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________________ ८६ नैषधमहाकाव्यम् होता, अत:-'अध्वनि निमेषं न प्राप'-मार्ग मैं क्षण निमेष भर-क्षण भर को भी नहीं रुकी । मल्लिनाथ ने भेद में अभेदकथन रूपा अतिशयोक्ति अलंकार का उल्लेख किया है, विद्याधर ने उत्प्रेक्षा का, चंद्रकलाकार ने दो बार अभेद का अध्यवसाय होने से यहाँ दो अतिशयोक्तियों की संसृष्टि और 'कटक', 'शिखर' शब्दों से नर्महम्यं तथा सौध की अत्युच्चता व्यंग्य होने के कारण शब्द शक्तिमूलवस्तु ध्वनि का निर्देश किया है। शार्दूलविक्रीडित छंद ॥ १०४ ॥ वैदर्भीकेलिशैले मरकतशिखरादुत्थितरंशुद:ब्रह्माण्डाघातभग्नस्यदजमदतया ह्रीधृतावाङ्मुखत्वैः । कस्या नोत्तानगाया दिवि सुरसुरभेरास्यदेशं गताग्रेर्यद्गोग्रासप्रेदानव्रतसुकृतमविश्रान्तमुज्जम्भते स्म ॥ १०५ ॥ जीवातु-वैदर्भीति । 'उत्ताना वै देवगवा वहन्ती'ति श्रुत्यर्थमाश्रित्याहवैदर्भीके लिशैले मरकतशिखरादुत्थितः अथ ब्रह्माण्डाघातेन भग्नो स्यदजमदो वेगगर्वो येषां तत्तथा ह्रिया घृतम् अवाङ्मुखत्वं यस्तैरघोमुखः अतएव दिवि उत्तानगाया ऊर्ध्वमुखाया इत्यर्थः । कस्याः सुरसुरभेः देवगव्या आस्यदेशं गतारंशुभिरेव दर्भेर्यस्या नगर्याः सम्बन्धि गोग्रासप्रदानव्रतसुकृतमविश्रान्तं नोज्जृम्भते स्म । किन्तु सर्वस्य अपि ग्रासदानाद्यत्तत्सुकृतमेवोज्जृम्भितमित्यर्थः । अत्युत्तमालङ्कारोऽयमिति केचित् । अंशुदर्भाणां ब्रह्माण्डाघाताद्यसम्बन्धेऽपि सम्बन्धोक्तरतिशयोक्तिभेदः । स्रग्धरावृत्तं "म्रभ्नर्यानां त्रयेण त्रिमुनियतियुता स्रग्धरा कीर्तितेयमिति लक्षणात् ॥ १०५ ॥ अन्वयः-वैदर्भीकेलिशले मरकतशिखरात् उत्थितः ब्रह्माण्डाघातभग्नस्यदजमदतया ह्रीधृतावाङ्मुखत्वैः दिवि उत्तानगाया कस्याः सुरसुरभेः आस्यदेशं गताः यद्गोग्रासप्रदानव्रतसुकृतम् अविधान्तम् उज्जृम्भते स्म । हिन्दी--विदर्भ कुमारी ( दमयन्ती ) के क्रीडापर्वत पर मरकतमणिनिर्मित शिखरों से उठी ब्रह्मांड के संघट्टन से वेगजात अभिमान के टूट जाने के कारण लज्जा से नीचे मुख किये स्वर्ग में ऊपर मुख करके जानेवाली किसी देवगौ के मुखमें जिनके अग्रभाग चले जाते हैं, ऐसी, किरणों के अग्रभागों द्वारा जिस ( नगरी ) में गोग्रास-प्रदान रूप व्रत का पुण्य अनवरत बढ़ रहा था।
SR No.009566
Book TitleNaishadhiya Charitam
Original Sutra AuthorHarsh Mahakavi
AuthorSanadhya Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year
Total Pages284
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size74 MB
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