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________________ शिशुपालवधम् अन्वयः परैः कृतापराधः अपि अनाविष्कृतविक्रियः असाध्यः गदः यथा काले प्राप्ते कोपं कुरुते ॥। ८६ ।। १२४ हन्दी अनुवाद - जैसे बाहर प्रकट न होकर भीतर ही भीतर छिपा हुआ रोग सारे शरीर में व्याप्त होकर कुपित हो जाता है वैसे ही शत्रु के द्वारा अपकृत होनेपर भी उससे व्यथित हुए अपने हृद स्थ भाव को प्रकट न कर अवसर की प्रतीक्षा करता शान्त बैठा हुआ बुद्धिमान् पुरुष भी अवसर पाकर कुपित होता है || ८६ ॥ विशेष - "वहेदमित्रं स्कन्धेन यावत् कालविपर्ययः । तमेव चागते काले भिन्द्याद्धरमिवाश्मना ।" ( अपनी निर्बलावस्था में शत्रु को कंधोंपर रखना चाहिए, और अपना अनुकूल समय आनेपर उसपर ( शत्रुपर ) प्रहार कर देना चाहिए ।। ) चाणक्य ने भी कहा है- " शत्रु छिद्रे प्रहरेत् ।" जहाँ भी शत्रु की दुर्बलता दिखाई दे, वहीं उसपर प्रहार करना चाहिये ।। ८६ ।। प्रसङ्ग - उद्धवजी कहते हैं कि - विजिगीषु राजा सर्वप्रथम इमा धारण करें, क्योंकि उसके द्वारा तेज की तेजस्विता बढ़ती है और विजय की प्राप्ति भी— इतश्च क्षन्तव्यमिदानीमित्याह मृदुव्यवद्दितं तेजो भोक्तुमर्थान्प्रकल्पते । प्रदीपः स्नेहमादत्ते दशया ह्यन्तरस्थया ॥ ८७ ॥ मृद्वति ॥ मृदुना मृदुवस्तुना व्यवहितमन्तर्हितं तेजः अर्थान् भोक्तुं प्रकल्पते प्रभवति । तथा हि-प्रदीपोऽभ्यन्तरस्थया मध्यस्थया दशया वर्त्या । ' दशा वर्ताववस्थायां स्नेहस्तलादिके रस' इति विश्वः । स्नेहं तैलादिकमर्थमादत्ते । अन्यथा स्वयमेव निर्वापादिति । ततः क्षान्तिपूर्वमेव क्षात्रं फलतीति सर्वथा प्रथमं क्षन्तव्यमिति भावः । विशेषेण सामान्यसमर्थनादर्थान्तरन्यासः ॥ ८७ ॥ अन्वयः - मृदु व्यवहितं तेजः अर्थात् भोक्तुम् प्रकल्पते, प्रदीपः अभ्यन्तरस्थया दशया स्नेहम् आदत्ते ॥ ८७ ॥ हिन्दी अनुवाद - जिस प्रकार प्रदीप भी कोमल वर्त्तिका (बत्ती ) को मध्य में रखकर ही उसके द्वारा तेल को भोगता है, उसी प्रकार राजा भी मृदुस्वभाव से राज्य आदि सम्पत्ति को भोग सकता है ।। ८७ । विशेष - मनु ने कहा है- "विनययुक्त राजा कभी नष्ट नहीं होता" "विनीतारमा हि नृपतिर्न विनश्यति कर्हिचित् । " ( ७/३९ मनु ) तथा कौटिल्य कहते हैंसे शत्रु को भी जीता जा सकता है "शत्रुं जयति सुवृत्तता" कामन्दक सद्ग्यवहार १. वभ्यन्तर ।
SR No.009569
Book TitleShishupal vadha Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajanan Shastri Musalgavkar
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages231
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size63 MB
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