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________________ [ 54 ] शिशुपाल को भी खूब खरी-खोटी सुनाई । यदि राजा युधिष्ठिर ने भगवान् श्रीकृष्ण की पूजा की है तो शिशुपाल को क्यों द्वेष होता है ? भगवान् श्रीकृष्ण और शिशुपाल में कोई प्रतिस्पर्धी हो ही नहीं सकती, क्योंकि दोनों में बहुत अन्तर है । सज्जन पुरुष स्वभावतः ही सदा दूसरों का उपकार करने वाले होते हैं, किन्तु आश्चर्य है कि उनकी उन्नति भी दुष्टों के हृदयों में पीड़ा पहुँचाती है । दुष्टों की कठोर वाणी से महान् पुरुषों का गौरव निश्चय ही नष्ट नहीं होता । सात्यकि ने आगे कहा-तुम्हारा राजा जैसा भी चाहे श्रीकृष्ण को आकर देख लें । उसे उचित उत्तर देने में श्रीकृष्ण थोड़ा भी विलंब नहीं करेंगे । अब यदि तुम कोई अप्रिय बात कहोगे तो तुम्हें दण्ड मिलेगा । इस पर दूत पुन: बोला मैंने सन्धि अथवा विग्रह करने की बात जो आप से कही है, उनमें आप अपने विवेक से एक कोई ग्रहण कर लें । सैकड़ों अपराधों को सहन करने वाले आप का रुक्मिणी हरण रूप एक ही अपराध क्षमाकर शिशुपाल आप से आगे बढ़ गये हैं । उन्होंने युद्धार्थ यादवों को ललकारने के लिए मुझे आपके पास भेजा है । रणक्षेत्र में उनके सम्मुख कोई नहीं ठहर सकता । वे मित्रों के लिए चन्द्रतुल्य आनन्द देने वाले तथा शत्रुओं के लिए सूर्य की तरह सन्तापदायक हैं । वे इन्द्र को भी जीतने वाले हैं । अन्त में दूत ने कहा-हे श्रीकृष्ण ! सूर्य का तेज लोकालोकपर्वत का अतिक्रमण नहीं कर पाता, किन्तु हमारे राजा शिशुपाल का विश्वव्यापी तेज बड़े बड़े भूभृतों राजाओं का अतिक्रमण कर जाता है । उनके शत्रु की रमणियाँ पतियों के मरने पर भी विभूषणा श्रेष्ठभूषणवाली, पक्षां०-भूषणरहिता-ही रहती हैं । हमारे राजा शिशुपाल अतुल पराक्रमी हैं, वह रण में शीघ्र ही तुम्हारा वध करेंगे और तुम्हारी रोती हुई स्त्रियों पर दया करके अपने 'शिशुपाल' नाम को सार्थक करेंगे । सप्तदश सर्ग { सप्तदश और अष्टादश सर्ग में सेना की तैयारी का एवं योद्धाओं के सनद्ध होने का वर्णन किया गया है । इस प्रकार शिशुपाल के दूत के प्रचण्डवायु की तरह गम्भीर कटु एवं श्लिष्ट वचन कहने पर भगवान् श्रीकृष्ण की वह सभा तुरन्त ही अत्यन्त क्षुब्ध हो उठी । सभा में उपस्थित सभी राजालोगों के शरीर क्रोध से लाल हो गये, पसीना बहने लगा । हथेलियों से अपनी जाँघों को पीटते हुए दाँतों से ओंठों को काटने लगे । बलरामजी दूत के वचनों को सुनकर तिरस्कार पूर्वक अट्टहास करने लगे । इसी प्रकार उल्मुक, युधाजित्, आहुकि, सुधन्वा, मन्मथ, पृथु तथा अक्रूर आदि वीर क्रोधावेश में तत्काल ही शिशुपाल को नष्ट कर देना चाहने लगे । ___इस प्रकार अत्यन्त क्रुद्ध यदुवंशी राजाओं द्वारा खूब फटकारे जाने पर वह दूत सभा से चला गया और तुरन्त ही श्रीकृष्ण की सेना में युद्ध की तैयारी होने लगी और
SR No.009569
Book TitleShishupal vadha Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajanan Shastri Musalgavkar
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages231
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size63 MB
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