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________________ ( ६४ ) का संकेत हैं । आयुर्वेद-ज्ञान के सूचक हैं-सांक्रामिक रोग का चिकित्सकों में प्रविष्ट हो जाना ( ३.११ ), सर्पदंशचिकित्सा ( ४.३३ ), ताप-शान्ति के निमित्त नलद ( खस ) का सुश्रुत और चरक द्वारा अनुमोदित प्रयोग (४:११६ ) । धनुर्वेद से श्रीहर्ष का अच्छा परिचय प्रतीत होता है, द्रष्टव्य ३६१२६, १२७, १०।११७, ११९, २११५८ । राजनीति शास्त्र ( ११३, २०१३३ ), और संगीत विद्या ( ११५२, ११।६, १२।१६, १५:१६ १७, १८.१३, २१:१२४, १२५, १२७ में नृत्य, गान, वाद्य के संकेत ) का संदर्भ है ही । कामशास्त्र के तो श्रीहर्ष विज्ञाता ही थे, अष्टादश सर्ग तो इसका पूर्ण परि. चायक है ही, कामदशा (३।१०१,११४) कामज्वर (४।२) आदि के वर्णन भी हैं । ऐसी कामक्रीडाओं का वर्णन उन्होंने किया है, जिनका ज्ञान न तो महाकवियो को है और न पासुलाओं-स्वरविहारिणियों को-- महाकदिभिरप्यवीक्षिताः पांसुलाभिरपि ये न शिक्षिताः । ( १८।२९)। दोष—इतने ज्ञानी, अगाघ पांडित्य के अभिमानी महाकवि के महाकाव्य में यदि अनेक विद्वानों को दोष भी लगे तो आश्चर्य ही क्या ? आलोचकों की इस दोषदृष्टि को विद्वानों ने इस प्रकार परिगणित किया है । (१) भावपक्ष की अपेक्षा कलापक्ष की प्रबलता। (२) शास्त्रीय संदर्भो का अतिशय प्रयोग। ( ३ ) क्लिष्ट कल्पनाओं की पुनरुक्तियुता कथावरोधिका अतिशयता । ( ४ ) शृङ्गार की अत्यन्तता और तज्जनित अमर्यादा । (५ ) औचित्य का अनिर्वाह । उदाहरणार्थ सभी तरुणियों द्वारा स्वप्न में ही सही ) नल को पति रूप से भजना ( १।३०), भृगु, नारद, व्यास आदि का भी दमयन्ती पर मोह (७।९५ ), स्वयंवर हो जाने पर भी चन्द्रबिन्दु के माध्यम से उसके प्रति इन्द्र का मोह (१५।६४), हरिहरादिदाराओं का सदैव मदन-कारा में वन्दिनी रहना ( १७७६ ) आदि । (६) चार्वाकदर्शन के कलि-द्वारा प्रतिपादन से देव-ब्राह्मणादि पर लम्बे माक्षेप । (७) लंबे अनावश्यक वर्णन । (८) अप्रचलित तथा नवगठित शब्दों के प्रयोग से उत्पन्न दुरुहता और
SR No.009566
Book TitleNaishadhiya Charitam
Original Sutra AuthorHarsh Mahakavi
AuthorSanadhya Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year
Total Pages284
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size74 MB
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