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________________ शिशुपालवधम् धिरोहत्याक्रमति तद्रजः । अचेतनमपीति भावः। अपमाने सत्यपि स्वस्थात्सन्तुष्टादेहिनश्चेतनाद्वरं श्रेष्ठम् । व्यतिरेकालङ्कारः ॥ ४६ ॥ अन्वयः-यत् रजः पादाहतं सत् उत्थाय मूर्धानं अधिरोहति तत् अपमाने अपि स्वस्थात् देहिनः वरम् एव ॥ ४६॥ हिन्दी अनुवाद-जो धूलि पैर से ताडित होने पर आहतकर्ता के मस्तक पर चढ़ जाती है, वह धूलि अपमानित होने पर भी स्वस्थ (शान्त) रहने वाले व्यक्ति से अच्छी है ॥ ४६ ॥ विशेष-तात्पर्य यह है कि अपमानित अर्थात् पैरों से आहत धूल आहतकर्ता के सिर पर चढ़ जाती है, जब की वह धूल अचेतन. है, तब चेतन व्यक्ति यदि अपमानित हो कर भी निष्क्रिय रहता है तव तो उस व्यक्ति से धूल ही श्रेष्ठ है। प्रसङ्ग-प्रस्तुत श्लोक में - बलराम जी कहते हैं कि साधनों के होते हुए भी जो व्यक्ति अपनी कार्य-सिद्धि नहीं कर लेता उसका जना, नाम मात्र का होता है अर्थात् निरर्थक होता है। असम्पादयतः कश्चिदर्थ जातिक्रियागुणैः। यदृच्छाशब्दवत्पुंसः संहाय जन्म केवलम् ॥४७॥ असम्पादयत इति ॥ किञ्च जाति ह्मणत्वादिः, क्रिया इज्याध्ययनादिः, गुणः शौर्यादिः तः साधनैः। करणे तृतीया। कश्चिदर्थ सुकृतकीर्त्यादिपौरुषार्थम्, अन्यत्र गोत्वपाचकत्वशौक्ल्यादिभिः स्वाभिधेयभूतैः करणः कश्चिदर्थ व्यवहाररूप प्रयोजनमसम्पादयतः । उभयत्र तादग्जात्याद्यसम्भवादिति भावः । पुंसो जन्म सत्तालाभः यदृच्छाशब्दवत् इच्छाप्रकल्पितस्य जात्यादिप्रवृत्तिनिमित्तशून्यस्य डित्यादिशब्दस्येव । 'तत्र तस्येव' (५१११११६ ) इति वतिप्रत्ययः । 'स्वेच्छा यदृच्छा स्वच्छन्दः स्वैरता चेति ते समाः' इति केशवः । संज्ञाय केवलं संज्ञार्थमेव । एकत्र पारिभाषिकं किञ्चिन्नाममात्रमनुभवितुम्, अन्यत्र तादृक्तामनुभवितुमित्यर्थः ॥ ४७ । अन्वयः-जातिक्रियागुणैः कश्चिदर्थ असम्पादयतः पुंसः जन्म यदृच्छाशब्दवत् संज्ञायै केवलम् ॥ ४७ ॥ हिन्दी अनुवाद-जो पुरुष अपनी जाति, गुण और क्रिया आदि साधनों के द्वारा कुछ भी कार्य-लाभ सम्पादित नहीं कर लेता है, उसका जन्म तात्पर्यहीन यहच्छाशब्द की तरह नाम मात्र के लिये है। अर्थात् जाति (गोत्वादि ) क्रिया (पाचकस्वादि) और गुण (शुक्लत्वादि) के द्वारा किसी व्यवहाररूप प्रयोजन को सम्पादन न करने वाले, (डिस्थ-डविस्थादि अर्थहीन ) रूढ शब्दों के समान, जाति (ब्राह्मणत्वादि ) क्रिया (यज्ञ-अध्ययनादि)
SR No.009569
Book TitleShishupal vadha Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajanan Shastri Musalgavkar
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages231
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size63 MB
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