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________________ [58] और उस अस्त्र के ईषत् प्रभाववश सुप्तावस्था में पड़ी हुई यादवी सेना पुनः सचेत होकर पूर्ववत् युद्ध करने लगी । तत्पश्चात् शिशुपाल ने नागास्त्र का प्रयोग किया जिससे यादवी सेना को बड़ी-बड़ी फणाओं वाले विषैले सर्पों ने फूत्कार मारकर सेना को जकड़ लिया । किन्तु भगवान् के रथ की ध्वजा पर बैठे हुए गरुड़ ने श्रीकृष्ण का संकेत प्राप्त कर तत्काल अनेक रूपों को धारण किया, रणक्षेत्र में उनके उड़ने से सर्प भयभीत होकर पाताल में प्रविष्ट हो गये । तत्पश्चात् क्रुद्ध शिशुपाल ने 'आग्नेयास्त्र' का प्रयोग किया, किन्तु भगवान् श्रीकृष्ण के 'मेघास्त्र' के प्रभाववश वह भी विफल हो गया । इस प्रकार शिशुपाल के सभी प्रयत्न विफल हो जाने पर वह मर्मस्पर्शी कटुवचनों से भगवान् श्रीकृष्ण को उत्तेजित करने लगा । राजसूय यज्ञ में शिशुपाल के अभद्र वाणी से सन्तप्त हुए भगवान् श्रीकृष्ण इस बार संग्राम में उसके अधम-स्तर के व्यवहार को सहन नहीं कर सके । अन्त में भगवान् श्रीकृष्ण ने अपने सुदर्शन चक्र से शिशुपाल की गर्दन को काट दिया । शिशुपाल का सिर कटकर जब पृथ्वी पर गिरा तब रणक्षेत्र में उपस्थित समस्त राजाओं ने प्रत्यक्ष देखा कि क्षण भर में एक परम दीप्तिमान् तेज शिशुपाल के शरीर से निकलकर भगवान् श्रीकृष्ण के शरीर में प्रविष्ट हो गया ।
SR No.009569
Book TitleShishupal vadha Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajanan Shastri Musalgavkar
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages231
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size63 MB
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