त किया॥१६॥ (श्यामवर्ण श्रीकृष्ण के सम्मुख ऊँचे आसन पर बैठे हुए गौरवर्ण नारद मुनि सायंकाल के समय में उदयाचल पर स्थित शुभ्रवर्ण चन्द्रमा के समान सुशोभित हो रहे थे।) प्रसङ्ग--इस श्लोक में महाकवि माघ, नारद मुनि के पूजन के पश्चात् श्रीकृष्ण की प्रसन्नता का वर्णन करते हैं । विधाय तस्यापचितिं प्रसेदुषः प्रकाममप्रीयत यज्वनां प्रियः। ग्रहीतुमार्यान् परिचर्यया मुहुर्महानुभाषा हि नितान्तमर्थिनः ॥ १७ ॥
SR No.009569
Book TitleShishupal vadha Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajanan Shastri Musalgavkar
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages231
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size63 MB
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