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________________ [ 55 ] भयानक नगाड़े, बजने लगे । युद्ध की वार्ता से प्रसन्न यादव-शूरवीरों ने कवच धारण कर हाथियों और घोड़ों को युद्धोपयुक्त साज-सज्जा से तैयार करने को सेवकों को निर्देशित किया । तदनन्तर भगवान् श्रीकृष्ण अनिवार्य अस्त्रों से युक्त होकर अपने रथपर आरूढ हो गये । पक्षिराज गरुड़ भी स्वर्ग से उतरकर भगवान् श्रीकृष्ण के रथ की ध्वजा पर आकर बैठ गये । गरुड़ के बैठते ही श्रीकृष्ण का रथ चल पड़ा । तत्पश्चात् उनकी सेना चल पड़ी । सेना के हाथियों – की चिंघाड़ एवं घोड़ों की हिनहिनात्मक शब्दों से तथा नगाड़ों की कर्णविदीर्ण करने वाली ध्वनि से आकाश विदीर्ण होने लगा, गम्भीर ध्वनि सुनकर कन्दराओं में सोये हुए सिंह निकलकर भागने लगे । दिशाएं धूलि-धूसरित हो गयीं । भगवान् श्रीकृष्ण ने शत्रु सेना को देखकर उसकी संख्या का अनुमान कर लिया । शत्रुपक्षीय सैनिक यादव-सैनिकों को देखकर अपने अपने शस्त्रों को लेकर आगे बढ़ने लगे । यादव सैनिक भी शत्रुओं के सम्मुख तीव्र वेग से बढ़ने लगे । रणक्षेत्र के इस दृश्य को देखकर सुन्दर वीरों को वरण करने की अभिलाषिणी अप्सराओं ने प्रथम समागम के योग्य श्रृङ्गार करना प्रारम्भ कर दिया । रत्नजटित कवचों को धारण करने से वीर सैनिकों के शरीर ऐसे दिखाई दे रहे थे मानों वे बाणों से बिधे हुए हों । रण-क्षेत्र की धूलि आकाश में स्थित मेघों के ऊपर चली गयी । वीर सैनिकों के शिर धूलि-धूसरित होने से पके-केशों से युक्त से दिखाई दे रहे थे । सूर्य धूलि-मण्डल से आच्छादित होने से सर्वत्र अन्धकार हो गया । अन्धकार में कुछ भी नहीं दिखलायी देने पर भी हाथी मद जल की गन्ध सूंघकर प्रतिद्वन्द्वी हाथियों के साथ लड़ने के लिये आगे बढ़ रहे थे । सातों स्थानों से मद-जल बहाते हुए सेना के गजराजों ने रणक्षेत्र की धूलि-राशि को सिंचित कर शान्त कर दिया था । अष्टादश सर्ग रणक्षेत्र से हटने की थोड़ी भी इच्छा न करने वाले दोनों पक्षों के सैनिक एक दूसरे से वेगपूर्वक भिड़ गए । पैदल पैदल से, घोड़े घोड़ों से, हाथी हाथी से तथा रथी रथी से भिड़ गये । रणभेरी की गम्भीर ध्वनि, रथों की घरघराहट, हाथियों की भीषण चीत्कार तथा घोड़ों की हिनहिनाहट ने परस्पर मिलकर एक तुमुल अव्यक्त ध्वनि को उत्पन्न कर दिया था । धनुषधारी अपने धनुषों को गोलाकार बनाते हुए टंकार-ध्वनि उत्पन्न कर रहे थे । कोई दो योद्धा क्रोध के आवेश के वेग में एक दूसरे के सम्मुख पहुँचकर और अपने शस्त्रों को डालकर एक दूसरे का हाथ पकड़कर मल्लों की भाँति मुक्केबाजी करते हुए बाहु युद्ध करने लगे थे । दोनों सेनाओं के परस्पर मिलजाने से अपना-पराया पक्ष जानना बड़ा कठिन हो रहा था । शत्रु के तीक्ष्ण खड्ग से श्यामल कवच कट जाने के कारण वीर सैनिक के शरीर की रक्त धारा बादल में विद्युत की तरह दिखाई दे रही थी । नाक के मार्ग से छाती तक बाण के घुस जाने से घोड़े हिनहिनाते हुए त्रस्त हो रहे थे । कोई हाथी प्रतिद्वन्द्वी हाथी के शरीर में प्रविष्ट अपने दांतों को बार-बार गर्दन हिलाकर बड़ी कठिनता से निकाल रहा
SR No.009569
Book TitleShishupal vadha Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajanan Shastri Musalgavkar
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages231
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size63 MB
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