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________________ ( ६८ ) चरितम्', अर्थात् निषघराज ( नल ) का चरित। इससे उसका उद्देश्य भी स्पष्ट हो जाता है, वह अपने इस 'राजचरित' के माध्यम से निषधराज के महनीय चरित का उज्ज्वल पक्ष दिखाना चाहता है। उसे द्यूत में पराजित श्रीहीन नल का चरित अभीष्ट नहीं, वह नल का वैभव, उसकी कला विज्ञता, त्रिलोकघन्य पौरुष, उदारता, वदान्यता, दानशीलता, गंभीरता, दृढप्रतिज्ञता, आस्तिकता, विलासकोशल, गभीर अनुराग आदि उत्तम मानवीय गुण पाठको के संमुख रखना चाहता है। नल-सम्बन्ध से रमणीरत्न दमयन्ती का गौरव भी स्पष्ट हो जाता है । अनेक शास्त्रों के संदर्भ न केवल कवि की बहुज्ञता के परिचायका हैं, कविशिक्षा भी उसका उद्देश्य हैं । यदि 'नैषध' का साङ्गोपाङ्ग गंभीरता से अध्ययन-मनन किया जाय तो सक्षेप में भारतीय वाङ्मय और संस्कृति का अच्छा परिचय प्राप्त हो सकता है। पाश्चात्य दृष्टि के अनुसार इसके 'दर्शन' में व्यापकता और अपेक्षित उदात्तता भले ही न हो और इस प्रकार उनके समीक्षण में यह एक आदर्श 'एपिक' सिद्ध न हो सके, यह विचारणीय नहीं है, देखना यह है कि 'नैषधीय चरित' उन्हें कितना रिझा पाता है, जिनको ध्यान में रखकर इसका प्रणयन हुआ है, यह 'नैषधीयचरित' अपने सुधी पाठकों को 'सुधीभूय' ( अमृत बनकर ) मतवाला बना सकता है अथवा नहीं? यदि कवि के इस कथन अथवा प्रश्न का उत्तर 'हाँ' में मिलता है, तो यह कहना पूर्णतः उचित है कि अपने उद्देश्य में कृतार्थ है-'किमस्या नाम स्यादरसपुरुषानादरभरैः' ? ___ संक्षेप में कहा जा सकता है कि 'नैषधीयचरित' के रूप में श्रीहर्ष की 'उक्ति'-'वैदग्धभङ्गी भणिति' क्षीरसागर के समान अमृतदायिनी है, यह पर्वत-पाषाणों से उद्भूत आडम्बरकोलाहल करती नदी नहीं : दिशि दिशि गिरिग्रावाणः स्वां वमन्तु सरस्वती ___तुलयतु मिथस्तामापातस्फुरद्ध्वनिडम्बराम् । स परमपरः क्षीरोदन्वान्यमुदीयते मथितुरमृतं खेदच्छेदि प्रमोदनमोदनम् ॥ गुरुपूर्णिमा -देवर्षि सनाढ्य वि० सं० २०४१
SR No.009566
Book TitleNaishadhiya Charitam
Original Sutra AuthorHarsh Mahakavi
AuthorSanadhya Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year
Total Pages284
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size74 MB
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