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________________ [ 43 ] था । वे कोमलाङ्गों वाली सुन्दरियाँ अत्यधिक श्रान्त क्लान्त हो गयीं थीं, उनके कपोलों से बहने वाले पसीने की बून्दें बहकर कठोर स्तनमण्डलों पर गिर कर जरजरित हो रहे थे । बार-बार पुष्प चुनने के परिश्रम से थकी हुई कोई रमणी अपने पति के गले में दोनों भुजाएँ डालकर उसके वक्षस्थल का आश्रय लिये हुए थी । कोई तन्वी सुन्दरी अपने प्रियतम के सम्मुख अपने विशाल स्तन युगलों को और ऊँचा करके अंगडायी लेती हुई अपनी भुजलताओं को फैलाकर थकावट मिटाने के व्याज से अपनी आलिंगन करने की अभिलाषा प्रकट कर रही थी । इस प्रकार जब प्रियतम के कर-स्पर्श के कारण उन्हें अधिक पसीना हो आया उस समय पूर्ण शोभा शालिनी वे सुन्दरयिाँ, वन-विहार के परिश्रम के कारण थके हुए अपने अंगों को सम्पूर्ण रूप से जल द्वारा सिंचित करने की इच्छा करने लगी ( अर्थात् रमणियाँ अब स्नान करने की इच्छा करने लगीं) अष्टम सर्ग (जल-विहार का वर्णन) तदनन्तर वन-विहार के परिश्रम से नितान्त श्रान्त हुई विशाल स्तनमण्डलवाली उन सुन्दरियों के नेत्र मुँदने लगे और किसी प्रकार धरती पर आगे पैर रखती हुई वे जलाशय की ओर चल पड़ी । उन रमणियों की संख्या अधिक होने से मार्ग में चलना कठिन हो रहा था । जलाशय के मार्ग में विचरण करने वाली हँसनियाँ आलस्यपूर्ण मन्द-मन्द गमन करने वाली उन रमणियों को देखकर विस्मय से अपनी चाल को त्याग रही थीं । नदियाँ उनकी जंघाओं से पराजित हो जाने से लज्जावश पाषाण खण्डों पर गिर-गिर कर चंचलता से भाग रही थीं । मार्ग में कहीं कहीं मोती बिखरे हुए थे । भ्रमर-समूह पुष्पों को छोड़कर अधिक सौरभ के लोभ से यादवाङ्गनाओं के मुखारविन्दों पर मंडरा रहे थे ।। मोर मयूरनियों को अपनी विशाल पूंछों से छिपा रहे थे । हँस रमणियों के कर्णसुखद-मधुर वाणी से पराजित होकर कमलों के बीच में छिप रहे थे । चकवा चकई का मुख चुम्बन कर रहा था । इस प्रकार प्राकृतिक सौन्दर्य से विभूषित मार्ग से जब यादवाङ्गनाएँ जलाशय से निकट पहुँची, तब पक्षिवृन्दों के कलरव से स्वागत करते हुए जलाशय ने नव विकसित कमल युक्त तरंगों से उन रमणियों के लिए अर्घ्य देकर उनका स्वागत किया और फेन से मुस्कराती हुई मानों अपने चंचल-लहररूपी हाथों से पैर धोने के लिए उन्हें जल प्रदान किया । उस समय रमणियों की हथेलियों की लालिमा ने कमलों को श्री (शोभा) विहीन बना दिया । वे यादव-रमणियाँ उस सरोवर के जल में प्रथम डरती हुई प्रविष्ट हुई और फिर थाह पाकर अपने कोमल पद को धीरे से आगे बढ़ाकर अनुराग से स्नान करने लगीं । कोई नव विवाहिता रमणी (लज्जावश) अपने पति के साथ जब सरोवर में प्रविष्ट नहीं होना चाहती थी, तब उसकी सखियों ने उसे तट से जल में ढकेल दिया । भय से चकित नेत्रों वाली वह नववधू पति से लिपट गई । कोई रमणी केवल कन्धे तक जल में खड़े हुए अपने प्रियतम को देखकर उस जल को अपने भी कन्धे तक जानकर निर्भय चित्त से उसके पास जाने
SR No.009569
Book TitleShishupal vadha Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajanan Shastri Musalgavkar
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages231
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size63 MB
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