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________________ नषधमहाकाव्यम् टिप्पणी-धरती पर नीचे उतरते पक्षी का यह स्वभाव है कि वह गोल चक्कर लगाकर स्थान निश्चित करके तब उतरता है, राजहंसने भी ऐसा ही किया। कवि ने इसी पर यह बिम्ब-वर्णन किया है । लगा कि चन्द्र के निकट चन्द्र का घेरा 'फेम' आ रहा है दमयंती का मुख चन्द्रमा है, स्वर्णाभा बिखेरता चक्कर लेता हंस उसका सुनहरी फ्रेम है । हंस की 'सेवितुम्' क्रिया का भाव नारायण पंडित ने 'परिचुम्बितुम्' लिया है, कुछ अन्य टीकाकार 'द्रष्टुम्' लेते हैं । वस्तुतः यह भाव अविक स्वाभाविक लगता है कि मुख चन्द्र का प्रभामण्डल, जो पीछे छूट गया था, चन्द्र के चारों ओर लगने के लिए निकट आ रहा है-'सेवितुम्-उपसेवितुम्' । मल्लिनाथ के अनुसार उत्प्रेक्षा-स्वभावोक्ति का संकर, विद्याधर की दृष्टि में रूपक-उपमा-जाति की संसृष्टि ।। १०८ ॥ अनुभवति शचीत्थं सा घताचीमखाभिर्न सह सहचरीभिनन्दनानन्दमुच्चैः । इति मतिरुदयासीत्पक्षिणः प्रेक्ष्य भैमी विपिनभुवि सखीभिस्सार्धमाबद्धखेलाम् ॥ १०९ ।। जोवातु-अनुभवतीति । विपिनभुवि वनप्रदेशे सखीभिः सहचरीभिः 'सख्यशिश्वीति भाषायामि'ति नितनात ङीप् । सार्द्धमाबद्धखेलामनुबद्धक्रीडां, 'क्रीडा खेला च कूर्दन मि'त्यमरः । भैमी प्रेक्ष्य पक्षिणः सा प्रसिद्धा शची इन्द्राणी घृताचीमुखाभिः सहचरीभिः सह इत्थमुच्चरुत्कृष्टं नन्दनानन्दं नन्दनमुखं नानुभवतीति मतीः बुद्धिरुदयासीदुत्थिता। अत्र प्रेक्ष्य मतिरिति मननक्रियापेक्षया समानकर्तृकत्वात् पूर्वकालत्वाच्च प्रेक्ष्येति क्त्वानिर्देशोपपत्तिः, तावन्मात्रस्यैव तत्प्रत्ययोत्पत्ती प्रयोजकत्वात् । प्राधान्यत्वप्रयोजकमिति न कश्चिद्विरोधः। अत्रोपमानादुपमेयस्याधिक्योक्तेर्व्यतिरेकालङ्कारः 'भेदप्रधानसाधर्म्यमुपमानोपमेययोः । आधिक्यादल्पकथनाद्वयतिरेकः स उच्यते ॥' इति लक्षणात् ॥ १०९ ॥ __ अन्वयः--विपिनभुवि सखीभिः सार्धम् आबद्धखेलां भैमी प्रेक्ष्य-घृताचीमुखाभिः सखीभिः सह सा शची इत्थम् उच्चः नन्दनानन्दं न अनुभवतिपक्षिणः इति मतिः उदयासीत् ।
SR No.009566
Book TitleNaishadhiya Charitam
Original Sutra AuthorHarsh Mahakavi
AuthorSanadhya Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year
Total Pages284
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size74 MB
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