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________________ [ 77 ] महाकवियों के काव्यों को केवल शब्दार्थतः अथवा वाच्यार्थतः जान लेना काव्याध्ययन की इतिश्री नहीं है अपितु उनके काव्यों में अपलुत प्रतिभा के उन्मेषों की गवेषणा करने में हैं । जैसे - रस, अलंकार, गुण, छन्द, व्यङ्गय ध्वनि प्रकार, काव्यानुशासन, अनान्य शास्त्रान्तरों से प्राप्त सन्दर्भ आदि बहुत से ज्ञेय पदार्थ रहते हैं । _उपर्युक्त दृष्टि से अभी तक व्याख्याकारों का ध्यान गया हुआ प्रतीत नहीं हो रहा है । इस प्रकार के प्रयास की नितान्त आवश्यकता विगत ७५ वर्षों से थी, क्योंकि ऐसा करने से महाकाव्य के रहस्यों का एवं उसके शरीर विषयक समग्र अध्ययन अनुसन्धित्सु को युगपत् सहजतया संम्बद्धस्थल पर उपलब्ध हो जाता है । इस दृष्टि से प्रस्तुत व्याख्या माघकाव्य के पिपठिषु काव्यरसिक अध्येताओं को नितान्त उपादेय होगी, इसी आशा पुरस्सर । बसन्त पञ्चमी वि० सं० २०५५ इति शम् डॉ० (राजू) राजेश्वर शास्त्री मुसलगांवकर एम० ए० साहित्याचार्य, पी-एच् डी० आई० सी० पी० आर० फेलो० दर्शन एवं धर्म विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी
SR No.009569
Book TitleShishupal vadha Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajanan Shastri Musalgavkar
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages231
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size63 MB
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