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________________ ( ५० ) यद्यपि विश्वनाथ ने करुण, वीर, रौद्र, बीभत्स और भयानक की गणना शृंगार रस के विरोधी रसों में की है-'आद्यः करुणबीभत्सरोद्रवीरभयानकः' ( सा० द० ३।२५४), तथापि आनन्दवर्द्धनाचार्य ने बाध्यबाधकमाव से केवल शृंगार-बीभत्स में विरोध माना है (ध्वन्यालोक, कारिका २४ का पूर्वपक्ष) । उस पर भी वे ऐसा नहीं मानते कि 'नवरसरुचिर' महाकाव्य में प्रसंगतः विरोधी रस का वर्णन ही न किया जाय, वे केवल विरोधी रस के प्रत्यधिक परिपोष के विरुद्ध हैं । उनके अनुसार परिपोष अङ्गी रस का ही होना चाहिए, विरोधी या अविरोधी अंग रसों का नहीं-'अविरोधी विरोधी वा रसोऽङ्गिनि रसान्तरे। परिपोषं न नेतव्यस्तथा स्यादविरोधिता।' ( तदेव ) । वास्तव में रसभंग अनौचित्य से होता है, औचित्य-निबंधन तो रस की परमोपनिषद् है-'अनौचित्याहते नान्यद् रसभङ्गस्य कारणम् । प्रसिद्धौचित्यबन्धस्तु रसस्योपनिषत्परा ॥' इस दृष्टि से 'नैषध' में किसी अन्य अंग रस का परिपोष नहीं हुआ है, जो रस आये हैं, प्रसङ्गतः, औचित्य के साथ। और फिर विवक्षित अतएव अंगी रस जब लब्धप्रतिष्ठ हो जाता है, लब्धपरिपोष हो जाता है तो विरोधी अंगरसों के कथन में दोष नहीं होता'विवक्षिते रसे लब्धप्रतिष्ठे तु विरोधिताम् । बाध्यानामङ्गभावं वा प्राप्तानायुक्तिरच्छला ॥' ( ध्वन्यालोक ३।२०)। वीर रस का वर्णन नल की युद्धवीरता-चित्रण-प्रसंग में है, वे शताधिकशत्रुजयी हैं, जलते हुए शत्रुपुरों की अग्नि के समान उनके प्रताप से भूमंडल प्रकाशित था, उनकी तलवार उनके चांदनी जैसे यश का विस्तार करती थी। उनके ओज और यश के संमुख सूर्य-चन्द्र भी अगणनीय थे । आदिआदि (नं० १११-१४)। इसके अतिरिक्त स्ययंवर-प्रसंग में ( सर्ग ११-१३ ) राजाओं के परिचय में उनकी वीरता का बखान किया गया है। वस्तुतः इसमें शास्त्रीयता का परिपालन और कल्पना की उड़ान ही अधिक है, स्वाभाविक वीर-भाव कम । दयावीरता के भी कुछ प्रसंग हैं, उदाहरणार्थ नल की विलाप करते हंस पर दीनदयालुता । (१११४३ )। दानवीरता के उदाहरण भी हैं। नल ने इतना दिया कि दरिद्रता भी
SR No.009566
Book TitleNaishadhiya Charitam
Original Sutra AuthorHarsh Mahakavi
AuthorSanadhya Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year
Total Pages284
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size74 MB
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