SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 217
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ द्वितीयः सर्गः १३५ प्रसन्न-- अब उद्धव जी, शिशुपाल के साथ युद्ध प्रारम्भ होने पर कौन किसका साथ देगा, बतलाने हैंकिञ्च न केवलं शत्रोरसाध्यत्वं मित्रविरोधश्चाधिकोऽनर्थकर इत्याह द्वयेन तस्य मित्राण्यमित्रास्ते ये च ये चोभये नृपाः।। अभियुक्तं त्वयैनं ते गन्तारस्त्वामतः परे ॥ १०१॥ तस्येति ॥ ये च तस्य चैद्यस्य मित्राणि नृपाः, ये च ते तवामित्रा नृगस्ते उभये स्वयाऽभियुक्त ममियातमेनं चैद्यं गम्तारो गमिष्यन्ति । गमेः कर्तरि लुट । अतः परे उक्तो भयव्यतिरिक्ताः । तर मित्राणि तस्यामित्राश्चेत्यर्थः । त्वां गम्तारः ॥ १.१ ।। __ अन्वयः-(हे कृष्ण !) ये च तस्य मित्राणि ये च ( तव ) अमित्राः ते उभये नृपाः स्वया अभियुक्तम् एनम् (चैयं ) गन्तारः गमिष्यन्ति ) अतः परे स्वाम गन्तारः ( अनुयास्यन्ति ) ॥ १०१ ।। हिन्दी अनुवाद-( उद्धव जी कहते हैं कि हे कृष्ण !) और जो राजागण शिशुपाल के मित्र हैं वे तो उसकी सहायता करेंगे ही, परन्तु जो राजागण तुम्हारे शत्र हैं वे भी इस अवसर पर उसी की सहायता करेंगे। इनको छोड़कर जो तुम्हारे मित्रगण हैं और उसके शत्रु हैं, वे सभी तुम्हारी सहायता करेंगे ।। १०१ ॥ प्रसङ्ग-अब उद्धव जी शिशुपाल पर तात्कालिक आक्रमण से संभावित हानि की ओर संकेत करते हैंततः किमत आह मनविघ्नाय सकलमित्थमुत्थाप्य राजकम् । इन्त ! जातमजातारेः प्रथमेन त्वयारिणा ।। १०२ ॥ मखेति ॥ इत्थमनेन प्रकारेण 'इदमस्य मुः' (५।३।२४) इति थमुप्रत्ययः । मखविघ्नाय मखविघाताय सकलं राजकं राजसमूहम् । 'गोत्रोक्ष ~ (४।२।३९) इत्यादिना वञ् । उत्थाप्य क्षोभयित्वा । हन्त इति खेदे। अजातारेरजातशत्रोर्युधिष्ठिरस्थ त्वया प्रथमेनारिणा जातमजनि । नपुंसके भावे क्तः ॥ १०२॥ अन्वयः-इत्थं मखविघ्नाय सकलं राजकम् उत्थाप्य, हन्त ( हे कृष्ण !) अजातारेः प्रथमेन स्वया अरिणा जातम् ॥ १०२ ॥ हिन्दी अनुवाद -( उद्धव जी श्रीकृष्ण से कहते हैं कि ) इस प्रकार ( पूर्वोक्त श्लोक २१०, के अनुसार ) सम्पूर्ण राजाओं के वर्ग को यज्ञ-विश्न के लिए क्षभित. कर अजातशत्र युधिष्ठिर के आप प्रथम शत्रु बन जाओगे, यह खेद है ॥ १.२॥ प्रसङ्ग-अब उद्धव जी धर्मराज की अभिलाषा को व्यक्त करते हैं
SR No.009569
Book TitleShishupal vadha Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajanan Shastri Musalgavkar
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages231
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size63 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy