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________________ ( ४९ ) के स्वप्न देखते आलिंगन-संपूट में परस्पर पीडित होते निद्रासुख का अनुभव करने लगे, उनके बाह्य वक्षःस्थल और आभ्यंतर अंतस् में कोई भेद न रह गया । ( न० १८।१५२-१८३ ) । अगले चार सर्गों में श्रृंगार की उज्ज्वलता का वर्णन है, जिसमें प्रभात है, संध्या है, चंद्रोदय है, तारों-भरी रात है। उपासना पूजा भी है, प्रातर्विधान भी है । सभी उज्ज्वल पक्ष हैं। शृंगार की उज्ज्वलता के पूर्ण दर्शन इन उत्तर सर्गों में है। ___अंगरस--शृंगारातिरिक्त जो रस अङ्ग रूप में आये हैं, उनमें करुण, वीर, हास्य, अद्भुत, रौद्र, बीभत्स और भयानक हैं । केवल शांत नहीं है । करुण--करुण रस 'नैषध' में हंस-प्रसंग में आया है। नल के द्वारा पकड़े गये हंस की उक्तियों में हृदयस्पर्शी करुणता व्यंजित हुई है। हंसविलाप-प्रसंग यद्यपि छोटा है, किन्तु वह इतना प्रभावी और मनोवैज्ञानिक है कि उसे विश्वसाहित्य में सरलता से स्थान दिया जा सकता है। विलाप करते हंस ने जो कहा, उसने नल का हृदय करुणाविगलित कर दिया और निषधपति की दीनदयालुता उभर आयी और हंस मुक्त हो गया। हंस ने पकड़े जाने पर पहिले तो राजा के इस कार्य का अनौचित्य सिद्ध किया और उसमें करुणा जगायी। यह करुणभाव 'नैषध' (१११३५-१४२) के आठ श्लोकों में व्यक्त हुआ है । हंस ने अपनी वृद्धा माँ, नवप्रसूता पत्नी की निराश्रयता की दुहाई दी। किस प्रकार मां यह दारुण कष्ट सह सकेगी ? कैसे पत्नी से वह क्षण व्यतीत किया जायेगा, जब वह यह सुनेगी? निश्चय ही वह प्राण त्याग देगी और मां बाप के न रहने पर अनाथ छोटे बच्चे मर ही जायेगे । हंस का यह विलाप आज भी सरस पाठकों की आँखों में आंसू ला देता है। हिन्दी के सुप्रसिद्ध विद्वान् स्व. आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी ने इस प्रसंग को करुणरस की अविस्मरणीय रचना माना है। वे जब भी इसे पढ़ते थे, उनका अश्रुपात होने लगता था। वीर-करुण की भांति वीर रस के प्रसंग कई स्थलों पर होते हुए भी थोड़े ही हैं, किन्तु उतने प्रभावी नहीं है। उनमें श्रीहर्ष का पांडित्य तो लक्षित होता है, शास्त्रीयता है, पर करुण-प्रसंग जैसी सहृदयता नहीं है । ४ न भू०
SR No.009566
Book TitleNaishadhiya Charitam
Original Sutra AuthorHarsh Mahakavi
AuthorSanadhya Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year
Total Pages284
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size74 MB
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