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________________ [ 45 ] थे । दिवस का अवसान हो जाने पर गाढ़ा अन्धकार चारों दिशाओं में इस प्रकार फैल रहा था कि कुछ भी ज्ञात नहीं हो पा रहा था कि वह कहाँ से आ गया है ? अन्धकार छा जाने पर रमणियों ने दिव्य अंजनों को नेत्रों में लगा लिया , और वे अपने प्रियतमों के अभिसार के लिए तैयार हो गयीं । रात्रि ने चिरकाल से सुप्त कामदेव को उत्तेजित कर दिया । उसी समय पूर्वदिशा निर्मल कान्ति से व्याप्त हो उठी । शनैः शनैः कलामात्र चन्द्रमा का उदय हुआ । फिर वह आधा दिखाई पड़ा, तदनन्तर उदित होकर वह पूर्ण बिम्ब में दिखाई पड़ा । फिर रात्रि के सानिध्य से चन्द्रमा की शोभा बढ़ी और चन्द्रमा ने भी रात्रि की शोभा में वृद्धि कर दी । कामदेव चन्द्रमा की किरणों का अवलम्ब लेकर उठ खडा हआ । परिणामतः रमणियों ने अपने अपने प्रियतम के आगमन का निश्चित समय जानकर साज-श्रृंगार करना शुरू कर दिया । कन्तु रमणियों ने आलिंगन के सख में बाधा डालने के भय से अपने शरीर में अनलेपन नहीं किया । कोई सुन्दरी अपने मुख की वायु द्वारा अपने मुख की सुगन्धि की धीरे से परीक्षा कर बहुत प्रसन हो रही थी । तदनन्तर रमणियों ने निपुण सखियों को अपने प्रियतमों के पास भेजा । कोई सखी अभिमानिनी नायिका के बिना कहे ही उसके प्रियतम के पास उसे बुलाने के लिए चली गयी । अन्धकार में रमणियों के मार्ग को न जानने वाले युवक चन्द्रोदय होने पर अपनी प्रियतमाओं की ओर चल पड़े । सहसा प्रियतम के घर पर उपस्थित होने पर प्रियतमा प्रसन्न हो गई । किसी युवक ने उसके स्वागत के लिए उठती हई अपनी प्रेयसी का आलिंगन करके उसे रोक लिया । नीचे की ओर झुककर पति के गाढ़ आलिंगन करने से पति के वक्षस्थल पर रमणी के स्तन युगल सट गये और उसकी करधनी की घण्टियाँ सुन्दर शब्द करने लगी । प्रियतम के आ जाने पर शीघ्रता पूर्वक उठती हुई किसी सुन्दरी का वस्त्र जब छूट गया तब उसने तुरन्त अपने हाथों से नीवी को पकड़ लिया । किसी मानवती सुन्दरी का प्रियतम को देखने पर जब नीवी-बन्धन छूट गया और वह मुख को नीचे की ओर झुकाकर खड़ी हो गई तो ऐसा ज्ञात हो रहा था मानों वह शीघ्र की गये हुए अपने मान के पद-चिह्नों को देख रही हो । इस प्रकार शीघ्र ही मान-रूपी विघ्न को शान्त करने वाली चन्द्रमा की किरणों ने दूतियों की तरह उन रमणियों को नायकों के साथ मिलने में पर्याप्त सफलता प्राप्त की, साथ ही मदिरा ने उन्हें रति क्रीड़ा का उपदेश दिया ।। दशम सर्ग (सुरा तथा सुन्दरी के सेवन का विलासपूर्ण वर्णन ) तदनन्तर कामीजन मद्यपान करने के अवसर पर उससे भी अधिक सुगन्धियुक्त तथा अत्यन्त सुन्दर प्रियतमाओं का अधर पान करने में व्यस्त हो गए । मदिरा से भरे हुए प्यालों में प्रतिबिम्बित सुन्दरी के नेत्रों को कमल समझने वाले भ्रमर वृन्द सूंघने के लिए उस पर मंडरा रहे थे । कोई युवक एक बार मदिरा का स्वाद लेकर वह प्रेयसी के अधरपान में ही निरत हो गया था । तीन-बार के मदिरापान से उत्पन्न प्रचण्ड नशा से मतवाली सुन्दरियाँ
SR No.009569
Book TitleShishupal vadha Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajanan Shastri Musalgavkar
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages231
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size63 MB
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