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________________ [ 76 ] (३) पदलालित्य - आचार्य दण्डी के किसी भक्त को यह उक्ति - 'दण्डिनः पदलालित्यम्' - है । पदलालित्य से उस पद विन्यास में तात्पर्य है जिसके पढ़ने से कर्ण-कुहरों में एक विशेष प्रकार का स्वर-माधुर्य सुनाई पड़ता है, और यह स्वरमाधुर्य अनुप्रास से उत्पन्न होता है । कोमल शब्दों के अनुप्रास में इतनी संगीतात्मक एकरसता उत्पन्न हो जाती है कि वीणा के तारों की झंकार की तरह अर्थबोध हुए बिना ही श्रोताओं का हृदय रसाप्लावित हो जाता है । वस्तुत: 'पदलालित्य' की विशेषता संस्कृत भाषा में ही प्राप्त होती है, अन्य भाषाओं में नही । फिर वह दण्डी का या बाण का गद्य हो अथवा कालिदास भारवि या माघ की कविता हो । माघ के अधिकांश पद्यों में या यों कहे कि अस्सी प्रतिशत पद्यों में अनुप्रास-सुषमा परिलक्षित होती है । उदाहरणार्थ – बसन्त के सौन्दर्य का संकेत कितनी सुन्दरता से 'शब्दजन्यनाद' द्वारा व्यक्त हो रहा है - मधुरया मधुबोधितमाधवी - मधुसमृद्धसमेधिया । मधुकराङ्गनया मुहुरुन्मदध्वनिभृता निभृताक्षरमुज्जगे ॥' (५।२०) श्लोक के सरस वर्णों - के उच्चारण के समय या 'म' कार की सरसता में जीभ आगे बढ़ने में एक विशेष रसास्वाद का अनुभव करती है । वह बिना किसी व्यवधान के आगे-आगे चली जाती है । 'म' कार का नाद-सौन्दर्य एक विशेष आनन्द प्रदान करता है । इस प्रकार माघ में - तीनों गुण विद्यमान हैं, किन्तु उनकी प्राप्ति के लिए हृदय और मस्तिष्क की आवश्यकता है। माघ का उत्तरवर्ती कवियों पर प्रभाव माघ के पश्चाद्भावी अनेक कविगण उनके द्वारा अलंकृत शैली एवं पदविन्यास से प्रभावित हुए हैं – जिनमें 'हरविजय' के रचयिता रत्नाकर, 'धर्मशर्माभ्युदय' के प्रणेता हरिश्चन्द्र आदि विशेष प्रसिद्ध हैं । इन दोनों अतिरिक्त नेमिचरित' 'चन्द्रप्रभचरित' जैसे अनेक काव्यों में माघ का प्रभाव स्पष्ट परिलक्षित होता है । संस्कृत महाकाव्यों की परम्परा में कालिदास के बाद सशक्त व्यक्तित्व माघ का है। प्रस्तुत व्याख्या शिशुपालवध महाकाव्य की प्रस्तुत टीका अनुसन्धानात्मक पद्धति का सुन्दर निदर्शन है । माघकाव्य के श्लोकों की सम्यग् व्याख्या टीकाकार की प्रतिभा, विद्वत्ता एवं साहित्य में अन्वेषण मनोवृत्ति का परिचय देती है । वस्तुतः काव्य के यथार्थ आलोचक तत्तत् लक्षण ग्रन्थकार हैं जिनके द्वारा प्रसृत काव्यानुशासन के प्रकाश में काव्य के शब्दार्थमय शरीर को सूक्ष्मेक्षिकया देखा जाता है । इस धारणा से अनुप्राणित व्याख्याकार ने तत्तत् लक्षणग्रन्थों में पर्यालोचित माघकाव्य विषयक विवरण को यथाशक्ति सम्मिलित करने का गरुतर प्रयास किया है।
SR No.009569
Book TitleShishupal vadha Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajanan Shastri Musalgavkar
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages231
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size63 MB
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