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________________ ( ६५ ) दुर्बोधता, उदाहरणार्थ अगदंकार, श्यनंपाता, अकूपार ( अप्रसिद्ध, अप्रचलित ), अप्रतीतचर, हंसस्पृश, सूननायक आदि ( नवगठित ) शब्द । (९) महाकाव्योचित विस्तृत जीवन-दर्शन का अभाव ओर एकांगिता। (१०) रचना-दोष, जिससे अनपेक्षित अर्थ भी संभव है तथा अनेक शास्त्रवणित दोषों की स्थिति; उदाहरणार्थ ११५० में 'भृशं' का दुष्क्रम प्रयोग, चम्पक पुष्प पर बैठने से भ्रमर की मृत्यु की ख्याति-विरुद्धता (११८६ ), भ्रमर-पंक्ति का चम्पा को कली पर बैठना--प्रसिद्धिहतता (११९१ ), अनेक स्थलों पर क्लिष्टत्व, नपुंसकलिंग में प्रयुक्त होने वाले पद्म का द्वितीया. बहुवचन में पुंलिंग-प्रयोग 'पद्मान्' (१०।१२० )-व्याकरणविरुद्धता आदि । (११) शृङ्गार और हास्य इनमें अश्लीलता । 'हिस्ट्री आफ संस्कृत लिटरेचर' वाल्यूम १, पृ० ३२८ में डॉ० सुशील कुमार दे ने लिखा है कि आधुनिक दृष्टि के पाश्चात्य जल्दबाज समीक्षक को श्रीहर्ष की कृति अरुचिचूर्ण और शैली की दृष्टि से पूर्णतः असुन्दर लगे तो आश्चर्य नहीं--'इट इज नो वंडर, दैट जजिंग बाय मार्डन स्टैंडर्ड, एन इंपेशेंट वेस्टर्न क्रिटिक शुड स्टिगमैटाइज दि वर्क एज ए परफेक्ट मास्टर पीस आफ बैड टैस्ट ऐंड बैड स्टायल ।' ____ वस्तुतः यह दोष-दर्शन 'गुणसन्निपाते' चन्द्रकिरणों में कलंक के समान हैं और कुछ अतिपरंपरावाद तथा आधुनिक समीक्षा दृष्टि के परिणाम भी हैं। 'नैषधीयचरित' के अनुशीलन के समय जल्दबाजी से काम नहीं चलता, उसके लिए सुस्थिरता और सुस्थिर मति अपेक्षित है । श्रीहर्ष की कविता कामिनी की रमणीयता से सुधीजन ही प्रभावित होते हैं, 'कुमारों' (बालकों) के लिए वह नहीं है 'परमरमणीयाऽपि रमणी कुमाराणामन्तःकरणहरणं नैव कुरुते'। श्रीहर्ष की उक्ति सुधीजनों को आनन्दित कर सके, इसी में उसकी सार्थकता है, रसहीन जनों के अनादर से उसका कुछ बिगड़ता नहीं 'मदुक्तिश्चेदन्तमंदयति सुधीभूय सुधियः । किमस्या नाम स्यादरसपुरुषानादरभरैः ।' जहाँ तक शब्द-प्रयोगों में नवगठितता का प्रश्न है, वह तो श्रीहर्ष का स्तुत्य नवीन प्रयास है। राजा के लिए भूजानि (१२), काम के लिए सूननायक, जाननेहारी के लिए अधिगामुका, पूर्वाज्ञात के लिए अप्रतीतचर ५ नै भू०
SR No.009566
Book TitleNaishadhiya Charitam
Original Sutra AuthorHarsh Mahakavi
AuthorSanadhya Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year
Total Pages284
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size74 MB
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